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कोसी के कहर से बिहार को बचाने के लिए पांच देश मिलकर खोजेंगे समस्या का समाधान

कोसी दुनिया की सर्वाधिक हिंसक नदियों में से एक है। उत्तर बिहार के नौ जिलों में यह हर साल कहर बनकर टूटती है। समाधान की पहल होती है, लेकिन हासिल कुछ नहीं होता। पटना में पांच देशों की टीम कोसी की चुनौतियों को अवसर में तब्दील करने पर मंथन करेगी।

By Kajal KumariEdited By: Published: Mon, 01 Feb 2016 08:26 AM (IST)Updated: Mon, 01 Feb 2016 02:36 PM (IST)
कोसी के कहर से बिहार को बचाने के लिए पांच देश मिलकर खोजेंगे समस्या का समाधान

पटना। कोसी दुनिया की सर्वाधिक हिंसक नदियों में से एक है। उत्तर बिहार के नौ जिलों में यह लगभग हर साल कहर बनकर टूटती है। आपदा स्थायी है। समाधान की पहल भी होती है, लेकिन हासिल कुछ नहीं होता। अब तीन दिनों बाद पटना में पांच देशों की टीम कोसी की चुनौतियों को अवसर में तब्दील करने पर मंथन करेगी।

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मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की पहल पर भारत के साथ नेपाल, चीन, आस्ट्रेलिया और पाकिस्तान के विशेषज्ञ कोसी के खतरनाक इरादे, बाढ़ से बचाव एवं निवासियों के रहन-सहन के स्तर में सुधार के स्थायी समाधान तलाशेंगे। इस दौरान अब तक की सरकारी नीतियां और उनके क्रियान्वयन पर भी खुली चर्चा होगी।

बिहार आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से दो दिनों तक चलने वाली इस कार्यशाला का उद्घाटन 4 फरवरी को मुख्यमंत्री करेंगे। इस दौरान जल संसाधन मंत्री राजीव रंजन सिंह एवं आपदा प्रबंधन मंत्री चंद्रशेखर भी मौजूद रहेंगे।

बिहार के लिए कोसी का दर्द कोई नया नहीं है। नौ जिलों में केवल कोसी मइया की मर्जी चलती है। विडंबना है कि अब तक कोई स्थायी समाधान नहीं खोजा गया। यह नदी 2008 में भी हिंसक हुई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इसे राष्ट्रीय आपदा माना था और एक हजार करोड़ की सहायता राशि भी दी थी।

तब यह भी कहा गया था कि कोसी के कहर से बिहार को बचाने के लिए अगले 30 साल का प्लान किया जा रहा है, लेकिन ऐसी कोई व्यवस्था नहीं हुई। आज भी यह इलाका तबाही से नहीं उबर सका है। बाढ़ की आशंका बराबर बनी रहती है।

कोसी हर साल अपने साथ लगभग पांच करोड़ टन बजरी-रेत और मिट्टी बहाकर लाती है। बिहार के मैदानों में नदी की रफ्तार जैसे ही धीमी होती है, सारे सिल्ट बिछ जाते हैं। इससे नदी का तल ऊपर आ जाता है और पानी का प्रवाह विकराल हो जाता है। वैज्ञानिकों का मानना है कि कोसी संकरी इलाकों में अपने आधार तल से करीब चार मीटर तक ऊपर आ गई है, जो बिहार में बाढ़ के लिए पर्याप्त वजह है।

आज भी याद है कुसहा त्रासदी

18 अगस्त 2008 में नेपाल सीमा पर कुसहा बांध के टूटने से भयानक बाढ़ आई थी। सहरसा, सुपौल, मधेपुरा, पूर्णिया और अररिया के करीब ढाई सौ गांव तबाह हो गए थे। 237 की मौत हो गई थी, 2,296 लापता थे। लाखों लोग बेघर हो गए थे।

आपदा की जांच के लिए न्यायिक कमेटी बनाई गई थी। छह साल बाद उसकी जांच रिपोर्ट आई जिसमें आपदा के लिए विभागीय लापरवाही को जिम्मेदार बताया गया। तटबंध टूटने की सूचना देर से फ्लैश की गई। ड्यूटी पर तैनात अफसरों ने सही फैसला नहीं लिया था।


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