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चिराग पासवान को लगा झटका, पशुपति कुमार पारस चुने गए लोजपा संसदीय दल के नेता

लोकसभा में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) संसदीय दल के नेता के रूप में पूर्व मंत्री और पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को मान्यता मिल गई है। लोकसभा सचिवालय ने सोमवार शाम पारस को सदन में लोजपा के नेता के रूप में मान्यता दे दी।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Mon, 14 Jun 2021 11:44 PM (IST)Updated: Tue, 15 Jun 2021 12:08 AM (IST)
चिराग पासवान को लगा झटका, पशुपति कुमार पारस चुने गए लोजपा संसदीय दल के नेता
लोकसभा में लोजपा संसदीय दल के नेता के रूप में पशुपति कुमार पारस को मान्यता मिल गई है।

नई दिल्ली/पटना, राज्य ब्यूरो। लोकसभा में लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) संसदीय दल के नेता के रूप में पूर्व मंत्री और पार्टी के संस्थापक रामविलास पासवान के छोटे भाई पशुपति कुमार पारस को मान्यता मिल गई है। लोकसभा सचिवालय ने सोमवार शाम पारस को सदन में लोजपा के नेता के रूप में मान्यता दे दी। रविवार को पार्टी के छह में से पांच सांसदों ने रामविलास पासवान के बेटे चिराग पासवान की जगह पारस को नेता चुनकर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला को अपने फैसले से अवगत करा दिया था। पार्टी की सांसद वीणा देवी के आवास पर हुई बैठक में पांचों सांसदों ने महबूब अली को लोकसभा में उपनेता और चंदन सिंह को मुख्य सचेतक बनाने का आग्रह किया था।

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भतीजे चिराग से चाचा पारस ने मिलने से मना किया

लोजपा में विद्रोह के बाद चिराग सोमवार को डैमेज कंट्रोल में जुटे रहे। संसदीय दल नेता का पद संकट में पड़ने के बाद वह पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष का पद इस शर्त पर छोड़ने के लिए तैयार हैं कि उनकी मां रीना पासवान को पार्टी की कमान सौंप दी जाए। इसी सिलसिले में चिराग सोमवार को अपने चाचा पशुपति कुमार पारस से मुलाकात करने पहुंचे। दिल्ली में पारस के आवास पर चिराग को दरवाजे पर करीब 35 मिनट प्रतीक्षा करनी पड़ी। दरवाजा तो खुला, लेकिन घंटे भर इंतजार के बाद भी चाचा से मुलाकात नहीं हो पाई। रीना पासवान भी प्रिंस राज एवं परिवार के अन्य सदस्यों से बातचीत कर रही हैं।

मजबूरी में लिया फैसला

भतीजे चिराग के खिलाफ विद्रोह को पशुपति कुमार पारस ने मजबूरी बताया है। उन्होंने कहा कि चिराग की कार्यशैली से पार्टी में तमाम लोग घुटन महसूस कर रहे थे। जनमानस में पार्टी की छवि दिन-प्रतिदिन खराब हो रही थी और मुझे इस बात की चिंता थी कि मेरे बड़े भाई रामविलास पासवान के सिद्धांतों की बलि दी जा रही है। पारस ने कहा कि हमने पार्टी तोड़ी नहीं बचाई है। पांच सांसदों की इच्छा थी कि पार्टी का अस्तित्व खत्म हो रहा है, इसलिए इसे बचाया जाए। चिराग से कोई दिक्कत नहीं है, वह पार्टी में बने रहें। उन्हें मेरे नेतृत्व में काम करना होगा। उनके जो अच्छे सुझाव होंगे, उसे मानूंगा, लेकिन पार्टी का नेतृत्व कार्यकर्ताओं, पदाधिकारियों एवं सांसदों की आमराय से करूंगा।

जदयू में खुशी, महागठबंधन भी मायूस नहीं

लोजपा में बगावत से जदयू में खुशी है, तो महागठबंधन भी मायूस नहीं है, लेकिन भाजपा खामोश है। जदयू में खुशी की वजह यह है कि विधानसभा चुनाव में परेशान करने वाले चिराग पासवान घर में ही किनारे कर दिए गए हैं। लोजपा उम्मीदवारों के चलते तीन दर्जन से अधिक सीटों पर जदयू की हार हुई। चुनाव अभियान में चिराग मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के प्रति तल्ख बने रहे। महागठबंधन के बड़े घटक दल राजद के नेताओं ने चुनाव के दौरान कभी चिराग से खुलकर बात नहीं की, लेकिन राजद की जीत आसान करने वाले उम्मीदवारों को खड़ा करने से लोजपा ने परहेज नहीं किया। सीटों की संख्या को लेकर राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) में जब विवाद चल रहा था, राजद ने लोजपा की ओर दोस्ती का हाथ बढ़ाया था।


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