गांधी मैदान में लिखी गई सियासत की नई इबारत
गांधी मैदान एक बार फिर कल राजनीतिक कारणों से सियासी बदलाव का गवाह बन गया। बिहार की राजधानी पटना के बीचोंबीच गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण (जेपी) के खास शिष्यों में शुमार नीतीश कुमार ने पांचवीं बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल सियासत की नई इबारत लिखने का काम किया।
पटना [रमण शुक्ला]। एतिहासिक गांधी मैदान एक बार फिर शुक्रवार को राजनीतिक कारणों से सियासी बदलाव का गवाह बन गया। बिहार की राजधानी पटना के बीचोंबीच गांधी मैदान में जयप्रकाश नारायण (जेपी) के खास शिष्यों में शुमार नीतीश कुमार ने पांचवीं बार मुख्यमंत्री की कुर्सी संभाल सियासत की नई इबारत लिखने का काम किया।
जेपी ने 5 जून, 1974 को इसी मैदान पर संपूर्ण क्रांति का नारा बुलंद किया था। उन्हीं की अगुआई में आगे बढ़े लालू प्रसाद, नीतीश कुमार और सुशील कुमार मोदी आज राच्य के कद्दावर नेताओं में हैं। लालू और नीतीश ने नई मुकाम हासिल कर ली, लेकिन सुशील कुमार मोदी को अपनी मंजिल तक नहीं पहुंच पाने की कसक साल रही होगी।
नीतीश के बाद लालू प्रसाद के कुनबे के लिए भी गांधी मैदान सुर्खियों में रहा। ढाई दशक बाद ही सही, लेकिन कभी देश की सबसे बड़ी पार्टी रही कांग्रेस को 20 नवंबर का दिन गांधी मैदान में पुनर्जीवन देने वाला साबित हुआ। देश की आजादी से पहले महात्मा गांधी ने भी गांधी मैदान में कई सभाओं को संबोधित कर बिहार में कांग्रेस की जड़ें गहरी करने की अलख जगाई थी। शुक्रवार को फिर कांग्रेस के चार मंत्रियों की शपथ के साथ नए युग की शुरुआत हुई।
विधानसभा चुनाव के दौरान महागठबंधन में शामिल होने के बावजूद लालू के साथ मंच शेयर करने से कन्नी काटने वाले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी राजद सुप्रीमो से गलबहियां करते नजर आए। राहुल ने जय-पराजय के खेल में अपनी स्थिति मजबूत कर एक बार फिर छा जाने की कवायद भी शुरू कर दी।
इसी तरह कांग्रेस और लालू के नाम पर नीतीश के समर्थन में चुनाव प्रचार में किनारा करने वाले आम आदमी पार्टी के सुप्रीमो और दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल दिल खोल कर लालू से मंच पर गले मिलते दिखाई दिए। एतिहासिक मैदान में तमाम दलों के राजनीतिज्ञों ने जिस कदर एकजुटता दिखाई, वह सियासत के गलियारे के लिए अहम पैगाम है।