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हाल नेपाल का- बदल गई 'कहानी', छिन गई निशानी

कला-संस्कृति के लिए विख्यात नेपाल की राजधानी काठमांडू पर बरपे कुदरत के कहर ने इससे इसकी कई अमूल्य निशानियां छीन लीं। यूं तो पुरातात्विक महत्व की इमारतों का ही अस्तित्व समाप्त हो गया।

By pradeep Kumar TiwariEdited By: Published: Mon, 11 May 2015 10:58 AM (IST)Updated: Mon, 11 May 2015 11:00 AM (IST)

काठमांडू [संजय कुमार उपाध्याय]। कला-संस्कृति के लिए विख्यात नेपाल की राजधानी काठमांडू पर बरपे कुदरत के कहर ने इससे इसकी कई अमूल्य निशानियां छीन लीं। यूं तो पुरातात्विक महत्व की इमारतों का ही अस्तित्व समाप्त हो गया। लेकिन, 'काष्ठ मंडप' का ध्वस्त होना पूरे नेपालवासियों को खल रहा है। काठमांडू की पहचान, विरासत और हर दिल अजीज।

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काष्ठ मंडप का निर्माण मात्र एक पेड़ की लकड़ी से कराया गया था। पर्यटक भी सबसे पहले यहीं आते थे। बल्कि, नेपाल आने वाले हर विदेशी इस विशाल मंडप को देखना जरूर चाहता था। राजधानी की महानगरपालिका ने भी ऐसी व्यवस्था कर रखी थी कि दूसरे देशों के राष्ट्राध्यक्ष के नेपाल आने पर पहला अभिवादन यहीं किया जाता था।

सुरक्षित रखी गई लकडिय़ां : 25 अप्रैल को काठमांडू में आए भूकंप में हनुमान ढोका स्थित इस मंडप की लकडिय़ां अलग-अलग हो गईं। भवन गिर गया। नेपाल सरकार ने इस ऐतिहासिक भवन की लकडिय़ों को संजोकर रखा है। भूकंप में पुराने ऐतिहासिक भवनों को सर्वाधिक क्षति हुई। उनके मलबे से वैसी चीजों को निकालकर याद के लिए सुरक्षित रखा जा रहा है। सूत्रों के अनुसार सरकार की कोशिश होगी कि धीरे-धीरे उन्हें पुनस्र्थापित किया जा सके। दूसरी तरफ पर्यटक तबाही के निशान की जगह कुछ सकारात्मक चीजों को देख सकें। पाटन दरबार म्यूजियम, ललितपुर के निदेशक देवेंद्रनाथ तिवारी कहते हैं कि काठमांडू की इस विरासत का ध्वस्त होना देश के लिए बड़ी क्षति है। इनके अवशेषों को सुरक्षित रखा जा रहा है।


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