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भारत की सीमा पर कदम रखते ही डबडबा गईं सतीश की आंखें, 11 साल बाद हुआ कैद से रिहा Patna News

बिहार के दरभंगा जिले का रहने वाला सतीश चौधरी 11 साल बाद गुरुवार को बांग्लादेश की जेल से रिहा हो गया। दर्शना-गेडे बॉर्डर से जैसे ही उसने भारत की सीमा पर कदम रखा उसकी आंखें डबडबा गईं।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Fri, 13 Sep 2019 08:46 AM (IST)Updated: Fri, 13 Sep 2019 08:46 AM (IST)
भारत की सीमा पर कदम रखते ही डबडबा गईं सतीश की आंखें, 11 साल बाद हुआ कैद से रिहा Patna News
भारत की सीमा पर कदम रखते ही डबडबा गईं सतीश की आंखें, 11 साल बाद हुआ कैद से रिहा Patna News

पटना, जेएनएन। सालों की जद्दोजहद के बाद आखिरकार बिहार का लाल रिहा हो ही गया। बांग्लादेश की जेल में कैद दरभंगा का सतीश चौधरी 11 साल बाद गुरुवार को अपने वतन लौट आया। दोपहर 12:30 बजे दर्शना-गेडे बॉर्डर पर भारत की सीमा में कदम रखते ही सतीश की आंखें छलक गईं। सामने बड़े भाई मुकेश को देखकर वह उससे लिपट गया और रोने लगा। बीएसएफ के सेकेंड इन कमांड संजय दास ने कागजी कार्रवाई पूरी की और सतीश को परिजनों के हवाले कर दिया। शुक्रवार की रात तक मुकेश और सतीश दरभंगा स्थित घर लौट आएंगे।

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सीमा पर बांग्लादेश में भारतीय उच्च आयोग के काउंसलर उपेंद्र विश्वास भी पहुंचे थे। वहां के बार्डर गार्ड्स सतीश को सीमा तक लेकर आए। उन्होंने भी सतीश के लंबे समय तक परिवार से दूर रहने पर अफसोस जताया। बताया कि जेल में सतीश का दूसरे कैदियों के साथ अच्छा व्यवहार था। उसने कभी अधिकारियों को परेशान नहीं किया। हालांकि, सतीश को अब भी नहीं पता कि वह कैसे बॉर्डर पार कर वहां पहुंच गया था। पूछने पर वह बस इतना कहता था कि पटना से ट्रेन लेकर बंगाल आया, इसके आगे उसे कुछ भी याद नहीं है।

रिहाई के लिए भाई करता रहा जद्दोजहद

विडंबना है कि अंतरराष्ट्रीय मामला होने के बावजूद सतीश की वापसी को लेकर सीमा पर बिहार सरकार का कोई अधिकारी तक मौजूद नहीं था। इस पर मुकेश ने कहा कि भाई की रिहाई के लिए वह 11 सालों तक जद्दोजहद करता रहा। ग्रामीणों से चंदा वसूलकर बांग्लादेश तक गया, लेकिन कहीं सुनवाई नहीं हुई। 31 जुलाई को दैनिक जागरण में प्रमुखता से खबर प्रकाशित किए जाने के बाद मानवाधिकार कार्यकर्ता विशाल दफ्तुआर सजग हुए और उन्होंने बांग्लादेश के ढाका में स्थित भारतीय उच्च आयोग के अधिकारियों से बात की। इसके बाद रिहाई की प्रक्रिया शुरू हुई। मुकेश ने दैनिक जागरण को धन्यवाद दिया।

केवल भाई को ही पहचाना

सतीश मानसिक रूप से बीमार है। बांग्लादेश से लौटने के बाद उसकी मेडिकल जांच कराई गई, जिसमें कोई गंभीर रोग होने के प्रमाण नहीं मिले। सतीश केवल भाई मुकेश को पहचान रहा था। बीएसएफ के जवानों ने उसे नाश्ते में चाय-बिस्कुट दिया। इसके बाद उसे खाने में चावल, दाल और सब्जी भी दी गई। शाम पांच बजे सतीश को उसके भाई के हवाले कर दिया गया। दोनों भाई गेडे बॉर्डर से 22 किलोमीटर दूर पश्चिम बंगाल के नादिया जिले के कृष्णा नगर मुख्यालय पहुंचे। वहां वे होटल में रुके हैं। शुक्रवार की सुबह कोलकाता आएंगे और वहां से ट्रेन से दरभंगा लौटेंगे।

कदमकुआं इलाके में करता था पंडाल का निर्माण

दरभंगा जिले के हायाघाट थानान्तर्गत मनोरथपुर तुलसी गांव का रहने वाला मुकेश पटना के कदमकुआं इलाके में रहकर पंडाल निर्माण का काम करता है। वह 12 अप्रैल 2008 को छोटे भाई सतीश को काम के लिए पटना लेकर आया था। 15 अप्रैल 2008 को गांधी मैदान के पास एसके मेमोरियल हॉल में काम करने के दौरान सतीश लापता हो गया था। खोजबीन करने के बाद 8 मई 2008 को मुकेश ने गांधी मैदान थाने में गुमशुदगी की तहरीर दी थी। 17 मार्च 2012 को इंडियन रेडक्रॉस सोसायटी की बिहार राज्य शाखा से मुकेश के दरभंगा स्थित पते पर सतीश का एक पत्र भेजा गया। तब घरवालों को जानकारी मिली कि वह बांग्लादेश की जेल में कैद है।


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