बिहार चुनाव : मिथिला में मोदी या फिर उम्मीदवार का माद्दा ही मुद्दा
मिथिलांचल में न कोई मुद्दा है, न कोई दागी और ना ही बागी। मसला है तो सिर्फ मोदी या फिर माद्दा। जाति के लिहाज से सबसे बड़ा वोटर वर्ग मैथिल ब्राह्मïणों की उदासीनता भाजपा के लिए सबसे बड़ी चिंता का सबब है।
दरभंगा [राजकिशोर]। मिथिलांचल में न कोई मुद्दा है, न कोई दागी और ना ही बागी। मसला है तो सिर्फ मोदी या फिर माद्दा। जाति के लिहाज से सबसे बड़ा वोटर वर्ग मैथिल ब्राह्मïणों की उदासीनता भाजपा के लिए सबसे बड़ी चिंता का सबब है।
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मिथिला के ब्राह्मïणों को कोई चिढ़ या दिक्कत भी नहीं है। वैसे उनकी पहली पसंद भाजपा तो है, लेकिन स्थानीय नेतृत्व से शिकवा व टिकटों के वितरण में अनदेखी पर वे वोटिंग को लेकर ही उत्साहित नहीं हैं। ऐसे में राजग की संभावनाओं का सारा दारोमदार अब नरेंद्र मोदी के करिश्मे पर टिका है। साथ ही महागठबंधन का उसके अपने उम्मीदवारों के दम-खम या माद्दे पर।
दरअसल, तीसरे और चौथे चरण में नरेंद्र मोदी का जादू दिखा, मगर पांचवां व अंतिम चरण मोदी के करिश्मे की असली परीक्षा लेगा। 5 नवंबर को होने वाले मतदान में सीमांचल, कोसी और मिथिलांचल की 57 सीटें दांव पर हैं।
मुसलिम बहुल सीमांचल में महागठबंधन का जोर माना जा रहा है। लिहाजा इस चरण में भाजपा की सारी संभावनाएं मिथिलांचल और कोसी से ही हैं। उसकी कोशिश यह रही है कि 29 सीटों में ही च्यादा से च्यादा भरपाई कर इस चरण को अपने खिलाफ कम से कम जाने दिया जाए।
इसके लिए ब्राह्मïणों के मतों का बंटवारा रोकना राजग के लिए असली चुनौती है। दरभंगा और मधुबनी दस-दस, सुपौल की पांच और सहरसा की चार सीटें, यानी कुल मिलाकर 29 सीटें मिथिलांचल की मानी जा रही हैं।
मैथिल ब्राह्मïणों का असमंजस
मिथिला के असली गढ़ दरभंगा जिले में 2010 के विधानसभा चुनाव में जब नीतीश राजग में थे तो यहां भाजपा का प्रदर्शन सबसे बेहतर था। दरभंगा की 10 विधानसभा सीटों में से तब छह भाजपा, दो जदयू को गई थीं और दो राजद ले गया था।
मौजूदा राजग के लिए आठ सीटों पर जीत दोहराना तो लगभग नामुमकिन ही है। अलबत्ता सही मायनों में छह सीटें, जिन पर भाजपा लड़ रही है, उन पर ही सारी संभावनाएं हैं। तीन सीटें लोजपा और एक सीट जीतन राम मांझी की 'हमÓ के पास है।
फिलहाल जैसी हवा है उसमें ब्राह्मïण मतदाता लोजपा और 'हमÓ की तुलना में नीतीश कुमार के प्रत्याशी को च्यादा पसंद कर रहे हैं। इसका एक कारण यह भी है कि नीतीश ने जहां दो ब्राह्मïणों को दरभंगा जिले से टिकट दिया है, वहीं भाजपा ने मात्र एक। इसके अलावा आरक्षण पर जिस तरह से भाजपा ने भी रुख साफ किया है, उससे भी मिथिला के ब्राह्मïणों का कहना है कि फिर हमारे लिए तो सभी दल एक समान हैं।
दरभंगा में अगर जातीय समीकरण देखें तो 20 फीसद ब्राह्मïण, करीब चार फीसद भूमिहार और पांच फीसद वैश्य हैं। यह परंपरागत रूप से भाजपा का करीब 30 फीसद वोट बैंक माना जाता है।
इसी तरह महागठबंधन के पक्ष में सीधे 16 फीसद मुसलिम और 13 फीसद से च्यादा यादव करीब 30 फीसद परंपरागत वोट बैंक है। असली लड़ाई 40 फीसद की है, जिसमें 12 फीसद अनुसूचित जाति बाकी अन्य पिछड़ी व दलित जातियां हैं।
आखिरी तीन दिन अहम : दोनों ही पक्षों ने एक दूसरे के परंपरागत वोटबैंक में सेंध लगाने की कोशिश की है, लेकिन माना जा रहा है कि असली खेल अंतिम तीन दिनों में होगा। यही कारण है कि मोदी ने 1 नवंबर को जहां मधुबनी में रैली की, वहीं मिथिलांचल के असली गढ़ दरभंगा में 2 नवंबर को उन्होंने रैली की।
दोनों सटे जिलों में लगातार मोदी का आना ही इस बात का संकेत है कि भाजपा नेतृत्व भी मिथिलांचल में कांटे की लड़ाई को लेकर कितना सजग है। वहीं महागठबंधन से राजद अध्यक्ष लालू प्रसाद भी यहां दो दिन आ रहे हैं और प्रचार के अंतिम दिन यानी 3 नवंबर को नीतीश कुमार दरभंगा और मधुबनी इलाके में ही तूफानी दौरा करेंगे।
माना जा रहा है कि जैसे तीसरे-चौथे चरण में मोदी की जनसभाओं ने भाजपा समर्थक वोटरों और काडरों की जड़ता तोड़ी, वैसा ही करिश्मा यहां भी होगा। वैसे भी इस इलाके को भाजपा के शीर्षस्थ नेता और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने विकास के साथ-साथ मैथिली को राजभाषा की आठवीं अनुसूची में शामिल कराने का तोहफा भी दिया था। वाजपेयी की विरासत और मोदी के करिश्मे के सहारे ही भाजपा को उम्मीद है कि उनकी गलतियां इस चरण में भी छिप जाएंगी। चूंकि मोदी ऐसा लगातार कर रहे हैं तो राजनीतिक पंडित भी मान रहे हैं कि उनकी रैलियों का निश्चित रूप से असर पड़ेगा और भाजपा का वोट एकजुट होकर घर से निकलेगा।
बाढ़ का मुद्दा सूखा
दरअसल, बौद्धिक रूप से बेहद संपन्न मिथिला का अपना मिजाज कुछ अलग ही रहता है। ज्ञान का गर्व कहें या दर्प, इस इलाके के लोग राजनीतिज्ञों की कड़ी परीक्षा लेते रहे हैं।
यहां कल-कारखाने 90 से बंद हैं, लेकिन वह कभी मुद्दा नहीं बनता। एक ही मुद्दा बनता रहा है हर बार चुनाव में बाढ़ का, क्योंकि हर साल यहां खेतों में पानी भर जाता है, मगर चार साल से यहां
सूखा सा पड़ गया है। लिहाजा बाढ़ का मुद्दा भी सूख गया। आखिरी बार 2010 में इस इलाके में बाढ़ आई थी, उस समय मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने इलाके में राहत की ऐसी बारिश की थी कि लोग अभी तक उसे नहीं भूले हैं। गरीब-अमीर छोड़ हर घर में उन्होंने एक क्विंटल अनाज भेज दिया था, जिससे उन्हें यहां क्विंटलिया बाबा भी कहा जाने लगा था।
पग-पग पोखर माछ मखान,
मधुर बोल मुस्की मुख पान।
विद्या वैभव शांति प्रतीक,
ललित नगर मिथिल थीक।
(मिथिलांचल को परिभाषित करती ये चार पंक्तियां हैं। मतलब जहां जगह-जगह तालाब हैं। भोजन मछली और मखाना है। मीठी मैथिल बोली और मुस्कराते चेहरों में पान है। ज्ञान, समृद्धि और शांति जिसकी पहचान है।)