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दहेज मुक्ति रथ: लंबी बहस की तरफ बढ़ी दहेज मुक्ति की बात, फैसले अब घर-घर होंगे

दैनिक जागरण ने जो दहेज कुप्रथा के खिलाफ पूरे बिहार में अभियान छेड़ा है, उसकी बानगी देखने को मिल रही है। लोग इस प्रथा को जड़ से मिटाने का संकल्प ले रहे हैं।

By Kajal KumariEdited By: Published: Sat, 02 Dec 2017 08:39 AM (IST)Updated: Sat, 02 Dec 2017 08:39 AM (IST)
दहेज मुक्ति रथ: लंबी बहस की तरफ बढ़ी दहेज मुक्ति की बात, फैसले अब घर-घर होंगे

पटना [विनय मिश्र]। कविता की लाइन है, मेरा शहर एक लंबी बहस की तरह है...। छपरा पर यह पंक्ति सटीक बैठती है। हर बात में बहस होती है यहां। वैसे भी मसाला गली में ट्रक से पटकी जा रहीं सुगंध भरी बोरियों की चीख, सब्जी बाजार की हड़बड़ी, टमटम वाले घोड़े की गले की घंटी, टेंपू की मारामारी कर रही सीटी और कोचिंग के बाहर बच्चों की किचमिच के साथ छपरा शहर सुबह थोड़ा पहले जग जाता है। 

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पुराने और नए समय के बीच फंसे इस इस शहर के बारे में पूछिए तो लोग पौराणिक कहानियां सुनाने लगते हैं। सिवान और गोपालगंज जैसे दो जिले इससे निकले हैं। पटना की गंगाजी भी छपरा की हैं और सोनपुर का हरिहरक्षेत्र भी। राजेंद्र बाबू थे, तब सिवान भी छपरा में ही था।

राजेंद्र कॉलेज, राजेंद्र स्टेडियम और राजेंद्र सरोवर सिवान में नहीं, छपरा में हैं। छपरा का नाम सारण है लेकिन दिल्ली में लोग इसे छपरा से ही जानते हैं और कोलकाता में भी। इसी छपरा में सुबह दैनिक जागरण का दहेज मुक्ति रथ निकला और दिन भर घूमता रहा। 

यहीं कहीं पहली बार सिला रहा कोट पैंट 

रथ चला सस्ते कंबलों की दुकान से सटकर, मोबाइल के ब्रांडेड शोरूम की सामने वाली सड़क से नगरपालिका चौक होते हुए हथुआ मार्केट वाले गोलंबर तक। बात चली तो एक बात बता दें कि छपरा का हथुआ मार्केट जिले भर में क्यों प्रसिद्ध है।

वर्षों तक यहां छपरा-सिवान के लोग दूल्हों के लिए सफारी और कोट-पैंट सिलवाने आते थे। अब पहले वाली बात नहीं रही। कितने ऐसे मार्केट बन गए हैं। वैसे भी दूल्हों के लिए अब ब्रांडेड कोट पैंट खरीदे जाते हैं। पटना-दिल्ली में भी शादी की खरीदारी होती है। उसका बिल बेटी के बाप को बता दिया जाता। या पहले ही कोट-पैंट का पैसा समधीजी के बैंक अकाउंट में ट्रांसफर करना पड़ता।

हथुआ मार्केट बदल गया है, लेकिन वह व्यवस्था नहीं बदली है, जिसके तहत वधू के पिता से पैसा लेकर दूल्हे के लिए जिंदगी में पहली बार (और शायद आखिरी बार भी) कोट पैंट खरीदा जाता है। मैचिंग टाई, मैचिंग जूते और अन्य सामान। शेरवानी भी प्रचलन में है।

शादी वाली शेरवानी जिंदगी में पहली और आखिरी बार खरीदी जाती। शादी के बाद पहनी भी नहीं जाती। कोई बड़ा शौकीन हुआ तो होली-दिवाली में पहन लेता है। चूहे न कुतर दें तो वर्षों बाद में बच्चों को दिखाया जाता, देखो मेरी शादी का कोट...। तुम्हारे नानाजी ने बीस हजार में सिलवाया था। 

डरने से काम नहीं चलेगा 

राजेंद्र स्टेडियम में पंडित जी बियाह करा रहे थे। दहेज वाला बियाह। पुलिस पकड़कर ले गई। अगुआ को भी नहीं छोड़ा। घरवालों को भी। नाटक करने वाले भी हंस रहे थे और देखने वाले भी। विवाह के मंडप में पुलिस का छापा पड़ रहा था, एक शादी टूट रही थी, ससुराल वाले जेल जा रहे थे और सब हंस रहे थे। नाटक देखकर ऐसा होता है।

असल जिंदगी में ऐसी घटनाएं दो परिवारों को बर्बाद कर देंगी। एसपी हरिकिशोर राय बोले, कानून बड़े कड़े हैं। दहेज की शिकायत मिलते ही जेल जाना पड़ता है। यह बात और है कि लोग शिकायत करने से हिचकते हैं। शिकायत करिए, पुलिस एक्शन लेगी। डरने से काम नहीं चलेगा। 

बेटा बेचवा हो गए हैं लोग 

सुबह छपरा के स्टेडियम में जागरूकता रैली में महाराजगंज के सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल भी थे। रथ छपरा में दोपहर तक घूमा फिर वहां से निकला तो मढ़ौरा होते हुए अमनौर पहुंच गया। सड़क से गुजरते जनार्दन सिंह सिग्रीवाल फिर टकरा गए। वहां के लोगों ने फिर उन्हें गाड़ी से उतार लिया। बड़े खुश थे।

बोले, सिर्फ स्टेडियम या सभागारों में नहीं, दहेज के खिलाफ जागरूकता बढ़ा रही यह गाड़ी ऐसे छोटे शहरों में भी गुजर रही, देखकर अच्छा लगा। आपने भिखारी ठाकुर के बेटी बेचवा नाटक के बारे में सुना होगा। आजकल लोग बेटा बेचवा हो गए हैं। दहेज के लिए बेटा बेचते हैं। 


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