Hindi Diwas 2019: अगर अंग्रेजी दे रही रोजी-रोटी तो हिंदी है रोजगार, इसी भाषा से पनपता है संस्कार Patna News
आज हिंदी दिवस है। संस्कारों को पनपती इस भाषा के लिए विशेष दिन की पूर्व संध्या पर दैनिक जागरण ने अपने पटना कार्यालय में साहित्यकारों से विचार लिए।
पटना, जेएनएन। हिंदी दिवस की पूर्व संध्या पर दैनिक जागरण कार्यालय में 'नई पौध को हिंदी से कैसे जोड़ें' विषय पर परिचर्चा का आयोजन किया गया। इसमें हिंदी के साहित्यकारों के साथ स्कूल-कॉलेजों में हिंदी पढ़ाने वाले शिक्षक व प्राध्यापक भी शामिल हुए।
विषय प्रवर्तन करते हुए दैनिक जागरण, बिहार के स्थानीय संपादक मनोज झा ने कहा कि हिंदी सिर्फ भाषा नहीं संस्कार है। ये संस्कार नई पीढ़ी तक रुचि के साथ कैसे पहुंचे, इस पर विचार करने की जरूरत है। हम-आप तो हिंदी की चिंता कर लेते हैं, पर क्या आने वाली पीढ़ी भी हिंदी को लेकर इतनी जागरूक होगी? स्कूलों के पाठयक्रमों में हिंदी के प्रति आई अरुचि को कैसे दूर किया जाए ये भी बड़ा सवाल है। बैठक में हमें चिंता के बजाय इसके निष्कर्ष पर विचार करने की जरूरत है।
समाचार संपादक भारतीय बसंत कुमार ने हिंदी का भविष्य संभावनाशील बताते हुए कहा कि सोशल मीडिया के प्रादुर्भाव के उपरांत हिंदी क्षेत्र में रोजगार के अवसर बढ़े हैं। फिल्मों ने जितना हिंदी के प्रचार-प्रसार में योगदान दिया है, उतना किसी ने नहीं दिया। कार्यक्रम के समापन पर सभी हिंदीसेवियों को जागरण की ओर से अंगवस्त्र देकर सम्मानित किया गया।
आज हिंग्लिश बन गई है बोलचाल की भाषा
बिहार हिंदी साहित्य सम्मेलन के प्रधानमंत्री डॉ. शिववंश पांडेय ने कहा कि एक वक्त था जब हिंदी की सेवा करने वाले को पूज्यनीय माना जाता था। देश सेवा से कम नहीं थी हिंदी सेवा। अंग्रजों के शासन में जब हम गुलामी की जिंदगी जी रहे थे, उस समय हिंदी का जो महत्व था उससे भी कम आज मिल रहा है। उस समय भारतीय हिंदी को अनिवार्य समझते थे। दूसरी पीढ़ी ने हिंदी को पढ़ा, पर इसके प्रति अनुराग खत्म हो चुका था। अभी की पीढ़ी के तो हालात ये हैं कि एपल जानती है, सेव नहीं। मॉल जानती है दुकान नहीं। माता-पिता भी बच्चों के इस रूप से प्रसन्न होते हैं। हिंग्लिश सामान्य बोलचाल की भाषा बन गई है।
हिंदी को साहित्येतर लेखन से जोडऩा होगा
साहित्यकार शिवदयाल ने कहा कि हिंदी के प्रति हमारी चिंता इसलिए है कि यह देश के आत्म गौरव और राष्ट्र गौरव से जुड़ा हुआ है। इससे इतर हिंदी को लेकर चिंता की आवश्यकता नहीं है। वैश्वीकरण की भाषा भले ही अंग्रजी है, पर हिंदी भारत की पहली और विश्व की तीसरी बड़ी भाषा है। पर यह भी सच है कि हिंदी में अंतर्राष्ट्रीय संवाद स्थापित नहीं किया जा सकता। उन्होंने कहा कि हिंदी की सर्वग्राहयता और समृद्धि के लिए यह जरूरी है कि इसमें साहित्येतर लेखन हो।
हिंदी के प्रति नई पीढ़ी में भी लगाव
राभाषा परिषद की सदस्य सविता सिंह नेपाली ने कहा कि नई पीढ़ी में हिंदी के प्रति भी चाहत और लगाव है। सरकार के स्तर से भी कभी ऐसा नहीं हुआ कि हिंदी से जुड़ाव के किसी आयोजनों या प्रयासों को रोका जाए। हां, पदाधिकारियों के स्तर से थोड़ी कमी जरूर रही है। हिंदी को बल कैसे मिले यह सरकार तक मजबूती से बताया नहीं जाता। सभी को हिंदी को आत्मसात करने का संकल्प लेना चाहिए।
हिंदी को लोकप्रिय बनाने वाले पाठ्यक्रम का अभाव
समाजसेवी व लेखिका निवेदिता झा ने कहा कि हिंदी को लोकप्रिय बनाने वाले पाठ्यक्रम का अभाव है। एक तरफ जहां बच्चों को पढ़ाने के लिए अंग्रेजी में कई तरह के प्रयोग किए जा रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ हिंदी को रसविहीन बना दिया गया है। इसके लिए स्कूल जिम्मेदार है। जिस प्रकार अंग्रेजी रोजी-रोटी देती है, हिंदी को भी रोजगार से जोडऩा होगा।
घर से ही हिंदी को दें बढ़ावा
शिक्षिका व उद्घोषिका पल्लवी विश्वास ने कहा कि प्रारंभिक बिंदु घर से ही बच्चों को हिंदी के लिए प्रोत्साहित करने की जरूरत है। हिंदी में गति से बच्चों के डर को खत्म किया जा सकता है।
जयंती-पुण्य तिथि तक न सिमटे हिंदी
कवि आचार्य आनंद किशोर शास्त्री ने कहा कि हिंदी की समृद्धि के लिए यह जरूरी है कि यह सिर्फ जयंती और पुण्यतिथि तक सिमट कर नहीं रह जाए। हिंदी साहित्य की सुलभता भी बढ़ानी जरूरी है।
नई पीढ़ी के बीच हो प्रचार-प्रसार
प्राध्यापक व साहित्यकार प्रो. बीएन विश्वकर्मा ने कहा कि हिंदी की मजबूती के लिए जरूरी है कि नई पीढ़ी के बीच प्रचार-प्रसार हो। पुस्तकालयों की जो कमी हो गई है, उसे फिर से स्थापित किया जाए।
विज्ञान को ऊंचाई तक ले जाने में हिंदी सक्षम
एएन कॉलेज में प्रोफेसर रमेश पाठक ने कहा कि हिंदी कभी विज्ञान के लिए बाधक नहीं बनी, बल्कि विज्ञान को ऊंचाई तक ले जाने में यह सक्षम है। विज्ञान के शिक्षकों में ये मनोवृत्ति है कि अंग्रेजी में ही पढ़ाया जा सकता है, पर यह सही नहीं है।
अंग्रेजी के लिए बाध्य न करें स्कूल
शिक्षिका सागरिका राय ने कहा कि हिंदी को मजबूत करना है तो अभिभावक स्कूल प्रशासन के समक्ष यह बात रखें कि बच्चों को अंग्रेजी बोलने के लिए बाध्य नहीं करें। हिंदी पढऩे वाले बच्चों को भी हीन भावना से उबारना होगा।
पब्लिक स्कूल के कारण हिंदी प्रभावित
हिंदी शिक्षक व लेखक वीरेंद्र कुमार भारद्वाज ने कहा कि पब्लिक स्कूलों के कारण नई पीढ़ी में अंग्रेजी विकसित हो रही है और हिंदी प्रभावित। बतौर शिक्षक मैंने इसे बहुत करीब से देखा है। हिंदी के विकास को नीति बननी चाहिए।
चिंता नहीं चिंतन की आवश्यकता
हिंदी शिक्षक राम कुमार सिंह ने कहा कि हिंदी को आगे बढ़ाने में शिक्षकों की भूमिका महत्वपूर्ण है। हिंदी आगे बढ़ रही है। हमें इसके लिए चिंता नहीं चिंतन करने की जरूरत है।
हिंदी-अंग्रेजी को समान समझें
साहित्यकार पुष्पा जमुआर ने कहा कि हिंदी और अंग्रेजी को सामान रूप से देखना होगा। अभिभावक को बच्चों के लिए दो परिधि बनानी होगी। रोजगार के लिए अंग्रेजी जरूरी है, हिंदी में संस्कार है।
परिवेश को करना होगा हिंदीमय
हिंदी शिक्षक अजय कुुमार दुबे ने कहा कि हिंदी को हीन भावना से देखने के बजाय परिवेश को हिंदीमय करना होगा। बिना परिवेश के हिंदी का विकास मुश्किल है।
व्यवहार में दिखे हिंदी से लगाव
शिक्षक लक्ष्मीकांत ने कहा कि हिंदी के लिए हम सब चिंता तो करते हैं, पर खुद ही अमल नहीं करते। अपने व्यवहार में भी हिंदी के प्रति लगाव लाना होगा।
सख्ती से समृद्ध होगी हिंदी
रंगकर्मी अविनय काशीनाथ ने कहा कि जागरूकता और पहल तो जरूरी है, मगर सबसे ज्यादा भूमिका सरकार की है। प्रशासक वर्ग तन्मयता एवं सख्ती से हिंदी को लागू कराने की पहल करें, तभी समृद्ध होगी हिंदी।
हिंदी के प्रति प्रोत्साहित हों शिक्षक
शिक्षिका मनीषा कुमार ने कहा कि शिक्षकों को भी हिंदी पढऩे-पढ़ाने के लिए प्रोत्साहित करना होगा। वे हिंदी के प्रति बेहतर सोच रखेंगे तब हिंदी को समृद्ध होने से कोई रोक नहीं सकता।