पटना सिविल कोर्ट की एेतिहासिक कार्रवाई, 16 घूसखोर कर्मियों को किया सस्पेंड
पटना सिविल कोर्ट में खुलेआम घूस लेने वाले करीब 16 कर्मचारियों पर संज्ञान लेते हुए पटना हाइकोर्ट ने उन्हें सस्पेंड कर दिया है। कोर्ट ने पहली बार एेसा फैसला लिया है।
पटना [जागरण टीम]। पटना सिविल कोर्ट में खुले आम कुछ पेशकारों द्वारा रिश्वत लिए जाने के मामले को पटना हाईकोर्ट प्रशासन ने गंभीरता से लिया है और एक साथ 16 घूसखोर कर्मियों को निलंबित कर दिया है। बुधवार को एक निजी टीवी चैनल में दिखाए जा रहे रिश्वत की सीडी पर मुख्य न्यायाधीश राजेंद्र मेनन ने तत्परता से कार्रवाई शुरू की।
हाईकोर्ट प्रशासन ने रिश्वत लेने वाले उन सारे पेशकारों और क्लर्क पर कार्रवाई शुरू करते हुए पटना के जिला जज को दोषी पाए गए सारे कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित करने का निर्देश दिया है। साथ ही जिला जज से कहा गया है कि वे अपने स्तर से रिश्वत लेने संबंधी आरोप की जांच कर रिपोर्ट पेश करें।
जिला एवं सत्र न्यायाधीश कृष्णकांत त्रिपाठी ने चार कर्मचारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया। पेशकार मुकेश कुमार, रमेंद्र कुमार, संतोष तिवारी और आशुलिपिक सुबोध कुमार निलंबित किए गए हैं। ये चारों उत्पाद विभाग की विशेष अदालत में कार्यरत हैं, इसके साथ ही 12 कर्मचारी आज निलंबित किए गए हैं। इस तरह की कार्रवाई पटना सिविल कोर्ट के इतिहास में पहली बार हुई है।
गुरुवार को सिविल कोर्ट के 12 कर्मी किए गए निलंबित
बुधवार को कोर्ट ने चार कर्मियों को निलंबित किया था। ये सभी भ्रष्टाचार के लपेटे में आए हैं। एक निजी टीवी चैनल ने स्टिंग में इन्हें रिश्वत लेते दिखाया था। हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के निर्देश पर हो रही कार्रवाई। पटना सिविल कोर्ट के इतिहास में पहली बार ऐसा मामला और ऐसी कार्रवाई।
मुख्य न्यायाधीश के सेलफोन पर क्लिप
पटना हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार जनरल बीबी पाठक ने जानकारी दी कि निजी चैनल में चल रही खबर की जानकारी एक क्लिपिंग के द्वारा मुख्य न्यायाधीश के मोबाइल पर भेजी गई थी। यह नहीं पता चल पाया मैसेज किस व्यक्ति द्वारा भेजा गया था। मुख्य न्यायाधीश ने चैनल द्वारा दिखाई गई क्लिप को सही मानते हुए तत्काल कार्रवाई शुरू कर दी।
उन्होंने रजिस्ट्रार जनरल को सारी बातें बताईं। साथ ही कार्रवाई के लिए जिला जज को लिखा गया। चैनल द्वारा स्टिंग ऑपरेशन में कोर्ट के अनेक कर्मचारी रुपये लेते देखे गए हैं। प्रसारित रिपोर्ट से बिहार की न्यायपालिका की छवि धूमिल हो रही थी।
राज्य न्यायपालिका के प्रमुख ने त्वरित कार्रवाई का फैसला लिया। बताया गया कि भले ही प्रथम दृष्टया घटना असत्य ही साबित क्यों न हो, तत्काल निलंबन तो किया ही जा सकता है।
मचा है हड़कंप
इस कार्रवाई से जिला अदालत के कर्मचारियों के बीच हड़कंप मचा हुआ है। अधिवक्ता देर शाम तक नुक्ताचीनी करते रहे। उनका कहना था कि सूबे की हर अदालत में पेशकारी के नाम पर दोहन हो रहा है। सूत्र बताते हैं कि पीडि़त लोग इसकी शिकायत निगरानी विभाग या सीबीआइ के पास ले जाना चाहते हैं।
नाम नहीं छापने की शर्त पर एक जांच एजेंसी के अधिकारी ने बताया कि पहले किसी से रिश्वत मांगने की शिकायत के बाद धावा दल कार्रवाई करता था। वर्तमान में धावा दल को किसी भी तरह की कार्रवाई के लिए उच्च न्यायालय से इजाजत लेनी पड़ती है।
कहा-जिला जज ने
'अदालत न्याय का मंदिर है। अदालत में किसी प्रकार का भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। यहां लोग न्याय के लिए आते हैं। न्याय के लिए आने वाले लोगों के साथ अन्याय नहीं होने दिया जाएगा।
- कृष्णकांत त्रिपाठी, जिला जज