'स्वाहा' के समवेत स्वर में कुरीतियों का दहन कर रहीं बेटियां, दुर्गा जत्था ने बदली कई जिंदगी
सैकड़ों बेटियां और पवित्र अग्नि के समक्ष स्वयं की पहचान का संकल्प जैसे उन्हें उनके स्वतंत्र अस्तित्व से साक्षात्कार करा रहा हो। अग्नि की इन्हीं लपटों से मिली ऊर्जा किसी चांदनी को बाल विवाह के विरुद्ध आवाज उठाने की शक्ति प्रदान कर रही है।
अश्विनी, पटना। 'स्वाहा' के समवेत स्वर में सामाजिक कुरीतियों का दहन करतीं सैकड़ों बेटियां और पवित्र अग्नि के समक्ष स्वयं की पहचान का संकल्प जैसे उन्हें उनके स्वतंत्र अस्तित्व से साक्षात्कार करा रहा हो। अग्नि की इन्हीं लपटों से मिली ऊर्जा किसी चांदनी को बाल विवाह के विरुद्ध आवाज उठाने की शक्ति प्रदान कर रही है तो कहीं गुंजा, नेहा और काजल वक्त से पहले ब्याह के बंधन में बांधने वाली सामाजिक कुरीति को तमाचा जड़ देती है। यह दृश्य है बिहार का, जहां सामाजिक कुरीतियों के विरुद्ध भूमिका विहार की पहल सैकड़ों बेटियों को नई राह दिखा रही है।
धमकियां भी मिलीं, तिरस्कार भी
इसका नेतृत्व कर रहीं संस्था की निदेशक शिल्पी सिंह कहती हैं कि हर महिला का स्वतंत्र अस्तित्व है। फिर उसकी इच्छा के विरुद्ध जबरन उस पर अपनी मर्जी थोपने और आज के प्रगतिशील समाज में भी बेटियों को दोयम दर्जा की मानसिकता क्यों? इसके विरुद्ध आवाज उठाने की एक पहल ने अभियान का रूप ले लिया है, पर शुरुआत हुई थी तो धमकियां भी मिलीं और तिरस्कार भी। हौसला बना रहा और आज दस हजार से अधिक बेटियां इस अभियान से जुड़कर कन्या भ्रूण हत्या, बाल विवाह, दहेज और समाज में पितृ सत्तात्मक सोच के विरुद्ध हुंकार भर रही हैं।
हवन कुंड में कुरीतियों को करती हैं भस्म
इसी कड़ी में दुर्गा जत्था का गठन किया गया, जो बेटियों की शिक्षा और अधिकार के प्रति गांव-शहर जागरूकता फैला रहा है। जत्थे में शामिल बालिकाएं यज्ञ का आयोजन भी करती हैं और पांच हजार से अधिक बेटियां एकत्रित होकर हवन कुंड में सामाजिक कुरीतियों को भस्म करने का संकल्प लेती हुई स्वाहा बोलती हैं।
जन्मोत्सव मनातीं दुर्गा जत्था की बेटियां। सौ: भूमिका विहार
बात चली ब्याह की तो भिड़ गईं
चांदनी आज इंटरमीडिएट के बाद आगे की तैयारी कर रही है, पर चार वर्ष पहले उसके माता-पिता ने 14 साल की उम्र में विवाह के लिए उसका स्कूल जाना बंद कर दिया था। उसने दुर्गा जत्था को न सिर्फ सूचित किया, बल्कि विवाह प्रस्ताव लेकर आए रिश्तेदारों से भी भिड़ गई। यह अग्नि के समक्ष संकल्प से मिली ऊर्जा का ही प्रभाव था। इंटरमीडिएट की शिक्षा लेने वाली अपने समाज की वह पहली बेटी है। कुछ ऐसा ही गुंजा, नेहा और काजल ने भी किया।
जन्म महोत्सव में खुद पर गौरव की अनुभति
ऐसी कई कहानियां हैं, जिसमें बेटियों ने अपनी स्वतंत्र पहचान और सपनों के लिए न सिर्फ हिम्मत जुटाई, बल्कि समाज को आईना भी दिखाया। इसका प्रभाव यह कि अभिभावकों का भी समर्थन मिलने लगा। लोग जुड़ते गए, कारवां बनता गया। ये बेटियां हर महीने पंचायत लगाती हैं, जहां सामाजिक विषयों पर खुल कर बात होती है। उस महीने जिन सदस्यों का का जन्म हुआ हो, उन सभी के लिए जन्म महोत्सव भी मनाया जाता है, ताकि उन्हें अपने जन्म लेने पर गौरव का अहसास हो। इनमें अधिसंख्य वंचित समाज से हैं, जिनके चेहरों पर आज स्वाभिमान की दमक है।
बेटियों के सपनों का सम्मान करें
एमबीए की शिक्षा प्राप्त कटिहार की शिल्पी को सामाजिक जागरूकता के लिए कनाडा, नीदरलैंड और अमेरिका से फेलोशिप भी मिला है। उन्होंने अमेरिका और भारत में लिंग आधारित असमानता पर अध्ययन किया। वे कहती हैं कि आज के दौर में भी महिलाओं पर अपनी इच्छा थोपी जाए, वे घरेलू हिंसा का शिकार हों, बेटियों के जन्म लेने पर चेहरे लटक जाएं, यह कतई स्वीकार्य नहीं होना चाहिए। उनके भी सपने हैं, उसका सम्मान कीजिए।