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बिहार: राजनीतिक दलों में सवर्णों के आए अच्‍छे दिन, पार्टी चलाने में बढ़ी भागीदारी

लंबे अरसे बाद राज्य के राजनीतिक दलों के नेतृत्व में सवर्ण बिरादरी से आने वाले नेताओं की भागीदारी बढ़ी है। जदयू कांग्रेस के बाद अब राजद भी इसी धारा में जुट गया है।

By Rajesh ThakurEdited By: Published: Tue, 26 Nov 2019 07:05 PM (IST)Updated: Tue, 26 Nov 2019 11:35 PM (IST)
बिहार: राजनीतिक दलों में सवर्णों के आए अच्‍छे दिन, पार्टी चलाने में बढ़ी भागीदारी
बिहार: राजनीतिक दलों में सवर्णों के आए अच्‍छे दिन, पार्टी चलाने में बढ़ी भागीदारी

पटना, राज्य ब्यूरो। लंबे अरसे बाद राज्य के राजनीतिक दलों के नेतृत्व में सवर्ण बिरादरी से आने वाले नेताओं की भागीदारी बढ़ी है। अब राजद भी इसी धारा में जुड़ गया। राजद ने प्रदेश अध्‍यक्ष की कमान जगदानंद सिंह को दी है। वहीं जदयू के प्रदेश अध्‍यक्ष के पद पर वशिष्‍ठ नारायण सिंह पहले से ही काबिज हैं। कुछ ऐसा ही हाल कांग्रेस में है। कांग्रेस में प्रदेश अध्‍यक्ष के पद पर मदन मोहन झा काबिज हैं।  

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राजद ने पहली बार सवर्ण को बनाया अध्‍यक्ष

मंडलवादी राजनीतिक धारा से निकले दलों में से एक राजद ने कभी किसी सवर्ण को प्रदेश अध्यक्ष नहीं बनाया था। पूर्व सांसद जगदानंद सिंह इस पद पर बिठाए गए हैं। यह बदलाव राजद की निचली इकाइयों में भी नजर आएगा। जिला और प्रखंड इकाइयों में के अध्यक्ष पद पर भी पहले की तुलना में अधिक सवर्ण चेहरे नजर आएंगे। इससे पहले राजद में माय समीकरण का दबदबा रहता था। यानी अधिक पदधारक  मुस्लिम और यादव बिरादरी के होते थे। 

जदयू के अधिसंख्‍य प्रदेश अध्‍यक्ष सवर्ण ही

हालांकि मंडल की धारा से निकले जदयू को कभी सवर्णों से परहेज नहीं रहा। अपवाद को छोड़ दें तो समता पार्टी से लेकर जदयू तक के सफर में अधिसंख्य प्रदेश अध्यक्ष सवर्ण ही रहे। अभी बशिष्ठ नारायण सिंह हैं। जिलों में भी कुछ ऐसा ही था। हालांकि, अति पिछड़ी बिरादरी के एक मजबूत राजनीतिक ताकत के रूप में उभरने के बाद जदयू के सांगठनिक संरचना में बड़ा बदलाव हो रहा है। जदयू को किसी बिरादरी से परहेज नहीं है। लेकिन, संगठन में अति पिछड़ों को वरीयता मिलती है। शायद इसलिए भी कि यह जदयू का आधार है। 

कांग्रेस को भी सवर्णों से परहेज नहीं 

कांग्रेस की पहचान कभी पिछड़ावादी दल की नहीं रही। लेकिन, मंडल के दौर के साथ ही प्रदेश नेतृत्व में पिछड़ों, अल्पसंख्यकों और अनुसूचित जाति को वरीयता देने का होने लगा। केंद्रीय नेतृत्व ने इसे स्वीकार किया। बीच की अवधि में सभी प्रभावशाली वर्गों को अवसर मिला। फिलहाल कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष डा. मदन मोहन झा हैं।

भाजपा में अभी पिछ़डा वर्ग का अध्‍यक्ष

जहां तक भाजपा का सवाल है, उसमें सवर्ण और पिछड़े बारी-बारी से अध्यक्ष होते रहे हैं। इस समय लगातार दो अवसर पिछड़ों को मिला है। गृह मंत्री नित्यानंद राय के बाद सांसद डा. संजय जायसवाल प्रदेश अध्यक्ष बनाए गए हैं।  

वाम दलों में भी सवर्ण

वाम दलों में प्रदेश अध्यक्ष के बदले सचिव का पद होता है। इस समय भाकपा के सचिव सत्यनारायण सिंह, माकपा के अवधेश कुमार और भाकपा माले के सचिव कुणाल हैं। अवधेश कुमार अति पिछड़़ा, जबकि भाकपा और माले के सचिव सवर्ण हैं।


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