Move to Jagran APP

स्मार्ट भी बनें सरकारी स्कूल, पठन-पाठन का माहौल सुधारने के लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत

अव्यवस्था अनुशासन और संसाधनों की कमी को लेकर सरकारी स्कूलों की आलोचना होती है। सरकारी स्कूलों में पढ़ाई और पोषण के लिए सभी इंतजाम किए जा रहे हैं लेकिन जरूरी यह भी है कि वहां पढ़ाई का माहौल सुधरे।

By Neel RajputEdited By: Published: Tue, 28 Sep 2021 11:38 AM (IST)Updated: Tue, 28 Sep 2021 11:38 AM (IST)
जो सबसे जरूरी है, वह स्कूल का माहौल

पटना, स्टेट ब्यूरो। सरकारी प्राथमिक विद्यालयों में मध्याह्न भोजन शुरू हुआ तो उसके कई फायदे मिले। कुपोषण बड़ी समस्या है। मध्याह्न भोजन ने कुपोषण से जूझने में मदद की। स्कूलों में उपस्थिति बढ़ी। ग्रामीण इलाकों के कामकाजी अभिभावकों को इस चिंता से मुक्ति मिली कि उनके बच्चे स्कूल गए हैं, तो दोपहर में क्या खाएंगे। हालांकि मध्याह्न भोजन योजना की आलोचना भी हुई। आलोचना की वजह भ्रष्टाचार है। योजना में कोई कमी नहीं थी, बल्कि उसे लागू करने वाले सिस्टम से इसकी बदनामी हुई। इस भ्रष्टाचार से जूझने के लिए भी प्रभावशाली तंत्र विकसित किया गया है। अब सरकार ने फैसला किया है कि 72 हजार प्रारंभिक विद्यालयों में पढ़ने वाले 1.66 करोड़ बच्चों को आने वाले समय में मध्याह्न भोजन (मिड-डे मील) से पहले नाश्ता भी मिलेगा।

loksabha election banner

प्री-नर्सरी और प्रारंभिक विद्यालयों के बच्चों को कुपोषण से मुक्त रखने के लिए यह तैयारी की गई है। अभी उन जिलों में योजना शुरू की जा रही है कि जहां कुपोषण के सर्वाधिक मामले हैं। नाश्ता और दोपहर का भोजन देने की इस योजना के साथ बच्चों के हेल्थ कार्ड बनाए जाएंगे। कार्ड में उनके स्वास्थ्य से जुड़ी जानकारियां अपडेट की जाएंगी। निश्चित तौर पर पोषक नाश्ता और लंच लेने के बाद बच्चे कुपोषण के चंगुल से बचे रहेंगे। नाश्ते वाली योजना की खास बात यह भी है कि यह स्कूल में नहीं बनेगा। स्वयंसेवी संस्था या फिर महिला स्वयं सहायता समूहों की ओर से पैकेट बनाए जाएंगे।

पोषण की मात्रा और भोजन की गुणवत्ता पर ध्यान रखने के लिए ऐसा किया गया है। भोजन की व्यवस्था के अलावा किताबें और ड्रेस को लेकर भी अभिभावकों को चिंता नहीं करनी पड़ती। सरकार की ओर से ड्रेस और किताबें उपलब्ध कराई जाती हैं। अब जो सबसे जरूरी है, वह स्कूल का माहौल। सरकारी स्कूलों में पठन-पाठन का माहौल सुधरे, इसके लिए सख्त कदम उठाने की जरूरत है। अव्यवस्था, अनुशासन और संसाधनों की कमी को लेकर सरकारी स्कूलों की आलोचना होती है। इस व्यवस्था को सुधारने के लिए कमी है तो इच्छाशक्ति की। स्कूल के प्रबंधन का कार्य देख रहे लोग अगर ईमानदारी से सोचें, तो बदलाव आएगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.