वीसी नियुक्ति पैनल हुआ लीक, राज्यपाल ने जताई आपत्ति
तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय और वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय आरा में कुलपतियों का नियुक्ति पैनल लीक होने पर राज्यपाल ने नाराजगी जताई है।
By Edited By: Published: Sat, 16 Mar 2019 02:00 AM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2019 02:00 AM (IST)
पटना। तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय और वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा में कुलपतियों का नियुक्ति पैनल लीक होने पर राज्यपाल ने कुलपतियों की बैठक में आपत्ति दर्ज की। उन्होंने कहा कि गोपनीय मामले भी सार्वजनिक कर दिए जा रहे हैं। उन्हें और उनके प्रधान सचिव को सर्च कमेटी के पैनल की जानकारी से पहले ही कई लोगों को पता चल गया कि कौन किस क्रम में हैं। कुलपतियों को राज्यपाल ने भविष्य में गोपनीयता का ख्याल रखने की नसीहत दी।
सूत्रों के अनुसार सर्च कमेटी में राज्यपाल के सलाहकार प्रो. आरसी सोबती, पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रास बिहारी प्रसाद सिंह और पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गुलावचंद राम जायसवाल शामिल थे। सूत्रों का कहना है कि पैनल में कई नाम ऐसे थे, जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। उसे दरकिनार करते हुए वरीयता दी गई थी। पिछले सप्ताह वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा के कुलपति के रूप में प्रो. देवी प्रसाद तिवारी की नियुक्ति का पत्र जारी हो चुका है। तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में अभी कुलपति की नियुक्ति नहीं हुई है। मगध विश्वविद्यालय, बोधगया में भी कुलपति की नियुक्ति होनी है।
जिन पर प्राथमिकी, उन्हें बना दिया गया सीनेट मेंबर
बैठक में सीनेट और सिंडिकेट सदस्यों के मनोनयन में परंपरा को ताक पर रखने का भी मामला उठा। कुलपतियों ने कहा कि पिछले सप्ताह राजभवन से जारी विभिन्न विश्वविद्यालयों के सीनेट व सिंडिकेट सदस्यों की सूची में कई नाम ऐसे हैं जिन पर प्राथमिकी दर्ज है। कई पर विश्वविद्यालय व कॉलेज में वित्तीय अनियमितता के आरोप की जांच की जा रही है। ऐसी स्थिति में इन्हें सीनेट जैसी प्रतिष्ठित निर्णय लेने वाली बॉडी में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। कुलपतियों ने कहा कि सूची में एक भी गोल्ड मेडल प्राप्त करने वाला छात्र नहीं है। जिनकी छवि विश्वविद्यालय में अपराधी की है, उन्हें भी सीनेट का सदस्य बना दिया गया है। ऐसी स्थिति में शैक्षणिक माहौल बेहतर बनाने में विश्वविद्यालय प्रशासन को परेशानी होगी।
सीनेट में बगैर बहस के पास हो रहा बजट
पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. नवल किशोर चौधरी ने बताया कि सामाजिक व राजनीतिक समीकरण और चाटुकारिता के आधार पर चयन आज नई बात नहीं है। राज्य के लिए सुखद है कि अब इन पर कुलपति प्रश्न उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में सीनेट, सिंडिकेट, एकेडमिक काउंसिल के बाद कुलाधिपति और कुलपति का स्थान आता है। जिनका सामाजिक सरोकार से वास्ता नहीं है, उन्हें सत्ता की शह पर मेंबर बनाया जाता रहा है। यही कारण है कि अब सीनेट की बैठक में बगैर बहस के ही बजट ध्वनि मत से पास हो जाते हैं। एक-दो विरोध करते हैं तो उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है।
सूत्रों के अनुसार सर्च कमेटी में राज्यपाल के सलाहकार प्रो. आरसी सोबती, पटना विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. रास बिहारी प्रसाद सिंह और पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. गुलावचंद राम जायसवाल शामिल थे। सूत्रों का कहना है कि पैनल में कई नाम ऐसे थे, जिन पर भ्रष्टाचार के गंभीर आरोप हैं। उसे दरकिनार करते हुए वरीयता दी गई थी। पिछले सप्ताह वीर कुंवर सिंह विश्वविद्यालय, आरा के कुलपति के रूप में प्रो. देवी प्रसाद तिवारी की नियुक्ति का पत्र जारी हो चुका है। तिलका मांझी भागलपुर विश्वविद्यालय में अभी कुलपति की नियुक्ति नहीं हुई है। मगध विश्वविद्यालय, बोधगया में भी कुलपति की नियुक्ति होनी है।
जिन पर प्राथमिकी, उन्हें बना दिया गया सीनेट मेंबर
बैठक में सीनेट और सिंडिकेट सदस्यों के मनोनयन में परंपरा को ताक पर रखने का भी मामला उठा। कुलपतियों ने कहा कि पिछले सप्ताह राजभवन से जारी विभिन्न विश्वविद्यालयों के सीनेट व सिंडिकेट सदस्यों की सूची में कई नाम ऐसे हैं जिन पर प्राथमिकी दर्ज है। कई पर विश्वविद्यालय व कॉलेज में वित्तीय अनियमितता के आरोप की जांच की जा रही है। ऐसी स्थिति में इन्हें सीनेट जैसी प्रतिष्ठित निर्णय लेने वाली बॉडी में शामिल नहीं किया जाना चाहिए। कुलपतियों ने कहा कि सूची में एक भी गोल्ड मेडल प्राप्त करने वाला छात्र नहीं है। जिनकी छवि विश्वविद्यालय में अपराधी की है, उन्हें भी सीनेट का सदस्य बना दिया गया है। ऐसी स्थिति में शैक्षणिक माहौल बेहतर बनाने में विश्वविद्यालय प्रशासन को परेशानी होगी।
सीनेट में बगैर बहस के पास हो रहा बजट
पटना कॉलेज के पूर्व प्राचार्य प्रो. नवल किशोर चौधरी ने बताया कि सामाजिक व राजनीतिक समीकरण और चाटुकारिता के आधार पर चयन आज नई बात नहीं है। राज्य के लिए सुखद है कि अब इन पर कुलपति प्रश्न उठा रहे हैं। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालय में सीनेट, सिंडिकेट, एकेडमिक काउंसिल के बाद कुलाधिपति और कुलपति का स्थान आता है। जिनका सामाजिक सरोकार से वास्ता नहीं है, उन्हें सत्ता की शह पर मेंबर बनाया जाता रहा है। यही कारण है कि अब सीनेट की बैठक में बगैर बहस के ही बजट ध्वनि मत से पास हो जाते हैं। एक-दो विरोध करते हैं तो उनके साथ दुर्व्यवहार किया जाता है।
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