बिहार सरकार के रुपये लेकर भूल जा रहे बोर्ड और निगम, खर्च का हिसाब देने में जरा भी रुचि नहीं
Bihar News आय-व्यय का सालाना ब्योरा नहीं दे रहे कई बोर्ड-निगम सरकार हुई गंभीर समय से वार्षिक प्रतिवेदन देने का आदेश उदासीन अफसरों पर कार्रवाई की अनुशंसा इसके चलते सरकार को काफी मुश्किल का सामना करना पड़ रहा है
पटना [दीनानाथ साहनी]। बिहार सरकार के कई बोर्ड, निगम और आयोग आय-व्यय का वार्षिक ब्योरा नहीं दे रहे हैं। इससे प्रशासी विभागों को महालेखाकार कार्यालय को बजट रिपोर्ट भेजने में कई दुश्वारियों का सामना करना पड़ रहा है। लोक सूचना के अधिकार कानून के तहत मिली जानकारी से खुलासा हुआ है कि ये ऐसे निगम और बोर्ड हैं हैं जिन्हें सरकार हर साल संचालन के नाम पर भारी भरकम राशि का आवंटन तो करती है, लेकिन इनके द्वारा ना तो अपनी आय-व्यय का वार्षिक ब्योरा दिया जाता है और ना ही ये किसी तरह के वित्तीय अनुशासन के दायित्व का निर्वहन ही कर रहे हैं।
महालेखाकार कार्यालय भी जता चुका है आपत्ति
सूचना के अधिकार कानून के तहत दी गई अर्जी से यह जानकारी मिली है कि प्रशासी विभागों के माध्यम से जिन बोर्ड, निगम तथा आयोग का वार्षिक ब्योरा नहीं मिला है उस पर महालेखाकार कार्यालय ने कड़ी नाराजगी जताया है। जानकारी के मुताबिक बिहार राज्य बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने वित्तीय वर्ष 2010-11, 2011-12, 2012-13, 2014-15, 2015-16, बिहार राज्य अल्पसंख्यक आयोग ने 2014-15, 2015-16, बिहार राज्य सूचना आयोग ने वर्ष 2008-09, 2009-10, 2010-11, 2011-12, 2012-13, 2014-15, 2015-16 और बिहार राज्य बाल श्रमिक आयोग ने वर्ष 2010-11 तथा 2011-12 ने प्रशासी विभागों को वार्षिक प्रतिवेदन नहीं भेजा। जबकि हर साल सरकार से वित्तीय मदद मिलती है पर सरकारी नियमों की धज्जियां उड़ाते हुए ये निगम, बोर्ड एवं आयोग वाॢषक प्रतिवेदन भी नहीं सौंपते हैं।
पूर्व में विधानसभा की समिति भी जता चुकी है आपत्ति
पूर्व में बिहार विधानसभा की सार्वजनिक उपक्रम समिति भी बोर्ड-निगम द्वारा समय पर वार्षिक प्रतिवेदन नहीं उपलब्ध कराने पर आपत्ति जता चुकी है। आरटीआइ कार्यकर्ता शिवप्रकाश राय ने बताया कि हमने अलग-अलग आवेदन देकर बिहार सरकार ने सभी आयोगों, निगमों और बोर्डो से वार्षिक प्रतिवेदन की सूचना मांगी थी, लेकिन 80 फीसद आवेदनों पर सूचना नहीं मिली तब राज्य सूचना आयोग से सूचना दिलाने की गुहार लगाई है पर अभी तक आयोग के स्तर से भी मामला लंबित है। उन्होंने बताया कि कई निगम, आयोग और बोर्ड अब सफेद हाथी बन चुके हैं। कहने को तो ये सभी कागजों पर काम कर रहे हैं, लेकिन हकीकत में ये पंगु बन चुके हैं।
समय से प्रतिवेदन उपलब्ध कराने की हिदायत
विभागों की ओर से वाॢषक प्रतिवेदन देरी से पेश करने के मामले में अफसरों के माफीनामे के बाद हुई सरकार की किरकिरी होना आम है। हालांकि अब सरकार गंभीर हो गई है। सरकार ने वाॢषक प्रतिवेदन समय पर उपलब्ध कराने की हिदायत संबंधित आयोग, निगम तथा बोर्ड को दी है। वित्त विभाग के एक उच्च पदस्थ अधिकारी ने बताया कि व्यवाहारिक तौर पर देखा गया है कि विभिन्न विभागों से संबधित सवालों के जवाब तो अधिकारी किसी तरह से विधानसभा भेज देते हैं, लेकिन न नियंत्रक, महालेखा परीक्षक की विभागों के खर्च के लेकर की गई टिप्पणियों को लेकर अफसर उदासीन रहते हैं। ऐसे अफसरों पर कार्रवाई की अनुशंसा की गई है।