अपनी दशा पर आंसू बहा रहा पटना की पहचान गोलघर
पटना को एक अलग पहचान देने वाला गोलघर अपनी दशा पर आंसू बहा रहा है।
पटना। पटना को एक अलग पहचान देने वाला गोलघर अपनी दशा पर आंसू बहा रहा है। गुलाम भारत में अंग्रेजों ने ढाई वर्षो में इस विशाल गुंबद का निर्माण कराया। आजाद भारत में इसकी मरम्मत का कार्य 10 वर्षो से चल रहा है, पर अब तक अधूरा है। गोलघर की दीवार में अंदर और बाहर की दरारें भर दी गई। सीमेंट का प्लास्टर उखाड़कर सूर्खी-चूना से प्लास्टर का काम पूरा हो गया, लेकिन गोलघर गुंबद के ऊपर चढ़ने वाली टूटी सीढि़यां भारत सरकार और बिहार सरकार के अधिकारियों की उदासीन रवैया के कारण बन नहीं सकी हैं। सीढ़ी के गेट में ताला बंद है।
गोलघर गुंबद के दोनों तरफ करीब 281 सीढि़यां हैं। बिहार पुरातत्व ने मात्र 100 सीढि़यों की मरम्मत का कार्य भारतीय पुरातत्व विभाग को दिया है। सभी सीढि़यों की मरम्मत की जरूरत बताते हुए भारतीय पुरातत्व विभाग इसमें रूचि नहीं ले रहा है। बिहार पुरातत्व का कहना है कि क्षतिग्रस्त सीढ़ी ही बनानी है। अन्य सीढि़यां बेहतर स्थिति में हैं। सीढि़यों पर चढ़ने के लिए किनारे-किनारे लगा लोहे की रॉड भी टूट गई है। इसको भी नहीं लगाया गया है।
गोलघर के मरम्मत का कार्य वर्ष 2011 में भारतीय पुरातत्व ने शुरू किया। इस कार्य को तीन वर्षो में पूरा करने का लक्ष्य मिला था। सूर्खी-चूना से प्लास्टर का कार्य पूरा हुए डेढ़ वर्ष से अधिक हो गया। पहले जरूरी राशि के आवंटन और अब तकनीकी पेंच के बहाने सीढि़यों की मरम्मत नहीं हो पा रही है।
----
गोलघर की मरम्मत में काफी विलंब हो गया है। भारतीय पुरातत्व इस कार्य को कर रहा है। लिखित रूप से मई माह तक सभी कार्य पूरा करने के बारे में पत्र आया है। मई माह तक कार्य पूरा नहीं हुआ तो बिहार पुरातत्व इस कार्य को खुद कराएगा। सीढ़ी और नीचे के चबूतरे का निर्माण कार्य शेष रह गया है।
अतुल वर्मा, निदेशक, बिहार पुरातत्व