श्रीबाबू की जयंती पर बड़े-बड़े आयोजन, पर जलसों में शामिल नहीं किए जाते परिजन
बिहार के पूर्व सीएम श्रीकृष्ण सिंह को कांग्रेस से लेकर राजद तक सभी हथियाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उनके परिजनों की सुध लेने वाला कोई नहीं है। इस खबर में जानिए परिजनों का हाल।
पटना [अरुण अशेष]। बिहार में कहे जाने वाले एक कहावत का भाव है- जिसकी मां मरी, श्राद्ध के भोज में उसके ही पत्ते पर खाना नहीं परोसा गया। राजनीति के जयंती-पुण्यतिथि कर्मकांड में यह कहावत प्रथम मुख्यमंत्री डाॅ. श्रीकृष्ण सिंह के परिजनों पर स्थायी रूप से लागू है। इधर के वर्षों में श्रीबाबू की जयंती पर बड़े-बड़े जलसे हो रहे हैं। उनका जन्मदिन 21 अक्टूबर को है, लेकिन समारोह सप्ताह भर आयोजित होते हैं। पर इन समारोहों में श्रीबाबू के परिजन आमंत्रित नहीं किए जाते हैं।
इस साल भी आयोजन जारी, नहीं बुलाए जा रहे परिजन
इसी साल कांग्रेस ने 21 और भाजपा ने 25 अक्टूबर को उनका जन्मदिन मनाया। छोटे-छोटे संगठनों की ओर से भी जयंती समारोहों का आयोजन किया गया। जलसे में सभी दलों के नेता, केंद्र-राज्य सरकार के मंत्री सब आमंत्रित रहते हैं। इस साल भी इन आयोजनों में श्रीबाबू के परिजन अभी तक आमंत्रित नहीं किए गए हैं।
पटना में गुमनाम जी रहे पौत्र व प्रपौत्र
श्रीबाबू के पौत्र और प्रपौत्र पटना में ही रहते हैं। पौत्र सुरेश शंकर सिंह उर्फ हीराजी की उम्र 67 साल है। कभी कांग्रेस के सक्रिय सदस्य हुआ करते थे। अब कांग्रेस और हीराजी को एक दूसरे से मतलब नहीं रह गया है। हीराजी को ताज्जुब होता है कि श्रीबाबू के अलावा अन्य बड़े लोगों के परिजनों को ऐसे समारोहों में पूछा जाता है। सम्मानित किया जाता है। सिर्फ उनके मामले में यह नहीं होता। मंच पर बैठने की बात दूर है। भीड़ में बैठकर अपने पुरखे का गुणगान सुनने के लिए भी उन्हें नहीं बुलाया जाता है। अब, जबकि कांग्रेस के अलावा भाजपा भी श्रीबाबू के नाम पर जलसा करती है, तब भी समारोह के दिन हीराजी घर बैठे रहते हैं।
पुरानी हो चुकी श्रीबाबू के परिवार से कांग्रेस की दूरी
कांग्रेस से श्रीबाबू के परिवार की दूरी पुरानी हो चुकी है। हीराजी के पिता यानी श्रीबाबू के पुत्र बंदीशंकर सिंह इस परिवार के आखिरी विधायक हुए। अंतिम बार उन्हें 1985 में कांग्रेस ने बरबीघा से उम्मीदवार बनाया। वे जीते। 1990 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने उम्मीदवार नहीं बनाया। सरकार में मंत्री थे। सिटिंग विधायक थे। निर्दलीय चुनाव लड़ गए। हार हुई। चुनाव से वैराग्य हो गया। हीराजी ने कई बार कोशिश की, पर टिकट नहीं मिला।
बंदी शंकर सिंह की हार के ठीक 25 साल बाद श्रीबाबू के परिवार के किसी सदस्य ने चुनावी राजनीति में हिस्सा लिया। हीराजी के पुत्र अनिल शंकर सिंह 2015 के विधानसभा चुनाव में बरबीघा से खड़े हुए। कांग्रेस ने टिकट नहीं दिया। एनसीपी उम्मीदवार की हैसियत से लड़े। जीत हासिल नहीं हुई। यहां से कांग्रेस उम्मीदवार सुदर्शन की जीत हुई। वह दिग्गज कांग्रेसी राजो सिंह के पौत्र हैं। अनिल इस समय नाम के लिए कांग्रेस में हैं। जबकि उनके भाई निशांत सिंह राजद की राजनीति कर रहे हैं।