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Gaya PitruPaksha Mela 2020: पितृपक्ष में खरीदारी से नाराज नहीं होते हैं पितर

Gaya PitruPaksha Mela 2020 किसी भी तरह की खरीदारी आदि को लेकर कोई भी भ्रांति गलत। अपने पुरखों के लिए तो दीपोत्सव भी मनाते हैं । जानिए पितृपक्ष में क्‍या करें क्‍या ना करें।

By Sumita JaswalEdited By: Published: Sat, 05 Sep 2020 03:18 PM (IST)Updated: Sun, 06 Sep 2020 06:49 PM (IST)
Gaya PitruPaksha Mela 2020: पितृपक्ष में खरीदारी से नाराज नहीं होते हैं पितर
Gaya PitruPaksha Mela 2020: पितृपक्ष में खरीदारी से नाराज नहीं होते हैं पितर

गया, कमल नयन।Gaya PitruPaksha Mela 2020 : पितृपक्ष के दौरान घर में किसी सामान की खरीदारी आदि जैसे शुभ कार्य को लेकर लोगों में कई भ्रांतियां हैं। जिसे मोक्षनगरी गयाजी के कई विशेषज्ञ सीधे खारिज करते हैं। उनका कहना है कि इस दौरान अगर सोना-चांदी से लेकर जगह-जमीन कुछ भी खरीदते हैं तो पुरखे नाराज कैसे हो सकते हैं। उन्हें तो इससे खुशी मिलेगी, वे तृप्त ही होंगे। यहां पितृपक्ष में युवा वर्ग से लेकर पुराने लोग भी खरीदारी या शुभ कार्य करते हैं। सिर्फ गृह प्रवेश से लेकर शादी-ब्याह के आयोजन नहीं किए जाते हैं। यद्यपि कुछ लोग किसी भी तरह की खरीदारी आदि से भी दूर रहते हैं, पर अधिसंख्य इसे नकारते हैं। गया तीर्थ के पुरोहित महेश लाल गुपुत कहते हैं कि पितृपक्ष में पितरों को याद किया जाता है। लेकिन पितृ के पहले देव और ऋषि का स्मरण करते हैं। इस स्थिति में घर में कुछ नई खरीदारी करते हैं तो वह अशुभ कैसे माना जा सकता है।

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महालय पर्व है यह

उनका यह भी मानना है कि यह महालय पर्व है। मीन के सूर्य में जाते सूर्य में मीन राशि का प्रवेश होता है। कन्या की संक्रांति होती है, यह काल महालय कहलाता है, जो पिंडदान के लिए सर्वोत्तम माना जाता है। पिंडदान के पूर्व विश्वदेव यानी शालिग्राम की पूजा होती है। पितर अपने वंशजों को आशीर्वाद देते हैं, तो यह शुभ के लिए होता है। फिर शुभ कार्य करने में हिचक क्यों?

यहां मनाई जाती पितरों की दीवाली

गुपुत बताते हैं कि पितृपक्ष की त्रयोदशी तिथि को फल्गु के तट और विष्णुपद में पितरों की दीवाली मनाई जाती है। ऐसी मान्यता है कि पितर स्वर्ग के रास्ते जाते हैं, इसलिए इन रास्तों पर दीए जलाए जाते हैं। यह भी इस बात का द्योतक है कि हम उनकी खुशी के लिए ही दीपोत्सव मनाते हैं।

मांगलिक कार्य को छोड़कर सभी कार्य शुभ

गया तीर्थ के गयपाल युवा पंडा राजन सिजुआर का कहना है कि पितृ देवो भव:, यही पूजा होती है। इसमें पितृ पुत्रों की शुभकामना का ही कार्य करते हैं। लेकिन यह पक्ष पितरों का होता है। इतना ही नहीं आश्विन मास का प्रथम पक्ष, पौष मास का प्रथम पक्ष और चैत मास का प्रथम पक्ष पितरों का पक्ष है। इसलिए इसमें शादी विवाह जैसे मांगलिक कार्य नहीं किए जाते हैं। इसे खरमास भी मानते हैं। लेकिन अन्य खरीदारी आदि कार्य में कोई विघ्न बाधा नहीं होती। पंडित रामाचार्य वैदिक कहते हैं कि कृष्णपक्ष पितृ प्रधान पक्ष है और शुक्ल पक्ष देव प्रधान। वैसे में शुभ कार्य के तौर पर खरीदारी आदि करने में कहीं कुछ भी अशुभ नहीं है। सिर्फ गृह प्रवेश और मांगलिक कार्य वर्जित रखा गया है।


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