मिशन 2019: दलों की संख्या बढ़ा सकती है महागठबंधन की मुसीबतें, जानिए
बिहार में भाजपा के विरोध में विपक्ष महागठबंधन की छतरी के नीचे इकट्ठा हो रहा है। लेकिन चुनाव में सीट शेयरिंग का मामला फंस जाए तो आश्चर्य नहीं।
पटना [अरविंद शर्मा]। बिहार में महागठबंधन के घटक दलों का आकार लगातार विस्तार की ओर बढ़ रहा है। इसमें अभी तक छोटे-बड़े 10 दलों की एंट्री हो चुकी है। अब सीटों का बंटवारा बाकी है। बिहार में पहली बार भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के विरोध में इतनी बड़ी संख्या में दलों को एकजुट किया जा रहा है। ऐसे में सीट बंटवारे के वक्त तकरार से इनकार नहीं किया जा सकता है। जीतनराम मांझी ने तो सम्मानजनक सीटें नहीं मिलने पर चुनाव नहीं लड़ने की घोषणा कर इस तकरार का आरंभ भी कर दिया है।
एक छतरी के नीचे आए विपक्षी दल
हैसियत देखे बिना महागठबंधन में सबको समायोजित करने की बेताबी बड़े दलों के लिए झंझट का सबब बन सकती है। हालांकि, वामदलों की भागीदारी की विधिवत घोषणा अभी भी बाकी है, किंतु राजद, कांग्रेस, राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (रालोसपा), हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (हम), शरद यादव के लोकतांत्रिक जनता दल के बाद अब मुकेश सहनी की विकासशील इंसान पार्टी (वीआइपी) एक छतरी के नीचे इकट्ठा हो चुकी हैं।
इनकी भी चल रही बात
पिछली बार रालोसपा के टिकट पर सांसद बने अरुण कुमार की राष्ट्रीय समता पार्टी (सेक्युलर) की बात भी बन चुकी है। वामपंथी पार्टियों (भाकपा, माकपा और माले) की बात भी गंभीरता से चलाई जा रही है। पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी भी कांग्रेस के मार्फत प्रवेश की कोशिश में है तो कभी जदयू में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के करीब रहे निर्दलीय विधायक अनंत सिंह भी महागठबंधन का दरवाजा खटखटा रहे हैं।
सीट शेयरिंग के सवाल पर हो सकता बवाल
किसको कितनी सीटें मिलेंगी और कहां से कौन लड़ेगा? इस सवाल का समाधान बिना बवाल के संभव नहीं दिख रहा है। खासकर तब जब कांग्रेस की तैयारी जनता दल यूनाइटेड (जदयू) की तरह बराबरी के आधार पर राजद से हिस्सेदारी मांगने की है। राजद को भी अपनी जमीन बचाने के लिए कम से कम 20 सीटें चाहिए।
उपेंद्र कुशवाहा ने भाजपा से जिस वजह से कुट्टी की है, वह महागठबंधन में भी कमजोर नहीं है। जीतनराम मांझी ने कह दिया है कि उन्हें सम्मानजनक सीटें चाहिए। शरद यादव भी प्रत्याशियों की फौज लेकर घूम रहे हैं।
वक्त तय करेगा, कौन देगा कितनी कुर्बानी
ऐसे में छोटे दलों की महत्वाकांक्षा के आगे कौन कितनी कुर्बानी देगा, यह वक्त पर तय होगा। फिलहाल महागठबंधन का दरवाजा सबके लिए खुला है।