साहित्य अगर सोचने पर करे मजबूर तो समझिए लेखक का कलम चलाना हुआ सार्थक Patna News
कलम कार्यक्रम की 46वीं कड़ी में लेखिका गीतांजलि श्री अपनी पुस्तक रेत-समाधि पर बात करने पटना में मौजूद थीं। आइए पड़ते हैं बातचीत के प्रमुख अंश।
पटना, जेएनएन। औरत और सरहद का साथ हो तो खुद-ब-खुद कहानी बन जाती है। साधारण औरत में छिपी एक असाधारण स्त्री की महागाधा 'रेत-समाधि' पुस्तक की लेखिका गीतांजिल श्री शुक्रवार को होटल चाणक्या में 'कलम' कार्यक्रम की 46वीं कड़ी में साहित्य प्रेमियों से मुखातिब थीं। प्रभा खेतान फाउंडेशन, श्री सीमेंट व नवरस स्कूल ऑफ परफार्मिग आर्ट्स के तत्वावधान में 'कलम' कार्यक्रम के तहत लेखिका ने अपनी पुस्तक ' रेत-समाधि' पर विस्तार से प्रकाश डालने के साथ भाषा और शिल्प पर अपनी बात कही।
कार्यक्रम का मीडिया पार्टनर दैनिक जागरण था। लेखिका से बातचीत शहर की वरिष्ठ लेखिका डॉ. भावना शेखर ने की। कार्यक्रम को आगे बढ़ाते हुए डॉ. शेखर के प्रश्न पर लेखिका ने कहा कि पटना के बारे में कुछ नहीं जानती। बस इस शहर के बारे में काफी सुना था। कार्यक्रम में आने के बाद यहां बार-बार आना चाहूंगी। पहले सवाल के तौर पर जब गीतांजिल से पूछा गया कि आप 30 दशक से अधिक समय से लिख रही हैं ? कितना शोध करना होता है? जवाब में गीतांजिल ने कहा, मैं जैसे लिख रही हूं, मैं हमेशा नई लगती हूं। मैं बहुत शोध नहीं करती।
समय लगा पर डूबकर लिखा
पुस्तक 'रेत समाधि' को रेखांकित करते हुए लेखिका ने कहा कि इस पुस्तक को लिखने में काफी वक्त लगा। मैंने पुस्तक काफी डूबकर लिखी। प्रेम, वैर और आपसी नोकझोंक के बीच एक परिवार की कहानी को समाज तक लाने की कोशिश की। पुस्तक के शीर्षक में रेत शब्द को जोड़ने के जवाब में लेखिका ने कहा, रचना आगे जाती है तो उसमें कई कड़िया जुड़ती जाती हैं। पुस्तक लिखने के दौरान रेत के कई संदर्भ आए, तभी इसके नाम के साथ रेत जुड़ गया।
औसत शख्स नहीं है कमतर
शब्द और भाषा अपने आप में शख्सियत हैं। मैंने पुस्तक के माध्यम से मध्यम व्यक्तियों की कहानी को उभारा है। हा अगर किसी के मन में ये सवाल है कि ये कहानी समाज के औसत व्यक्ति की नहीं तो ये बताना भी जरूरी है कि औसत शख्स को कमतर नहीं आका जा सकता। अगर ऐसा हो रहा है तो समाज में कुछ गड़बड़ है, जिस पर साहित्यकारों को कलम चलाने की जरूरत है।
साहित्य नहीं मनोरंजन का साधन
गीतांजिल ने कहा कि साहित्य फौरी मनोरंजन का साधन नहीं है। इसे समझने के लिए थोड़ा तो डूबना ही होगा। पुस्तक में जीव-जंतु और बेजान चीजों को स्थान देने के सवाल के जवाब में गीतांजिल ने कहा, मैंने किसी को सीख देने के लिए इनका इस्तेमाल नहीं किया। मुझे लगा कि चारों ओर को दिखाया जाए बस। उसे ही अपने शब्दों में उतारने का प्रयास की हूं।
लेखिका ने कहा कि किस्से खत्म नहीं होते हैं। यही तो कहानी को मरने नहीं देते। अगर साहित्य पढ़ने के बाद आपको सोचने पर मजबूर करता है तो समझिए कि लेखक का कलम चलाना सार्थक हुआ। लेखिका ने कहा कि किसी कहानी का सुखद अंत इस बात की गवाही नहीं है कि वो बहुत बेहतर लिखा गया है। अगर पाठक को पुस्तक राह दिखाए तो समझिए शब्दों ने अपना काम कर दिया। मेरी नजर में साहित्य ऐसा हो जो लोगों को चौकन्ना करे।
हर व्यक्ति के अंदर बसता है समाज
लेखिका ने कहा कि हर व्यक्ति के अंदर समाज है। अगर एक आदमी बोल रहा है तो वो अकेला नहीं है। एक मुंह से निकले शब्द समाज की सोच को चरितार्थ करते हैं। कार्यक्रम के समापन के पूर्व लेखिका से श्रोताओं ने साहित्य से जुड़े कई सवाल किए। थियेटर से जुड़े एक सवाल के जवाब में गीतांजिल ने कहा कि फिल्म और टेलीविजन, थियेटर पर खतरा हैं। पैसों की समस्या के बाद भी नाटक मुश्किल से अपना रास्ता बनाए हुए है। कार्यक्रम के दौरान मंच का संचालन अंविता प्रधान ने किया। मौके पर डॉ. अजीत प्रधान, शायर कासिम खुर्शीद, लेखक अरुण कुमार सिंह, अनीश अंकुर, जय प्रकाश, डॉ. प्रियेंदु सुमन, ऊषा झा, शायर समीर परिमल आदि मौजूद थे।