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घर के साथ नदियों की सफाई करना भी हमारी जिम्मेवारी

श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी हे नाथ नारायण हे वासुदेवा। गोविंद जय-जय गोपाल जय-जय।

By JagranEdited By: Published: Thu, 18 Apr 2019 07:00 AM (IST)Updated: Thu, 18 Apr 2019 07:00 AM (IST)
घर के साथ नदियों की सफाई करना भी हमारी जिम्मेवारी
घर के साथ नदियों की सफाई करना भी हमारी जिम्मेवारी

पटना। श्रीकृष्ण गोविंद हरे मुरारी, हे नाथ नारायण हे वासुदेवा। गोविंद जय-जय गोपाल जय-जय। वृंदावन लाल की जय, राधा-कृष्ण की जय, कृष्ण मुरारी की जय आदि का जयघोष सत्संग के दौरान श्रद्धालु लगा रहे थे। व्यास पीठ पर बैठे वृंदावन से आए श्रीमद्भागवत कथा मर्मज्ञ आचार्य पवन देव महाराज ने कथा पर विस्तार से प्रकाश डाला। कदमकुआं स्थित नागाबाबा ठाकुरबाड़ी परिसर में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के दूसरे दिन आचार्य ने शिव-पार्वती संवाद के साथ पर्यावरण, जल, बेटी सरंक्षण पर विस्तार से चर्चा की। व्यास ने कहा कि आज कल के लोग तीर्थ स्थान को पिकनिक के रूप में देख रहे हैं। ऐसे में गंगा व अन्य नदियों में प्रदूषण बढ़ता जा रहा है। नदियों में स्नान करने के दौरान लोग साबुन आदि का प्रयोग करते हैं जिससे न केवल नदियों का पानी गंदा होता है बल्कि उसके अंदर रहने वाले जीव-जंतु के शरीर पर दुष्प्रभाव पड़ता है। कथा वाचक ने कहा कि जिस प्रकार हम अपने घरों को साफ-सुथरा रखने का प्रयास करते हैं ठीक उसी प्रकार गंगा व अन्य नदियों को साफ करने का प्रयास करें तो देश की तमाम नदियां का जल स्वच्छ होने के साथ देश भी स्वच्छ होगा। बदलते मौसम परिवर्तन पर कथा वाचक ने कहा कि आज कल पेड़ों की कटाई विकास के नाम पर तेजी से हो रहा है। जिससे पर्यावरण का संतुलन बिगड़ गया है। जिससे बिना मौसम वर्षा तो कभी ओला पड़ने लगा है। आचार्य ने कहा कि एक पेड़ लगाना एक यज्ञ करने के बराबर होता है। पेड़ पर आचार्य ने भगवान श्रीकृष्ण गीता में कहा कि पीपल का वृक्ष में वास करता हूं। ऐसे में उनकी बातों को अगर इंसान अमल कर अधिक से अधिक पीपल लगाए तो पर्यावरण स्वच्छ होने के साथ लोगों के जीवन में भी सुधार आएगा। सत्संग की महत्ता पर आचार्य ने कहा कि सत्संग से जुड़े लोगों के मन और बुद्धि स्वच्छ होने के साथ सामाजिक कार्यो में लगा होता है। ऐसे में हरेक व्यक्ति को अपने जीवन में सत्संग करना जरूरी है। कथा के दौरान यजमान संजीत प्रसाद गुप्ता, रेणु गुप्ता सहित श्रोताओं ने कथा का रसपान किया।

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