अब बिहार की खास होगी मुजफ्फरपर की शाही लीची, जल्दी मिलगा GI टैग
अब पश्चिम बंगाल रसगुल्ले की तर्ज पर मुजफ्फपुर के शाही लीची पर बिहार का दावा होगा। इसे एकाधिकार देने की तैयारी शुरू कर दी गई है। जून में इसे जीआइ टैग मिल जाएगा।
By Edited By: Published: Sun, 08 Apr 2018 02:08 PM (IST)Updated: Sun, 08 Apr 2018 09:55 PM (IST)
style="text-align: justify;">पटना [अरविंद शर्मा]। वह दिन दूर नहीं जब आप पश्चिम बंगाल के रसगुल्ले की तर्ज पर मुजफ्फरपुर की शाही लीची पर दावा करते दिखेंगे। अब मुजफ्फरपुर की शाही लीची पर बिहार का एकाधिकार होने वाला है। फिर कोई दूसरा राज्य या क्षेत्र व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए इस विशेष फल पर दावा नहीं करेगा। कतरनी चावल, जर्दालु आम और मगही पान के बाद अब शाही लीची के लिए जीआइ टैग (भौगोलिक संकेतक) मिलने का बिहार को इंतजार है।
जून में मिल जाएगा जीआइ टैग
बौद्धिक संपदा अधिकार के तहत ज्योग्राफिकल इंडिकेशन जर्नल में शाही लीची पर बिहार की दावेदारी का प्रकाशन जून के अंक में होने वाला है। प्रकाशन के तीन महीने तक बिहार के दावे को पब्लिक डोमेन में रखा जाएगा। इस दौरान अगर किसी राज्य या क्षेत्र ने आपत्ति नहीं जताई तो शाही लीची पर बिहार का एकाधिकार हो जाएगा। पिछले सप्ताह बिहार ने अपने तीन उत्पादों पर जीआइ टैग प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है। अक्टूबर 2016 में बिहार ने भागलपुर के जर्दालु आम, कतरनी धान एवं मगही पान समेत शाही लीची को बिहारी पहचान दिलाने के लिए आवेदन किया था। इसमें तीन उपज पर बिहार का दावा मान लिया गया, लेकिन मुजफ्फरपुर की शाही लीची को लटका दिया गया। दरअसल निर्णायक मंडल मुतमईन होना चाहता था कि इस विशेष उत्पादन पर सिर्फ बिहार का अधिकार कैसे है?
आवेदन की प्रक्रिया में भी कुछ त्रुटि थी। मुजफ्फरपुर के किसानों ने पूर्ण विवरण के साथ दोबारा आवेदन किया है। जर्नल की ओर से सूचना दी गई है कि शाही लीची पर बिहार की दावेदारी को प्रारंभिक तौर पर मान लिया है और अगले अंक में प्रकाशन कर दिया जाएगा।
बिहार को मिल चुके हैं 11 जीआइ टैग
बिहार को अबतक जर्दालु आम, कतरनी धान, मगही पान, मधुबनी पेंटिंग, भागलपुरी सिल्क, एप्लीक (कटवा), सिक्की (ग्रास प्रोडक्ट ऑफ बिहार) एवं सुजनी समेत 11 सामग्रियों पर जीआइ टैग मिल चुके हैं। दूसरे राज्यों को कई उत्पादों के लिए यह गौरव मिल चुका है। कर्नाटक को तो अभी तक 40 जीआइ टैग मिल चुके हैं, किंतु बिहार अभी मुश्किल से दो अंकों में ही पहुंचा है। बिहार में ऐसी कई चीजें और उत्पाद हैं, जिनके जीआई टैग के लिए कोशिश की जा सकती है। जैसे मखाना, सिलाव का खाजा, लिट्टी, अनरसा, चंद्रकला, रामदाना की लाई, बालूशाही एवं पेड़ा आदि।
पश्चिम बंगाल इस मामले में काफी सक्रिय है। उसने सबसे पहले दार्जिलिंग टी से खाता खोला था। उसके बाद अबतक कई उत्पादों को अपना बना लिया है। अभी तक विभिन्न राज्यों को 320 सामग्रियों का जीआइ टैग मिल चुके हैं।
क्या है जीआइ टैग
विश्व व्यापार संगठन द्वारा जीआइ टैग यानि भौगोलिक संकेतक विशिष्ट उत्पादों को दिया जाता है। यह निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निर्मित या उत्पन्न कृषि, प्राकृतिक, हस्तशिल्प या औद्योगिक सामान को दिया जाता है। इसका मुख्य मकसद उत्पादों को संरक्षण देना होता है। भारत में सबसे पहले 2004 में पश्चिम बंगाल को दार्जिलिंग चाय का जीआई टैग दिया गया था।
भागलपुर के कृषि विश्वविद्यालय सबौर के कृषि प्रसार निदेशक आरके सोहाने के अनुसार ज्योग्राफिकल इंडिकेशन जर्नल प्रत्येक छह महीने में प्रकाशित होता है। बिहार सरकार को सूचित किया गया है कि अगले अंक में शाही लीची पर बिहार के दावे का प्रकाशन कर दिया जाएगा। यह अंक जून में आने वाला है। तीन महीने तक आपत्तियां दर्ज कराने की अवधि होगी। उसके बाद बिहार को जीआइ टैग दे दिया जाएगा।
जून में मिल जाएगा जीआइ टैग
बौद्धिक संपदा अधिकार के तहत ज्योग्राफिकल इंडिकेशन जर्नल में शाही लीची पर बिहार की दावेदारी का प्रकाशन जून के अंक में होने वाला है। प्रकाशन के तीन महीने तक बिहार के दावे को पब्लिक डोमेन में रखा जाएगा। इस दौरान अगर किसी राज्य या क्षेत्र ने आपत्ति नहीं जताई तो शाही लीची पर बिहार का एकाधिकार हो जाएगा। पिछले सप्ताह बिहार ने अपने तीन उत्पादों पर जीआइ टैग प्राप्त करने में सफलता प्राप्त की है। अक्टूबर 2016 में बिहार ने भागलपुर के जर्दालु आम, कतरनी धान एवं मगही पान समेत शाही लीची को बिहारी पहचान दिलाने के लिए आवेदन किया था। इसमें तीन उपज पर बिहार का दावा मान लिया गया, लेकिन मुजफ्फरपुर की शाही लीची को लटका दिया गया। दरअसल निर्णायक मंडल मुतमईन होना चाहता था कि इस विशेष उत्पादन पर सिर्फ बिहार का अधिकार कैसे है?
आवेदन की प्रक्रिया में भी कुछ त्रुटि थी। मुजफ्फरपुर के किसानों ने पूर्ण विवरण के साथ दोबारा आवेदन किया है। जर्नल की ओर से सूचना दी गई है कि शाही लीची पर बिहार की दावेदारी को प्रारंभिक तौर पर मान लिया है और अगले अंक में प्रकाशन कर दिया जाएगा।
बिहार को मिल चुके हैं 11 जीआइ टैग
बिहार को अबतक जर्दालु आम, कतरनी धान, मगही पान, मधुबनी पेंटिंग, भागलपुरी सिल्क, एप्लीक (कटवा), सिक्की (ग्रास प्रोडक्ट ऑफ बिहार) एवं सुजनी समेत 11 सामग्रियों पर जीआइ टैग मिल चुके हैं। दूसरे राज्यों को कई उत्पादों के लिए यह गौरव मिल चुका है। कर्नाटक को तो अभी तक 40 जीआइ टैग मिल चुके हैं, किंतु बिहार अभी मुश्किल से दो अंकों में ही पहुंचा है। बिहार में ऐसी कई चीजें और उत्पाद हैं, जिनके जीआई टैग के लिए कोशिश की जा सकती है। जैसे मखाना, सिलाव का खाजा, लिट्टी, अनरसा, चंद्रकला, रामदाना की लाई, बालूशाही एवं पेड़ा आदि।
पश्चिम बंगाल इस मामले में काफी सक्रिय है। उसने सबसे पहले दार्जिलिंग टी से खाता खोला था। उसके बाद अबतक कई उत्पादों को अपना बना लिया है। अभी तक विभिन्न राज्यों को 320 सामग्रियों का जीआइ टैग मिल चुके हैं।
क्या है जीआइ टैग
विश्व व्यापार संगठन द्वारा जीआइ टैग यानि भौगोलिक संकेतक विशिष्ट उत्पादों को दिया जाता है। यह निश्चित भौगोलिक क्षेत्र में निर्मित या उत्पन्न कृषि, प्राकृतिक, हस्तशिल्प या औद्योगिक सामान को दिया जाता है। इसका मुख्य मकसद उत्पादों को संरक्षण देना होता है। भारत में सबसे पहले 2004 में पश्चिम बंगाल को दार्जिलिंग चाय का जीआई टैग दिया गया था।
भागलपुर के कृषि विश्वविद्यालय सबौर के कृषि प्रसार निदेशक आरके सोहाने के अनुसार ज्योग्राफिकल इंडिकेशन जर्नल प्रत्येक छह महीने में प्रकाशित होता है। बिहार सरकार को सूचित किया गया है कि अगले अंक में शाही लीची पर बिहार के दावे का प्रकाशन कर दिया जाएगा। यह अंक जून में आने वाला है। तीन महीने तक आपत्तियां दर्ज कराने की अवधि होगी। उसके बाद बिहार को जीआइ टैग दे दिया जाएगा।
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