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पटना हाईकोर्ट ने दिखाई तल्खी, पूछा-इतने वार्ड पार्षद हैं, ये जनता के लिए करते क्या हैं

पटना में हुए जलजमाव के मामले में हाईकोर्ट ने पटना नगर निगम से पूछा है कि यहां इतने वार्ड पार्षद हैं तो ये जनता के लिए करते क्या हैं?

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 26 Oct 2019 11:11 AM (IST)Updated: Sat, 26 Oct 2019 05:25 PM (IST)
पटना हाईकोर्ट ने दिखाई तल्खी, पूछा-इतने वार्ड पार्षद हैं, ये जनता के लिए करते क्या हैं

पटना, राज्य ब्यूरो। पटना में पिछले माह हुए जल-जमाव और उससे फैली गंदगी को लेकर पटना हाईकोर्ट में शोर-शराबा के बीच विभिन्न पक्षों ने नागरिकों, प्रशासन और नगर निगम के कामकाज की पोल खोली। कई अधिवक्ता कड़वी सच्चाई से कोर्ट को अवगत कराते रहे। कोर्ट ने कार्रवाई रिपोर्ट मांगी है। उससे संतुष्ट नहीं होने पर विशेष जांच दल बनाया जा सकता है।

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शुक्रवार को इस मामले में सुनवाई अधूरी रही। इस दौरान हाईकोर्ट ने सवाल उठाया कि पटना में नगर निगम के इतने पार्षद हैं, वह जनता के लिए करते क्या हैं? 

30 साल से सुनवाई, 300 आदेश लेकिन कोई सुधरा ही नहीं 

शुक्रवार को जैसे ही जलजमाव और अन्य बुनियादी सुविधाओं को लेकर न्यायाधीश शिवाजी पाण्डेय एवं न्यायाधीश पार्थ सारथी की खंडपीठ में सुनवाई शुरू हुई तो वहां मौजूद अधिवक्ताओं ने कहना शुरू किया कि जलजमाव पर 30 साल से सुनवाई चल रही है। 300 बार आदेश हो चुका है। सुधार नहीं दिख रहा। अब आदेश नहीं संबंधित पदाधिकारियों को सजा देने की बात होनी चाहिए। 

आखिर क्या करते हैं इतने सारे वार्ड पार्षद 

शिकायतों को सुनने के बाद खंडपीठ के न्यायाधीशों ने पूछा कि पटना नगर निगम के अंतर्गत अनेक वार्ड पार्षद हैं, क्या ये जनता का हाल- चाल लेते हैं? ये क्षेत्र का निरिक्षण करते हैं? कभी तो ऐसा देखने में नहीं आया की वार्ड पार्षद जलमग्न क्षेत्रों का दौरा भी करते हों ?

इस पर एक साथ कई वकीलों ने कहा कि किसी भी वार्ड पार्षद को प्रभावित क्षेत्रों में नहीं देखा गया है। निगम कार्यालय में जमे रहते हैं और आपसी विवादों में लगे रहते हैं। वकीलों की सारी बातों को सुनने के बाद अदालत ने कहा कि जांच के लिए वकीलों की टीम भी गठित की जा सकती है और उनसे रिपोर्ट भी मांगा जा सकता है। सुनवाई अधूरी रही ।   

महाधिवक्ता ने नागरिकों की गलती की ओर किया इशारा 

महाधिवक्ता ललित किशोर ने सफाई दी कि पूरा पटना कटोरे के आकार में है। थोड़ी सी बारिश के बाद भी यहां जलजमाव की समस्या उत्त्पन्न हो जाती है। यही नहीं लोगों ने अवैध रूप से घर बना लिया है। जहां- तहां अवैध कालोनियां बसा ली गई हैं। ऐसे स्थान से पानी निकालना आसान नहीं होता है।

इसपर न्यायाधीश ने सवाल पूछा कि  जिस समय अनाधिकृत रूप घर बना लिए गए और कॉलोनियां बसाई गईं, उस समय सरकार क्या कर रही थी ? इस पर महाधिवक्ता ने कुछ नहीं कहा और दावा किया कि पटना से पानी निकालने में और 4-6 दिन का समय लग सकता है।

पिछले आदेश के बाद युद्धस्तर पर पानी निकाला गया। अनेक कॉलोनियों से पानी निकाल दिया गया है। जो एकदम गड्ढे में हैं, जैसे जल्ला और गोला रोड, वहां से पानी निकालना कठिन है। उन्होंने यह भी कहा कि शहर को नारकीय स्थति बनाने में पब्लिक भी कम जिम्मेदार नहीं है। लोग जहां-तहां कचरा फेंक देते हैं। तब न्यायाधीश पाण्डेय ने कहा कि डोर-टू-डोर कचरा कलेक्ट करने वाला नियमित रूप से आता भी कहां है ? मैं स्वयं भुक्तभोगी हूं।

जवाब में महाधिवक्ता ने कहा कि सब क्षेत्रों के लिए टेलीफोन नंबर दिए गए हैं शिकायत होने पर कार्रवाई होती है। इस पर अनेक वकीलों ने आरोप लगाया कि संबंधित कोई भी पदाधिकारी फोन नहीं उठाते हैं । महाधिवक्ता ने जिन फोन नंबरों का जिक्र किया है, उस पर न्यायाधीश स्वयं फ़ोन कर के देख लें। भरी अदालत में अधिकारियों की पोल खुल जाएगी । कोई फोन नहीं उठाता है। यह सब दिखाने के हैं। 


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