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भोजपुर के तरारी प्रखंड में 19 में से चार ही मुखिया बचा सके कुर्सी

लोकतांत्रिक व्यवस्था में आम जनता सर्वोपरि है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 23 Oct 2021 11:21 PM (IST)Updated: Sat, 23 Oct 2021 11:21 PM (IST)
भोजपुर के तरारी प्रखंड में 19 में से चार ही मुखिया बचा सके कुर्सी

आरा। लोकतांत्रिक व्यवस्था में आम जनता सर्वोपरि है। जिसकी अनदेखी नहीं की जा सकती। जनता से किए गए वादे नहीं निभाने वाले जन प्रतिनिधि को इसका खामियाजा चुकाना ही पड़ता है। यह बात पीरो व जगदीशपुर के बाद तरारी प्रखंड में हुए पंचायत चुनाव के आए परिणामों में साफ देखी जा रही है। यहां कुल 19 पंचायतों में दो तिहाई से अधिक पंचायतों में पहले से काबिज मुखिया, सरपंच व पंचायत समिति सदस्यों को अपनी कुर्सी गवानी पड़ी है। 19 पंचायतों में 13 निवर्तमान मुखिया को पराजय का मुंह देखना पड़ा है। दो सीटों पर पुराने निवर्तमान मुखिया इस बार चुनाव लड़े थे। उनके बदले कहीं बहू तो कहीं सास मैदान में थीं, जिन्हें भी जनता ने नकार दिया। आम जनता ने यहां के ज्यादातर मुखिया को माफ नहीं करते हुए उनका पत्ता साफ कर दिया है।

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योजनाओं में गुणवत्ता की कमी चुनाव में भारी पड़ी है। तरारी प्रखंड के हरदियां निवासी संजय राय कहते हैं कि यहां सरकारी योजनाओं के क्रियान्वयन में हुए लूट खसोट का असर चुनाव परिणाम पर पड़ा है। खासकर जिस तरह नल जल योजना की राशि में लूट मचाई गई, वह लोगों के नजर में था । इसे लोगों ने मुनासिब नहीं समझा और मुखिया जी का तख्ता पलट दिया।

विसंभरपुर गांव निवासी सारंगधर पांडेय के अनुसार जिन पंचायत प्रतिनिधियों ने चुनाव जीतने के बाद आम जनता से नाता तोड़ लिया। उन्हें इसबार लोगों ने नकार दिया है। कुरमुरी में पहले से काबिज मुखिया मनोज सिंह, जेठवार के बृज किशोर प्रसाद, सेदहां के दिलीप कुमार को लोगों की उपेक्षा महंगी पड़ी है। इसी तरह तरारी के निवर्तमान मुखिया बूटन राम, पनवारी में रंजू देवी,सिकरहटा में उर्मिला देवी, चकिया में लाल नारायण मिश्र, बसौरी में किरण देवी, देव में बिमला देवी,शंकरडीह में लालसा देवी व तरारी पंचायत में रूपेश कुमार को जनता से वादा खिलाफी का खामियाजा भुगतना पड़ा है। चुनाव जीतने के बाद लोगों के दु:ख-दर्द में शामिल रहने के बजाय ऐशो आराम की जिदगी जीने वाले जन प्रतिनिधि भी इसबार चारो खाने चित हो गए हैं। इनकी शान शौकत वाली जिदगी आम लोगों को रास नहीं आई।

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कोरोना काल में जनता से दूरी भी पड़ी महंगी

कोरोना संक्रमण जैसे संकट काल में ज्यादातर मुखिया व दूसरे प्रतिनिधियों ने आम जनता से दूरी बना ली थी। ऐसे में लोग खुद को बेसहारा महसूस कर रहे थे। इस बार वोटिग करते समय यह बात लोगों के जेहन में थी। अपनी उपेक्षा करने वाले जन प्रतिनिधियों को दुबारा मौका देना लोगों को गंवारा ना हुआ और उनका तख्ता पलट गया। कई पंचायत प्रतिनिधि व्यवहार के मामले में भी आम जनता की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। ऐसे प्रतिनिधि चुनाव जीतने के बाद खुद को आम लोगों से अलग समझने लगे थे। इनका बदला रंग लोगों को नहीं भाया। खुद को वीआइपी समझने वाले जन प्रतिनिधियों को वोट की ऐसी चोट पड़ी कि उनका राजपाट चला गया। तरारी के कई पंचायतों में पहले से काबिज मुखिया मुख्य मुकाबले में भी नहीं रहे। ऐसे लोगों को जनता ने पूरी तरह नकार दिया। इनमें ज्यादातर मुखिया चुनाव परिणाम सामने आने के बाद तीसरे स्थान पर चले गए। तरारी के मोआप खुर्द पंचायत में लोगों ने पहले से काबिज अनिल कुमार की जगह नौसिखुए विकास कुमार को बागडोर सौंप दी है।

वहीं, सेदहां में महज 22 साल के अक्षय कुमार पर लोगों ने भरोसा जताया है। इस बार के चुनाव परिणाम ने यह साबित कर दिया है कि जनता जनार्दन की उपेक्षा नहीं की जा सकती। अब जागरूक हो चुकी जनता को कोरे आश्वासन के सहारे दिग्भ्रमित कर रखना संभव नहीं है।


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