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बिहार आने वाले प्रवासी पक्षियों को लग गई है किसी की नजर, हो रहा शिकार

मंगोलिया, तिब्बत लद्दाख जैसे ठंडे प्रदेशों से हजारों की संख्या में पक्षी पटना सहित बिहार के कई इलाकों में प्रवास करने आते हैं। लेकिन अब इन पंक्षियों को किसी की नजर लग गई है।

By Ravi RanjanEdited By: Published: Sat, 20 Jan 2018 03:28 PM (IST)Updated: Sat, 20 Jan 2018 11:01 PM (IST)
बिहार आने वाले प्रवासी पक्षियों को लग गई है किसी की नजर, हो रहा शिकार

पटना [चारुस्मिता]। पक्षियों का चहचहाना किसे नहीं भाता। रंग-बिरंगे पक्षियों की चुन-चुन से आपकी नींद खुले तो दिन बन जाता है। यह माह विदेशी पक्षियों की खूबसूरती निहारने का है। नवंबर से लेकर मार्च तक का महीना इन्हीं पक्षियों की वजह से खास होता है। इसमें साइबेरिया, चीन, मंगोलिया, तिब्बत लद्दाख जैसे ठंडे प्रदेशों से हजारों की संख्या में पक्षी पटना सहित बिहार के कई इलाकों में प्रवास करने आते हैं।

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इन पक्षियों को देखने के लिए तो भीड़ कम लेकिन इन्हें मारने की जुगत आजकल अधिक हो रही है जिसके कारण इनकी संख्या में कमी दिख रही है। हर साल आने वाले प्रवासी पक्षियों का बड़ा प्रतिशत यहां से लौटकर नहीं जा पाता। इसका सबसे बड़ा कारण है इन्हें जाल में फंसाकर या फिर इन्हें मार देना।

शहर में बायपास रोड, चिडिय़ाखाना, दियारा का दलदली क्षेत्र, एनएमसीएच के पास का इलाका ऐसे इलाके हैं जहां इस साल भी ये हजारों की संख्या में आ रहे हैं लेकिन यह कहीं न कहीं सुरक्षित महसूस नहीं कर रहे। इनका हर दिन शिकार हो रहा है। नवंबर -मार्च में आते हैं यहां ये प्रवासी पक्षी हर साल के अंत अक्टूबर से नवंबर के बीच आते हैं।

इन्हें प्रवासी पक्षी भी इसलिए कहा है क्योंकि यह एक निश्चित समय पर हर साल आते हैं। ठंड प्रदेशों जैसे साइबेरिया, चीन, तिब्बत, लद्दाख, मंगोलिया, मंचूरिया और यूरोप के कुछ इलाकों से ये इन दिनों अपने खाने और रहने का इंतजाम करने आते हैं। इनका मुख्य भोजन जलीय जीव जंतु होते हैं जिसके लिए यह कई जगह प्रवास करते हैं।

ठंड में यहां है इनका अड्डा

ठंड आते ही ये प्रवासी पक्षी शहर के कई इलाकों में आते हैं। इसमें गंगा का दियारा क्षेत्र, पटना चिडिय़ाखाना के बगल के दलदली क्षेत्र, बायपास के इलाके के पोखर-तालाब सहित छोटे बड़े जलीय स्थल प्रमुख हैं। चूंकि इन पक्षियों का भोजन जलीय जीव होते हैं इसलिए यह दलदली इलाकों में रहना पसंद करते हैं। इस कारण  बिहार में इन दिनों भारी संख्या में ये प्रवासी पक्षी आते हैं। फतुहा, वैशाली स्थित बरेला, कांवर झील के इलाके में भी काफी संख्या में ये प्रवास करने आते हैं।

जो लौट कर नहीं जा पाते अपने प्रदेश

पिछले कई दशकों से शहर के विभिन्न इलाकों में विदेशी पक्षी प्रवास करने तो आते हैं लेकिन पूरी जनसंख्या का बड़ा प्रतिशत अपने प्रदेश नहीं लौट पाते हैं। इसका प्रमुख कारण है इनका शिकार। चिडिय़ाघर के बगल, दियारा क्षेत्र से लेकर बरेला और अन्य वेट लैंड पर यह अब सुरक्षित नहीं हैं। इनका शिकार कई तरह से किया जाता है। शौकिया तौर पर भी लोग इसका शिकार करते हैं और साथ ही साथ जो प्रोफेशनल व्यवसायी होते वह भी इन्हें मारते हैं। कुछ लोग इसे खाने के लिए शिकार करते हैं तो कुछ इन्हें बेचने के लिए शिकार में जाते हैं।

पकड़ते हैं इन्हें नेट लगाकर और फ्यूराडॉन भरकर

इन पक्षियों को वहां के लोग नेट लगाकर पकड़ रहे हैं। ऊंची-ऊंची जगहों से लेकर जलीय स्थलों में भी इनको जाल लगाकर पकड़ा जा रहा है। इसके अलावा शिकारियों ने एक नया नुस्खा भी इजाद किया है। टिड्डा को मारकर इसमें यह फ्यूराडॉन भरते हैं इसके बाद यह इनको खाकर ये पक्षी दम तोड़ देते हैं। फ्यूराडॉन एक कीटनाशक है जो बहुत ही विषैला होता है। टिड्डे के पेट में यह इन्हें खास तौर से भरते हैं ताकि इन्हें यह खाकर मर जाएं।

तो नहीं आएंगे ये यहां

विकास की दौड़ में आए दिन लोग ऐसे वेट लैंड को खेत में तब्दील किया जा रहा है। इन जगहों को रिहायशी इलाके में विकसित किया जा रहा है जिसके कारण शहर कंक्रीट का जंगल बनता जा रहा है। इन प्रवासी पक्षियों का भोजन जलीय जीव जैसे मेढ़क, मछली, सांप, जलीय घास होते हैं जो इनकी समाप्ति के कारण मिल नहीं पाते। इस कारण भी प्रवासी पक्षी नहीं आते। शहर में कुछ ही जगह बच गए हैं जहां ऐसे जलीय स्थल बच गए हैं। इसलिए लोगों को और सरकार को भी इस तरह के वेट लैंड विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए।

आप अनजाने में कहीं कानून तो नहीं तोड़ रहे?

ऐसे कई कानून हैं जिनके बारे में लोग नहीं जानते हैं और अनजाने में ही इनका उल्लंघन होता है। जैसे वाइल्डलाइफ एक्ट 1972 के तहत सुग्गा, तोता, बाज, मुनिया, मैना और मोर को पालना या पिंजरे में कैद रखना कानूनन अपराध है। इसके अलावा अवैध पक्षियों का विक्रय भी एक अपराध है जो पटना में खुलेआम हो रहा है। शहर में इसका एक मार्केट ही है जहां आपको हर तरह के पक्षी तो मिलते ही हैं साथ ही साथ यहां कई जानवर जो बेचना मना है वह भी मिल जाएंगे। यह है सुल्तानगंज स्थित मीर शिकार टोला का बाजार। यहां आपको हर तरह की चिडिय़ा और पालतू पशु मिल जाएंगे। इसके अलावा शहर में घूम घूम कर भी इसे बेचा जाता है।

ये हैं प्रवासी पक्षी
बघेरी
लालसर
अधंगा
सुरखाब ( चकवा)
मजीठा
अरुण
चेंड
गोल्डेन डक

यहां से आते हैं ये
चीन
तिब्बत
लद्दाख
साइबेरिया
मंगोलिया
मंचूरिया

सरकार वेटलैंड को विकसित करने के बजाए इसे सिकोडऩे की योजनाएं ला रही है। इन पक्षियों के  आने के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण कारक है। इनका अवैध शिकार और क्रय और विक्रय पर कोई रोक टोक नहीं है। कई बार ऐसे शिकार करने की फोटोग्राफी करने में मुझपर जानलेवा हमले भी हुए। सरकार को इस पर एक्शन लेना चाहिए।
अरविंद मिश्रा, स्टेट बोर्ड फॉर वाइल्डलाइफ, बिहार सरकार

इनको बचाने का केवल एक तरीका है कि इन्हें हम सुरक्षित महसूस करवाएं। इसके लिए शिकार करने वालों पर कड़ी कार्रवाई करने की जरुरत है। लोगों को भी इसके लिए जागरूक करना बहुत जरूरी है ताकि यह आने में डरें नहीं। हमें लोगों को बताना होगा कि इन्हें मारें नहीं।
समीर सिन्हा, वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट

इन पक्षियों को अगर हम सुरक्षा प्रदान करेंगे तो आने वाले दिनों में हमारा टूरिज्म बढ़ जाएगा। इन जगहों पर लोग दूर दूर से इन दुर्लभ पक्षियों को देखने आएंगे। लेकिन इस तरह के शिकार पर सरकार को शिकंजा कसना होगा नहीं तो पक्षी देखने तो दूर यहां आ भी नहीं पाएंगे।
राज श्रीवास्तव


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