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मिट्टी के दीयों से दीपावली में होगा शगुन, पटना में कुम्‍हारों के घर दो साल बाद रौनक की दिख रही उम्‍मीद

Deepawali 2021 दीपावली नजदीक आते ही कुम्हारों के चाक घूमने लगे हैं। जग को जगमग करने के लिए मिट्टी के दीए बनाने का कार्य जोरशोर से जारी है। वर्ष 2019 में भीषण बाढ़ तो 2020 में कोरोना संक्रमण के कारण चाक की गति धीमी हो गई थी।

By Shubh Narayan PathakEdited By: Published: Mon, 25 Oct 2021 09:56 AM (IST)Updated: Mon, 25 Oct 2021 09:56 AM (IST)
पटना के कुम्‍हारों के घर दीपावली में लौट रही रौनक। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

पटना, जागरण संवाददाता। Deepawali 2021: दीपावली नजदीक आते ही कुम्हारों के चाक घूमने लगे हैं। जग को जगमग करने के लिए मिट्टी के दीए बनाने का कार्य जोरशोर से जारी है। वर्ष 2019 में भीषण बाढ़ तो 2020 में कोरोना संक्रमण के कारण चाक की गति धीमी हो गई थी। इस बार आस जगी है और चाक तेजी से घूमने लगे हैं। कुम्हारों के हाथ मिट्टी को आकर देने में लगे हैं। धूप में सूखने के लिए कच्चे दीये की कतार लंबी होती जा रही है। पूजा और धार्मिक अनुष्‍ठानों में मिट्टी के पात्र और दीयों का इस्‍तेमाल शुभ माना जाता है। मिट्टी के पात्र शुद्ध माने जाते हैं। इसलिए धर्म-कर्म को संजीदगी से लेने वाले लोग मिट्टी के बर्तनों का ही इस्‍तेमाल पूजा में करते हैं।

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परंपरा को जीवित रखे हैं कुम्‍हारों के परिवार

कभी मिट्टी के दीये तो कभी बच्चों के लिए गुल्लक व मिट्टी के बर्तन वाले कुम्हारों का परिवार आज भी अपनी परंपरा को शहर में बरकरार रखा है। शहर में रह रहे कुम्हारों के 70 परिवार इन दिनों कड़ी मेहनत से हमारे घरों को रोशन करने वाले दीप को बनाने में दिन-रात जुटे हैं। गंगा किनारे एसएसपी आफिस के पीछे  'तारघाट' कुम्हार परिवारों की बड़ी बस्ती है। यहां रह रहे नंद किशोर पंडित कहते हैं कि मिट्टी के दीये, बर्तन बनाना उनका पुश्तैनी काम है। पहले इस कार्य को दादा फिर इसके बाद पिता स्वर्गीय कलपू पंडित करते थे। आधुनिक जीवनशैली में कुम्हारों ने अपनी पुश्तैनी परंपरा को बरकरार रखा है, लेकिन आधुनिकता का दामन पकड़े लोग इससे दूर होते जा रहे हैं। ऐसे में मिट्टी के दीये, बर्तन समाज से दूर होते जा रहे हैं। दीये बनाने वाले रामबाबू पंडित की मानें तो दशहरा के कुछ दिन पहले से दीये, बर्तन बनाने का काम आरंभ हो जाता है।

सोनपुर से मंगाई जाती है मिट्टी

मिट्टी के दीये तैयार करने वाले कल्लू पंडित बताते हैं, सोनपुर से गंगा की मिट्टी मंगाई जाती है। इस मिट्टी में चिकनापन होने के साथ रेत मिले होने से बर्तन बनाने में आसानी होती है। सात से आठ हजार रुपये प्रति नाव मिट्टी की कीमत है। कीमत में बीते दो सौ से तीन सौ रुपये की वृद्धि इस बार हुई है। एक नाव में चार से पांच टन मिट्टी होती है। दीये को लेकर कई जगहों से आर्डर आया है। उम्मीद है कि इस वर्ष लाखों रुपये का कारोबार पूरा कुम्हार परिवार करेगा।

शगुन के लिए मिट्टी के दीये का प्रयोग  

कारीगर की मानें तो आधुनिकता के दौर में चाइनिज बल्ब और रेडिमेड दीये ने मिट्टी के दीये की लौ को मंद कर दिया है। लोग अब मिट्टी के दीये का प्रयोग पूजा-पाठ व शगुन के तौर पर करते हैं। बीते वर्षों की तुलना में इस वर्ष भी कुछ खास परिवर्तन नहीं हुआ है।

दीये-कीमत

  • छोटा-   100 रुपये प्रति सैकड़ा
  • मीडियम- 100 रुपये प्रति सैकड़ा
  • बड़ा -    500 रुपये प्रति सैकड़ा
  • चौमुखी- 15- 40 रुपये प्रति पीस
  • रंगीन - 10- 30 रुपये प्रति पीस
  • धूपदानी - 20- 70 रुपये

दुकानदार सुनील कुमार ने बताया कि दो वर्षों से कारोबार पर असर पड़ा है। एक साल शहर में बाढ़ तो दूसरे वर्ष कोरोना संक्रमण के कारण व्यापार प्रभावित हुआ। इस वर्ष दीपावली को लेकर दूसरे जगहों से आर्डर देकर 20 हजार रुपये की सामग्री मंगाए हैं।

  • वर्ष 2019 में भीषण बाढ़ तो 2020 में कोरोना संक्रमण के कारण कारोबार हुआ प्रभावित
  • जग को जगमग करने के लिए मिट्टी के दीए जोरशोर से बना रहे कुम्हरार
  • दीये को लेकर कई जगहों से आ रहे आर्डर, उम्मीद है पूंजी निकल जाएगी
  • 70 कुम्हरार परिवार इन दिनों कड़ी मेहनत कर दीप बनाने में जुटे हैं
  • 7 से आठ हजार रुपये प्रति नाव मिट्टी की कीमत, तीन सौ रुपये तक की वृद्धि
  • एक नाव में चार से पांच टन मिट्टी होती है, सोनपुर से लाते हैं दीये के लिए मिट्टी

दुकानदार गुड़‍िया ने बताया कि दो वर्षों के बाद इस बार दीपावली को लेकर उम्मीद जगी है। इस बार 10 हजार रुपये की सामग्री बेचने के लिए मंगाए हैं। बीते वर्ष कोरोना के कारण व्यापार प्रभावित हो गया था। उम्मीद है कि इस बार पूंजी निकल जाएगी।


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