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प्रशांत किशोर के बहाने एकसाथ कई लक्ष्य साधेंगे CM नीतीश, JDU में होगी अहम भूमिका

जदयू में प्रशांत किशोर की एंट्री से कम धमाकेदार उनका राष्‍ट्रीय उपाध्‍यक्ष बनना नहीं है। इससे मुख्‍यमंत्री नीतीश कुमार की कई रणनीतियां एक साथ सध रहीं हैं। डालते हैं एक नजर।

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 17 Oct 2018 09:10 PM (IST)Updated: Thu, 18 Oct 2018 07:52 AM (IST)
प्रशांत किशोर के बहाने एकसाथ कई लक्ष्य साधेंगे CM नीतीश, JDU में होगी अहम भूमिका
प्रशांत किशोर के बहाने एकसाथ कई लक्ष्य साधेंगे CM नीतीश, JDU में होगी अहम भूमिका

पटना [अरुण अशेष]। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की जनता दल यूनाइटेड (जदयू) में एंट्री से चौकन्ने हुए लोग उनके उपाध्यक्ष बनने के बाद कुछ अधिक सतर्क हो रहे हैं। वजह बाहर रहकर सलाहकार की भूमिका में ही किशोर ने नीतीश कुमार के कैबिनेट के गठन मेंं महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उनकी सलाह पर जदयू के कुछ ऐसे नेता भी मंत्री बनने से चूक गए थे, जिनके बारे में माना जा रहा था कि उनके बिना सरकार बन ही नहीं सकती है। मगर, सरकार बनी। चल रही है। इसी तरह बीते विधानसभा चुनाव में जदयू के उम्मीदवारों के चयन में भी प्रशांत की राय को तरजीह मिली थी। 101 उम्मीदवार में 71 की जीत बुरी नहीं थी।

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पार्टी के लिए होलटाइमर की थी तलाश

कह सकते हैं कि किशोर को उपाध्यक्ष बनाकर नीतीश ने एक साथ कई लक्ष्य साध लिए। सेहत की वजह जदयू के प्रदेश अध्यक्ष वशिष्ठ नारायण सिंह की सक्रियता प्रभावित हो रही है। सड़क मार्ग से अधिक सफर करना उनसे संभव नहीं हो पा रहा है। नीतीश कुमार पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं। उनकी बड़ी जिम्मेवारी मुख्यमंत्री पद की है। संगठन के लिए होलटाइमर की भूमिका उनकी नहीं हो सकती है।

आरसीपी के पास पहले से पर्याप्‍त जिम्‍मेदारी

सांसद आरसीपी सिंह संगठन के निर्माण में किसी और की तुलना में अधिक सक्रिय हैं। विभिन्न सामाजिक समूहों को संगठन से जोडऩे की मुहिम में वे लगे हुए हैं। जदयू संसदीय दल के नेता आरसीपी ही हैं। उनके पास पहले से ही पर्याप्त जिम्मेवारी है।

नीतीश ने निर्धारित की आरसीपी और किशोर की भूमिका

नीतीश ने आरसीपी और किशोर की भूमिका निर्धारित कर दी है। किशोर उन विषयों पर गौर करेंगे, जो अब तब उपेक्षित पड़े थे। मसलन, छात्रों-युवाओं को जदयू से जोडऩा एक बड़ा कार्यभार है। इसे किशोर देखेंगे।

सत्ता में 13 साल रहने के बावजूद पार्टी की छात्र इकाई अपनी पहचान नहीं बना पाई है। विश्वविद्यालयों के छात्र संघों के चुनाव में छात्र जदयू की कायदे से हाजिरी नहीं बन पाती है। युवा इकाई का भी यही हाल है। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और वामपंथी दलों की तरह जदयू से बुद्धिजीवियों का जुड़ाव नहीं हो पाया है। प्रशांत किशोर संगठन की इन कमियों को दूर करेंगे।

पार्टी के लिए आंकड़े जुटाने में हाेगी अहम भूमिका

जदयू के सामने एक मुश्किल सर्वे रिपोर्ट, डाटा और ग्राफिक्स को लेकर भी पैदा हो रही है। उसे राष्‍ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सबसे बड़े दल भाजपा से मोल भाव करना रहता है। भाजपा के पास हरेक लोकसभा और विधानसभा क्षेत्र का डाटा है। क्षेत्र का इतिहास-भूगोल कंप्यूटर में दर्ज है। भाजपा कॉरपोरेट शैली में प्रेजेंटेशन के जरिए सामने वाले को प्रभावित करने की कोशिश करती है। जदयू इस फेर में पड़ चुका है।

पुराने दौर की डायरी वाली आंकड़ेबाजी  और अंगुलियों पर जातियों का नाम गिन कर आधार का दावा करने वाली तरकीब किसी काम की नहीं रह गई है। प्रशांत किशोर इस कमी की भी भरपाई करेंगे। उनके पास आंकड़े जुटाने वालों की प्रशिक्षित टीम है।

अब ऐसी टीम हरेक दल के पास है। कांग्रेस इस काम के लिए जदयू से जुड़े एक पेशेवर शाश्वत गौतम की मदद ले रही है। इसके अलावा एक और महत्वपूर्ण विषय है- संभावित मित्रों की तलाश। प्रशांत इसके लिए उपयुक्त माने जाते हैं। कामकाज के सिलसिले में भाजपा के अलावा कांगे्रस से भी उनका रिश्ता रहा है।

सामाजिक समीकरण पर भी नजर

सामाजिक समीकरण भी किशोर की एंट्री से सध रहा है। राजद ने दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. मनोज झा को राज्यसभा में भेज कर सवर्णों के एक हिस्से को अपने प्रति नरम किया था। किशोर को महत्वपूर्ण पद देकर जदयू ने भी ऐसा ही संदेश दिया है। यह ठीक है कि किशोर पेशेवर राजनेता नहीं रहे हैं। लेकिन, बिहारी समाज में बेगाने की शादी में दीवाना होने वाले अब्दुल्ला भरे पड़े हैं। ये बहुत हद तक वोटों का निर्णय इस हिसाब से करते हैं कि वहां कोई तो अपना है।


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