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पटना रावण वधः कोरोना ने दी रावण को संजीवनी, 67 साल में पहली बार गांधी मैदान में आज नहीं जलेगा दशानन

पटना रावण वधः पटना में भी उत्सवों का स्वरूप बदल गया है। कोरोना को हराने के लिए राजधानी में होने वाली रामलीला जहां वर्चुअल हुई तो गांधी मैदान में होने वाला रावण वध का आयोजन इस बार नहीं होगा।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sun, 25 Oct 2020 10:30 AM (IST)Updated: Sun, 25 Oct 2020 10:30 AM (IST)
पटना रावण वधः कोरोना ने दी रावण को संजीवनी, 67 साल में पहली बार गांधी मैदान में आज नहीं जलेगा दशानन
पटना में आयोजित रामलीला का दृश्य। जागरण आर्काइव।

पटना, जेएनएन। कोरोना के असर ने हर क्षेत्र को परेशान किया है। पटना में भी उत्सवों का स्वरूप बदल गया है। कोरोना को हराने के लिए राजधानी में होने वाली रामलीला जहां वर्चुअल हुई तो गांधी मैदान में होने वाला रावण वध का आयोजन इस बार नहीं होगा। अदृश्य वायरस रावण के लिए संजीवनी बन गया। ऐसे में रविवार को शहर की रौनद तो कम दिख ही रही है साथ ही पटना की शान गांधी मैदान भी कुछ बदला-बदला से नजर आ रहा है।  

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मथुरा में कलाकारों ने प्रसंग किए मंचित

शहर में दशहरा के अवसर पर रामलीला और विजयादशमी के दिन रावण वध के आयोजन की परंपरा वर्षों पुरानी रही है। दशहरा कमेटी ट्रस्ट के अध्यक्ष कमल नोपानी बताते हैं कि बीते 67 सालों में पहली बार आज ऐसा होगा कि पटना में रामलीला और रावण वध का आयोजन नहीं हो सकेगा। श्रद्धालु अपनी सांस्कृतिक विरासत से दूरी महसूस नहीं करें, इसके लिए इस बार आयोजन की व्यवस्था मथुरा में की गई। मथुरा के ही आचार्य गिरिराज किशोर के नेतृत्व में कलाकार भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़े प्रसंग मंचित किए। दशहरा कमेटी के सदस्य टीआर गांधी ने बताया कि 17 अक्टूबर से मथुरा में रामलीला की शुरुआत हो गई थी। रामलीला का मंचन 50 कलाकारों की टीम ने किया। 

 65-70 फीट का होता था रावण

गांधी मैदान में रावण वध के लिए पुतला बनाने का काम कई सालों से गया के मुस्लिम कारीगर करते रहे हैं, पर इस बार कोरोना के कारण पुतला का निर्माण कार्य नहीं हुआ। उन्होंने बताया कि गांधी मैदान में दशमी के दिन भव्य कार्यक्रम होता था। यहां रावण व कुंभकर्ण के 65-70 फीट ऊंचे पुतले बनाए जाते रहे हैं, पर इसबार सब सूना है।

एक महीने पहले आ जाते थे मूर्ति बनाने

गया के रहने वाले जफर की मानें तो वे पटना में दशहरा के मौके पर वर्ष 2009 से रावण, कुंभकर्ण और मेघनाद के पुतलों का निर्माण कार्य करते रहे हैं। जफर की मानें तो इसे बनाने के लिए महीना भर पहले पटना आते थे। वे बताते हैं कि पुतला बनाने का काम अपने पिता मोहम्मद नूर मियां से सीखा था, जो अब इस दुनिया में नहीं रहे।मोहम्मद जफर की मानें तो आकार के अनुसार पुतला बनाने में सामग्री लगती है। इस बार दशहरा में 75 फीट का रावण, 60 फीट का कुंभकर्ण और 65 फीट का मेघनाद का पुतला बनाने की सोची थी, मगर ऐसा नहीं हो पाया। 

बुराई के प्रतीक रावण को जलते देख होती थी खुशी

मोहम्मद जफर की मानें तो इस काम में ज्यादा फायदा नहीं है, लेकिन यह काम अपने शौक से करते थे। पिता से मिली विरासत को जब तक जिंदा रहेंगे, तब तक करते रहेंगे। जफर बताते हैं कि बुराई के प्रतीक रावण के पुतला को जलता देख बहुत खुशी होती थी। समाज में बुराई के प्रतीक रावण को भी जलाने की जरूरत है।


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