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डॉ. जगन्नाथ मिश्र: बिहार में बने राजनीति के रेफरेंस प्‍वाइंट, नहीं छोड़ी धर्मनिरपेक्षता की राह

पूर्व मुख्‍यमंत्री डॉ. जगन्‍नाथ मिश्रा नहीं रहे। बुधवार को उनका अंतिम संस्‍कार राजकीय सम्‍मान के साथ किया जाएगा। आइए नजर डालते हैं उनकी कुछ प्रमुख उपलब्धियों पर।

By Amit AlokEdited By: Published: Mon, 19 Aug 2019 10:26 PM (IST)Updated: Tue, 20 Aug 2019 07:52 PM (IST)
डॉ. जगन्नाथ मिश्र: बिहार में बने राजनीति के रेफरेंस प्‍वाइंट, नहीं छोड़ी धर्मनिरपेक्षता की राह

पटना [एसए शाद]। जाति-संप्रदाय में बंटे बिहार में तीन बार मुख्यमंत्री रहे डाॅ. जगन्नाथ मिश्र की विभिन्न उपलब्धियों में अगर सबसे प्रमुख उपलब्धि गिनी जाएगी तो वह निश्चित रूप से समाज के हर तबके में समान रूप से उनके लोकप्रिय रहने की होगी। वे नहीं रहे, लेकिन बिहार की राजनीति में हमेशा 'रेफरेंस प्वाइंट' के रूप में याद किए गए। आगे भी वे इसी प्रकार याद किए जाते रहेंगे। अपने लंबे राजनीतिक जीवन में उन्होंने धर्मनिरपेक्षता से कभी समझौता नहीं किया। उर्दू के विकास के लिए किए गए उनके कुछ कार्यों के कारण उन्हें 'मौलाना जगन्नाथ मिश्रा' भी पुकारा जाने लगा था।

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विदित हो कि डॉ. मिश्रा का सोमवार को दिल्‍ली में निधन हो गया। मंगलवार को उनका शव पटना जाया जाएगा। उनका अंतिम संस्‍कार राजकीय सम्‍मान के साथ बुधवार को संपन्‍न होगा।

भागलपुर दंगे के बाद तीसरी बार बने मुख्‍यमंत्री

भागलपुर में 1989 में जब भीषण दंगा भड़का तब दो दिन बाद ही तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने 26 अक्टूबर को भागलपुर का दौरा किया। कुछ दिनों बाद ही डाॅ. जगन्नाथ मिश्र को बिहार का मुख्यमंत्री बनाया गया। यह एक प्रकार से उनके धर्मनिरपेक्षता की राह पर अडिग रहने का पुरस्कार तो था ही, साथ ही कांग्रेस आलाकमान का समाज के हर तबके में विश्वास जगाने का प्रयास भी था। मुख्यमंत्री के रूप में उनका यह तीसरी और अंतिम बार बिहार की सत्ता की कमान संभालना था।

उर्दू को प्रदेश में दिया दूसरी सरकारी भाषा का दर्जा

इसके पहले 1980 में जब डाॅ. मिश्रा दूसरी बार प्रदेश के मुख्यमंत्री बने थे तो अगले साल ही उन्होंने एक बहुत ही अहम  फैसला लेते हुए उर्दू को प्रदेश में दूसरी सरकारी भाषा का दर्जा दिया। उसके तुरंत बाद ही उन्होंने सरकारी कार्यालयों में उर्दू अनुवादकों की बहाली की। उर्दू अनुवादकों की बहाली उनके ही कार्यकाल में पहली और अंतिम बार हुई। हालांकि, उनकी नजर में ये फैसले उर्दू के विकास के लिए थे, मगर इनका सीधा वास्ता मुस्लिम समाज से था। कुछ मुस्लिम रहनुमाओं ने तब उन्हें 'मौलाना' की उपाधि भी दी।

'मौलाना जगन्नाथ मिश्रा' का भी मिला नाम

डाॅ. मिश्र के सम्मान में प्रकाशित कई पुस्तिकाओं में इन रहनुमाओं ने उन्हें 'मौलाना जगन्नाथ मिश्रा' के नाम से पुकारा। वंचित वर्ग के प्रति उनकी संवेदनशीलता भी कभी भूली नहीं जाएगी। सुदूर गांव में रहने वाले गरीब एवं छोटे कार्यकर्ताओं को वे उनके नाम से याद रखते थे। बिहार में उनका ही मंत्रिमंडल ऐसा था, जिसमें अनुसूचित जाति के लोगों का अबतक का सबसे अधिक प्रतिनिधित्व रहा। तब बिहार का बंटवारा नहीं हुआ था और जम्बो साइज कैबिनेट का दौर था।


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