प्रवासी बिहारी कामगारों का दर्द-जितना कोरोना टेस्ट कराना है करा लीजिए, हमें घर जाने दीजिए माई-बाप
बिहार से बाहर रह रहे प्रवासी कामगार देश के कई राज्यों में जहां-तहां फंसे हुए हैं और हर हाल में अपने घर वापस आना चाहते हैं। उनकी काउन्सेलिंग की जा रही है। लेकिन वो रो रहे हैं।
भुवनेश्वर वात्स्यायन, पटना। बिहार के बाहर लॉकडाउन में फंसे बिहारी कामगारों के मन में यह बात घर कर रही है कि वे परदेस में जिंदा नहीं रह पाएंगे। अगर मरना ही है तो अपने घर पर जाकर क्यों नहीं मरे। इस वजह से घर वापसी को लेकर लगातार दबाव बना रहे। बिहार फाउंडेशन के चैप्टर से जुड़े लोग इनकी काउंसिलिंग के लिए लगातार इनके इलाके में पहुंच कर इन्हें समझा रहे। समझाने पर ये लोग रोने लगते हैं। रोते हुए कहते हैं-जितना कोरोना टेस्ट हमारा कराना है करा लीजिए पर हमें घर जाने का इंतजाम करा दीजिए माई-बाप।
बिहार फांउडेशन के सीईओ आरएस श्रीवास्तव का कहना है कि प्रवासी कामगारों के लिए भोजन की समस्या नहीं है क्योंकि हमलोगों के कैंप के साथ-साथ वार्ड स्तर पर सक्रिय लोग इनकी मदद कर रहे हैं।
गुजरात के विभिन्न इलाकों में 15 लाख बिहारी कामगार हैं। अकेले सूरत में 7.50 लाख बिहारी कामगार अब भी मौजूद है। इसके अतिरिक्त अहमदाबाद, वापी और कच्छ में भी इनकी मौजूदगी है। सूरत में बिहार फाउंडेशन के चार कैंप चल रहे हैं। लोग लगातार बिहार आने की बात कर रहे हैं।
कैंप में जाकर उन्हें समझाया जा रहा कि अगर बाहर निकलेंगे तो और परेशानी होगी। घर जाने पर भी चौदह दिन स्कूलों में बने क्वारंटाइन कैंप में जाना होगा। वहीं महाराष्ट्र के बेलसर और भिवंडी में बड़ी संख्या में बिहार मजदूर रह रहे हैं। ये भी समूह में घर लौटना चाहते हैं।
महाराष्ट्र व कर्नाटक में हो रही काउंसिलिंग
महाराष्ट्र में काउंसिलिंग के लिए 28 टीम लगी है। समस्या कर्नाटक में भी आ रही है। बेंगलुरु और आसपास के कॉफी इस्टेट में 2.50 लाख बिहारी मजदूर हैं। इनकी भी काउंसिलिंग करायी जा रही है क्योंकि इनकी व्यथा भी यही है कि हमें घर पहुंचाने में मदद करें। मजदूर काउंसिलिंग के लिए पहुंचे वॉलेंटियर पर भड़क जा रहे।
हैदराबाद और बंगाल में स्थिति ठीक
हैदराबाद में अभी स्थिति ठीक है। पश्चिम बंगाल में बहुत परेशानी इस वजह से भी नहीं है कि लगभग डेढ़ करोड़ बिहारी वहां अब अपने परिवारों के साथ रह रहे हैं।