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तंत्र के गण: पंकज के हुनर से आधी आबादी को मिले नए अवसर, कागज की कला से सुधर रहे आर्थिक हालात

पटना में उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान से 2020-2021 सत्र में पेपरमेशी विद्या में ट्रेनिंग लेने के बाद चिड़ैयाटाड़ के पंकज कुमार औरों को भी इसका प्रशिक्षण दे रहे हैं। इस कला से महिलाए और स्कूली छात्राएं खुद को सशक्त बना रही हैं।

By Pintu KumarEdited By: Yogesh SahuPublished: Wed, 25 Jan 2023 10:03 PM (IST)Updated: Wed, 25 Jan 2023 10:03 PM (IST)
तंत्र के गण: पंकज के हुनर से आधी आबादी को मिला जीने का अवसर

पिंटू कुमार, पटना। उपेंद्र महारथी शिल्प अनुसंधान संस्थान से 2020-2021 सत्र में पेपरमेशी विद्या में ट्रेनिंग लेने के बाद चिड़ैयाटाड़ के पंकज कुमार हाथ पर हाथ रखकर कभी नहीं बैठे। प्रशिक्षण लेने से पहले ही उन्होंने अपने मन में ठान लिया था कि प्रशिक्षण प्राप्त करने के बाद अपनी कला के दम पर खुद को सशक्त बनाने के साथ-साथ दूसरों को भी सशक्त बनाएंगे।

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इसी उद्देश्य के साथ पंकज ने घर में कामकाजी महिलाओं के साथ-साथ स्कूली बच्चों को भी पेपरमेशी की ट्रेनिंग देना शुरू की। अब तक दो सौ से अधिक महिलाओं और 1500 से अधिक बच्चों को पेपरमेशी, जूट शिल्प, कलात्मक खिलौने बनाने की ट्रेनिंग दे चुके हैं।

महिलाओं के बनाए कलात्मक उप्ताद को पंकज खादी माल, गिफ्ट शाप, अलग-अलग मेलों और विभिन्न सामाजिक संस्थाओं को बेचते हैं। उससे जो पैसा आता है उसे उप्ताद बनाने वाली महिलाओं को दे देते हैं। पटना में ट्रेनिंग देने के साथ-साथ मधुबनी में कला व शिल्प प्रशिक्षण केंद्र खोलकर वहां की महिलाओं को भी मुफ्त में पेपरमेशी, चित्रकला, हस्तकला, मधुबनी पेंटिंग, ग्लास पेंटिंग, सिक्की कला आदि की ट्रेनिंग दे रहे हैं।

पढ़ाई के साथ-साथ बनाते हैं पेपरमेशी के कलात्मक उत्पाद

दानापुर की रहने वाली मोनिका केसरी बताती हैं कि वे प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने के साथ-साथ पेपरमेशी के खिलौने बनाती हैं। वह कहती हैं कि पंकज सर से 2022 में ट्रेनिंग लिए थे। उन्होंने चार महीने की ट्रेनिंग दी थी। वे घर पर आकर मुझे और मेरे घर के पास रहने वाली महिलाओं को पेपरमेशी की ट्रेनिंग दिए थे।

उन्होंने पेपरमेशी से कछुआ, गुड़िया, पेन स्टैंड जैसी चीजें बनाना सिखाया। हमारे बनाए उप्ताद को पंकज सर बेचकर हमें पैसा देते हैं। खगौल हनुमान चक की गुड्डी कुमारी ने बताया कि पंकज सर से पेपरमेशी और जूट शिल्प की ट्रेनिंग ली थी। स्कूल से छुट्टी हो जाने के बाद रोज पेपरमेशी के अलग-अलग खिलौने बनाती हूं।

पंकज सर उसे ले जाकर बिक्री करते हैं। दानापुर शाहपुर की रहने वाली निहारिका बताती हैं कि वे नौवीं कक्षा में पढ़ती हैं और स्कूल से छुट्टी होने के बाद पेपरमेशी के उत्पाद बनाती हैं। पेपर मेशी से कटोरी, कछुआ, ग्लास जैसे कई तरह के खिलौने बनाती हैं। मां बसंती देवी ने भी पेपर मेशी की ट्रेनिंग ली है। वे भी पेपर मेशी के उत्पाद बनाती हैं। उत्पाद से जो पैसे आते हैं, उससे आर्थिक मजबूती मिल रही है।

स्कूलों में बच्चों को देते हैं दस दिनों की ट्रेनिंग

चिड़ैयाटाड़ के पंकज कुमार बताते हैं कि सरकारी स्कूलों में भी बच्चों को पेपरमेशी के उत्पाद बनाने की ट्रेनिंग दे रहे हैं। बच्चों को दस दिनों की ट्रेनिंग देते हैं। दस दिनों की ट्रेनिंग में बच्चों को कचरा प्रबंधन, रद्दी कागम से कलात्मक उत्पाद बनाना, इको फ्रेंडली खिलौने बनाना सिखाते हैं। पंकज कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन के दुष्प्रभाव को कम करने के उद्देश्य से कचरा प्रबंधन कम करने का मुख्य उद्देश्य से बच्चों को ट्रेनिंग दे रहे हैं।


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