उपचुनाव: हुआ कुछ एेसा कि खुल गई महागठबंधन की गांठ, सबके रास्ते हुए अलग
उपचुनाव में सीटों के बंटवारे ने बिहार में महागठबंधन की पोल खोलकर रख दी है। महागठबंधन की गांठ एेसी खुली कि सभी दलों ने अपने रास्ते अलग कर लिए।
पटना [अरविंद शर्मा]। बिहार में दो मुद्दों पर गठबंधन धर्म तार-तार हो रहा है। पहला पटना में जलजमाव और दूसरा छह सीटों पर होने जा रहे उपचुनाव। जलजमाव पर राजग के घटक दल आपस में उलझ रहे हैं और उपचुनाव में महागठबंधन की गिरह खुल चुकी है। घटक दल कई गुटों में बंट गए हैं।
नामांकन वापस लेने की तारीख गुजर जाने के बाद भी नाथनगर से हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) और सिमरी बख्तियारपुर से वीआइपी के प्रत्याशी मैदान में डटे हैं। दोनों सीटों पर राजद के भी प्रत्याशी हैं। जाहिर है, जीतनराम मांझी और मुकेश सहनी के दल के प्रत्याशियों का मुकाबला राजद से तय है। सभी एक-दूसरे के खिलाफ प्रचार भी करेंगे।
हालात बता रहे हैं कि चुनावी सभाओं में मांझी और सहनी जितना जदयू के खिलाफ बरसेंगे, उतना ही अपने पुराने मित्र राजद पर भी खीझ उतारेंगे। मांझी ने यह भी साफ कर दिया है कि वह कांग्रेस प्रत्याशियों के पक्ष में तो प्रचार करने के लिए जाएंगे, किंतु राजद के हिस्से के क्षेत्रों से दूरी बनाकर रखेंगे। यही रवैया वीआइपी का भी रहेगा।
हालांकि महागठबंधन टूटने की अभी औपचारिक घोषणा नहीं हुई है और राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता एवं दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रोफेसर नवल किशोर को उम्मीद भी है कि उपचुनाव में हैसियत के आकलन के बाद घटक दल फिर बैठेंगे और नफा-नुकसान के आधार पर गठबंधन बात होगी। ...और आगे भी जारी रहेगा। किंतु राजद के तर्कों के आधार पर इससे भी इंकार नहीं किया जा सकता है कि उपचुनाव के नतीजे के बाद बिहार में विपक्षी दलों के बीच नया समीकरण बनेगा। परिणाम के आधार नए फॉर्मूले सामने आएंगे।
जदयू-भाजपा की जीत हुई तो पांचों दल बंधन मुक्त हो जाएंगे। उनमें से कुछ पाला बदल सकते हैं। कुछ जहां हैं, वहीं ठहरकर मौके का इंतजार कर सकते हैं। नया समीकरण भी बना सकते हैं। इस तरह करीब सवा चार साल पहले नीतीश कुमार की अगुवाई में तीन दलों का बना महागठबंधन इतिहास का हिस्सा बन जाएगा।
रास्ता अलग तो वास्ता भी खत्म
राजद के राष्ट्रीय प्रवक्ता के तर्कों से हिंदुस्तानी आवाम मोर्चा (हम) के प्रवक्ता दानिश रिजवान सहमत नहीं हैं। दानिश के मुताबिक जब राजद का रास्ता अलग हो गया तो वास्ता क्यों रखा जाए।
तेजस्वी यादव ने गठबंधन के साथ-साथ अपनी पार्टी को भी मंझधार में छोड़ दिया है। उन्हें पटना के जलजमाव, बिहार के सियासी हालात और उपचुनाव में लड़ रहे अपने दल के प्रत्याशियों से अधिक रिश्तेदार के चुनाव की चिंता है। ऐसे में उनका इंतजार क्यों और कबतक किया जाए?