कालिदास रंगालय में 'आधी रात का सवेरा'
चिड़ियों का कलरव बांसुरी से निकलते स्वर मंदिर के आसपास महिला-पुरुषों की भीड़ के बीच मंत्रों का उच्चारण हो रहा है
पटना। चिड़ियों का कलरव, बांसुरी से निकलते स्वर, मंदिर के आसपास महिला-पुरुषों की भीड़ और मंत्रों का उच्चारण हो रहा है। सभी सामूहिक विवाह का आनंद उठाने में लगे हैं। सामाजिक संस्था गांव की गरीब बेटियों की शादी बिना दहेज के करा रही है। महिला दिवस पर आधारित कला कुंज की ओर से हंस कुमार तिवारी लिखित एवं ओम कपूर के निर्देशन में 'आधी रात का सवेरा' नाटक के मंचन के दौरान कुछ ऐसे ही दृश्य कालिदास रंगालय में रविवार को देखने को मिले।
सामूहिक विवाह में महंगू और सुहागी की भी शादी होती है। महंगू सुहागी से शादी कर अपने आप को धन्य मानता है और गांव का मुखिया उससे बोलता है कि महंगू तुम्हारी शादी संपन्न हुई, आज की शादी हमेशा याद रखोगे। तुमने समाज में रूढि़वादी परंपरा को तोड़ सुहागी का हाथ थामा है दहेजलोभियों के मुंह पर तमाचा मारा है। तुम समाज के आदर्श बन गए हो। शादी करके महंगू अपनी पत्नी को झोपड़ी में लाता है और उसका स्वागत करता है। गरीबी के बावजूद महंगू और सुहागी दुख में भी एक दूसरे का साथ नहीं छोड़ता और अपनी जिदंगी को खुशी से जीता है। सुहागी भोली होने के साथ काफी सुंदर है। सबकुछ ठीक चल रहा होता है तभी एक दिन महंगू सड़क हादसे का शिकार हो जाता है जिसके कारण उसके पैर काटने पड़ते हैं। महंगू को रोगग्रस्त और लाचार होने के बावजूद पत्नी साथ देती है। उधर गांव का महंत सुहागी की सुंदरता पर मोहित होकर अपने लठैतों को उसके घर भेजता है जो सुहागी को उठा कर ले आता है। इधर लाचार महंगू अपने आप को दंडित करने के लिए अपनी झोपड़ी में आग लगा कर अपनी जीवनलीला समाप्त करना चाहता है। अपनी लाज बचाने के लिए सुहागी महंत के लैठतों से मुकाबला करते हुए वापस लौटती है और अपने पति को मौत के मुंह से निकाल महंत के काले कारनामों को गांव के सामने रखती है। पत्नी की बहादुरी को देख महंगू कहता है कि तुम लौट कर मेरे पास आ गई, अब आधी रात को ही हमारे जीवन में सवेरा आ गया। इस संवाद पर दर्शकों की तालियां खूब बजती है। मंच पर प्रिंस, सुभाष चंद्रा, माधुरी शर्मा, विवेक ओझा, दिलीप कुमार पांडेय, अक्षय कुमार, जूली भारती आदि ने अपने अभिनय से दर्शकों को नारी शक्ति का एहसास करा खूब मनोरंजन कराया।