10 में आठ बिहारी आंख की बीमारी से पीडि़त, ये है वजह
बिहार के प्रत्येक 10 लोगों में से आठ आंख की किसी-न-किसी बीमारी से पीडि़त हैं। इनमें सबसे अधिक मोतियाबिंद की समस्या से पीडि़त हैं।
पटना [जेएनएन]। सूबे के प्रत्येक 10 लोगों में से आठ आंख की किसी-न-किसी बीमारी से पीडि़त हैं। आइजीआइएमएस के चक्षु विभागाध्यक्ष डॉ. विभूति प्रसन्न सिन्हा के अनुसार इसमें सर्वाधिक परेशानी मोतियाबिंद की है। अंधता निवारण को लेकर लगातार कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं।
अधिकारियों की शिथिलता और जागरूकता के अभाव में लोग अपनी आंखों की रोशनी गवां बैठ रहे हैं। हर दिन इंदिरा गांधी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंस (आइजीआइएमएस), पीएमसीएच, राजेंद्रनगर आई हॉस्पिटल सहित विभिन्न अस्पतालों में सैंकड़ों लोग आंख की जांच के लिए पहुंच रहे है। राष्ट्रीय अंधता निवारण कार्यक्रम के तहत कई निजी चिकित्सकों को भी जोड़ा गया है। लेकिन अधिकारियों की शिथिलता के कारण हर वर्ष सैंकड़ों लोगों की आंखों की रोशनी जा रही है।
बच्चों की आंखों की सुरक्षा जरूरी
आइजीआइएमएस के चक्षु विभागाध्यक्ष डॉ. विभूति प्रसन्न सिन्हा ने बताया कि बच्चों को आंखों की सुरक्षा बहुत जरूरी है। स्थिति यह है कि हर दिन खेलकूद में आंख पर चोट लगने के कारण बच्चे अस्पताल पहुंच रहे हैं। इसमें बच्चों की आंखों की रोशनी जाने की खतरा सबसे अधिक है।
देश में हर वर्ष दो लाख दृष्टिहीन बच्चे जन्म लेते है। यह आंकड़ा आने वाले भविष्य के लिए चिंताजनक है। डॉ. सिन्हा ने बताया कि बच्चों को पहली बार स्कूल भेजने से पहले आंख की जांच जरूर करा देनी चाहिए। जिस बच्चे का जन्म समय से पहले हुआ हो या जिनके जन्म के समय ऑक्सीजन का उपयोग किया है, उसके लिए यह बहुत जरूरी है।
ग्लूकोमा व रेटिना दोष भी खतरनाक
आंखों में सबसे अधिक समस्या मोतियाबिंद की होती है। यह आंकड़ा 62 फीसद है। वरीय चिकित्सक डॉ. निलेश मोहन के अनुसार काला मोतियाबिंद (ग्लूकोमा) से पांच फीसद, रेटिना दोष से पांच फीसद एवं कॉर्निया व ऑपरेशन के कारण एक-एक फीसद लोगों को आंखों की रोशनी चली जाती है।
आंखों की सुरक्षा का रखें ध्यान
- हर दिन सुबह साफ पानी से आंखों पर छींटे मारें।
- बच्चों पर ध्यान दे, संदेह होने पर डॉक्टर से दिखाएं।
- 40 वर्ष के बाद नियमित आंखों की जांच कराएं।
- कोई भी परेशानी होने पर खुद दवा न लें।
- पटाखे व प्रदूषण से दूर रहें।