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बिहार का जानलेवा मौसम: केवल वज्रपात से गई दो हजार की जान, पटना सहित 10 जिलों में अधिक खतरा

Bihar Weather News बिहार में जानलेवा बनता जा रहा है बरसात का मौसम पटना सहित 10 जिलों में अधिक खतरा बाढ़ से भी ज्यादा जानलेवा साबित होने लगा वज्रपात बिहार में वज्रपात ने छह वर्षों में ली लगभग दो हजार लोगों की जान

By Shubh Narayan PathakEdited By: Published: Mon, 04 Jul 2022 07:24 AM (IST)Updated: Mon, 04 Jul 2022 03:06 PM (IST)
बिहार का जानलेवा मौसम: केवल वज्रपात से गई दो हजार की जान, पटना सहित 10 जिलों में अधिक खतरा
बिहार में वज्रपात से खूब हो रहीं मौतें। प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर

अरविंद शर्मा, पटना। Bihar News: बिहार के लिए बरसात का मौसम बड़ा अजीब है। यहां के किसान बरसात के मौसम का बेसब्री से इंतजार करते हैं, तो एक बड़ी आबादी ऐसी भी है, जो बरसात का जिक्र आते ही कांप उठती है। राज्‍य के कई इलाकों में वर्षा का मौसम जानलेवा हो जाता है। राज्‍य में बाढ़ और नदियों में डूबने से ढेरों लोगों की मौत होती है। लेकिन, पिछले कुछ वर्षों से प्राकृतिक आपदाओं में वज्रपात अब सबसे ज्यादा जानलेवा होते जा रहा है। बाढ़ से भी ज्यादा। छह वर्षों के दौरान बिहार में वज्रपात से लगभग दो हजार लोगों की जान जा चुकी है। राज्य सरकार के लिए यह चिंता का सबब है। 

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बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण का अध्ययन इसे भौगोलिक स्थिति और जलवायु परिवर्तन का असर बताता है। बिहार में मानसूनी जलवायु है, जो गर्मी और नमी के लिहाज से अति संवेदनशील है। इसके चलते राज्य में तीव्र गर्जन और तेज वर्षा के साथ वज्रपात की घटनाएं ज्यादा होती हैैं। 

अध्ययन बताता है कि वज्रपात की घटनाएं उसी क्षेत्र में सबसे ज्यादा होती हैैं, जहां वर्षा के पहले तेज गर्मी पड़ती है। सामान्य तौर पर दोपहर बाद होने वाली वर्षा में ही बिजली कड़कती है। उस समय सूर्य का ताप तेज होने के कारण वातावरण में गर्मी ज्यादा होती है। बिहार में दो तरह के जलवायु हैैं। पूर्वी भाग आद्र्र शुष्क है तो पश्चिमी भाग शुष्क है।

तेज गर्मी के बीच आद्र्र एवं शुष्क हवाओं के टकराने के कारण कपासी बादल (क्यूमुलोनिंबस का निर्माण होता है, जिनकी परत लगभग पांच सौ मीटर से ज्यादा मोटी होती है। उसका आधार धरातल तक होता है। हाल के वर्षों में प्रदूषण भी बढ़ा है, जिससे आकाश में धूलकण की मात्रा बढ़ी है। जब कपासी बादल संघनित होकर वज्रपात की स्थिति उत्पन्न करते हैैं तो धूलकण कंडक्टर का काम करने लगते हैैं। इस तरह की स्थितियों में वज्रपात और उससे होने वाली मौतों की संख्या बढ़ जाती है। मौसम केंद्र पटना के निदेशक आनंद शंकर के मुताबिक बिहार-झारखंड, यूपी एवं ओडिशा में घनी आबादी और जागरूकता की कमी के चलते वज्रपात से मौत ज्यादा होती है। 

बचाव के लिए सायरन-हूटर का इस्तेमाल

वज्रपात के लिहाज से वैसे जमुई, भागलपुर, पूर्णिया, बांका, औरंगाबाद, गया, कटिहार, पटना, नवादा और रोहतास जिले सबसे ज्यादा संवेदनशील हैैं। इस बार तीन जिलों को ज्यादा सतर्क किया गया है। प्राधिकरण की ओर से पटना, गया एवं औरंगाबाद में पंचायत स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम चलाए जा रहे हैैं। वज्रपात से पहले लोगों को सतर्क करने के लिए सायरन एवं हूटर का इस्तेमाल किया जा रहा है। 

इंद्रवज्र भी नहीं हो रहा कारगर

वज्रपात से शहरों में कम और ग्रामीण क्षेत्रों में ज्यादा मौतें होती हैैं। सरकार ने बचाव के लिए इंद्रवज्र नाम का ऐप लाया है, जो वज्रपात से करीब 40 मिनट पहले लोगों को अलार्म टोन एवं संदेश के जरिए सतर्क करता है। किंतु इसके लिए मोबाइल पर इस ऐप को डाउनलोड करना जरूरी होता है। जागरूकता और जानकारी के अभाव में लोग इसे डाउनलोड नहीं करते। गांवों में बरसात में अधिकतर लोग खेतों में काम करते होते हैैं। उनके पास मोबाइल नहीं होता। ऐसे में आसानी से वज्रपात की चपेट में आ जाते हैैं। 

वज्रपात से मौतें 

  • वर्ष : संख्या 
  • 2017 : 514 
  • 2018 : 302 
  • 2019 : 269
  • 2020 : 443
  • 2021 : 273
  • 2022 : 118 (अभी तक)
  • कुल : 1919
  • (स्रोत : आपदा प्रबंधन प्राधिकरण, बिहार)

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