आइआइटीयन ऋचा की सुझाई तरकीब पर किसानों ने शुरू किया काम, मोटे अनाज से फायदा ही फायदा
मोटे अनाज से कुपोषण के विरुद्ध जंग में नया साल 2021 और कारगर सिद्ध होगा ऐसी उम्मीद की जा सकती है। पटना के भुसौला की रहने वाली ऋचा इस पर काम कर रही हैं और उन्होंने नए साल में पूरे बिहार में इसे प्रचारित-प्रसारित करने का लक्ष्य रखा है।
जयशंकर बिहारी, पटना। कोरोना संक्रमण काल ने बहुत कुछ सिखाया है। उस पुरानी जीवनशैली की ओर भी लौटाया है, जहां स्वस्थ रहने के लिए मोटे अनाज ही काफी थे। लोग अब फिर उस ओर लौट रहे हैं। मोटे अनाज से कुपोषण के विरुद्ध जंग में नया साल 2021 और कारगर सिद्ध होगा, ऐसी उम्मीद की जा सकती है। पटना के भुसौला की रहने वाली ऋचा इस पर काम कर रही हैं और उन्होंने नए साल में पूरे बिहार में इसे प्रचारित-प्रसारित करने का लक्ष्य रखा है। उन्होंने आइआइटी, रुड़की से बीटेक किया है। अभी पटना और आसपास के जिलों में जमीन की उर्वरा शक्ति और लोगों के स्वास्थ्य के लिए किसानों के बीच अभियान चला रही हैं।
धरा के साथ परिवार बन रहा स्वस्थ
पटना, जहानाबाद, खगड़िया, अरवल, औरंगाबाद, बेगूसराय, गया आदि जिलों के सैकड़ों किसान इनसे जुड़कर धरा के साथ-साथ परिवार के सदस्यों को भी स्वस्थ बना रहे हैं। ऋचा कहती हैं कि खास तौर से बिहार सहित उत्तर भारत में मोटे अनाज को दैनिक भोजन में शामिल करने की परंपरा रही है। इसमें बदलाव के कारण ही कैंसर, लीवर, किडनी, मधुमेह जैसी गंभीर बीमारियों के मरीज तेजी से बढ़े हैं। परंपरागत खेती के पीछे पांच हजार वर्षो का शोध है। वर्तमान खेती लाभ आधारित है, जबकि हमारी परंपरागत खेती स्वास्थ्य आधारित रही है। इंटरनेट मीडिया के माध्यम से किसान इस अभियान जुड़ रहे हैं। 2021 में इसका प्रसार पूरे राज्य में होगा।
पेट से जुड़ी हुई बीमारियों में भी लाभ
कृषि अनुसंधान परिषद और विश्व स्वास्थ्य संगठन के शोध प्रमाणित कर चुके हैं कि मडुआ, सोनहारी, चीना, कोदो, पुटकी, सामा, ज्वार-बाजरा जैसे मोटे अनाज में आवश्यक पोषण तत्व पर्याप्त मात्र में हैं। यह कुपोषण को दूर करने के साथ-साथ पेट से जुड़ी हुई बीमारियों को भी ठीक करता है। प्रति 100 ग्राम बाजरे में 11.6 ग्राम प्रोटीन, 67.5 ग्राम काबरेहाइड्रेट, आठ मिलीग्राम लौह तत्व और 132 मिलीग्राम कैरोटीन होता है। कैरोटीन आंखों को सुरक्षा प्रदान करता है। 100 ग्राम मड़ुआ में 344 मिलीग्राम कैल्शियम होता है। हमारे पूर्वजों के शोध को पश्चिम स्वीकार कर रहा है। एक किलो धान की नई किस्म के उत्पादन में करीब चार हजार लीटर पानी की खपत होती है, जबकि मोटे अनाज को इनकी तुलना में एक-तिहाई पानी चाहिए। शोध में प्रमाणित हो चुका है कि गेहूं मोटे अनाज का विकल्प नहीं हो सकता है।