साहित्य संवाद का सार्थक मंच बनेगा बिहार संवादी, साहित्यकारों ने दीं शुभकामनाएं
पटना में 21-22 अप्रैल को 'बिहार संवादी' का आयोजन किया जा रहा है। इसे लेकर बिहार के साहित्यकारों ने शुभकामनाएं दी हैं।
पटना [जेएनएन]। राजधानी के तारामंडल सभागार में 21 और 22 अप्रैल को 'बिहार संवादी' का आयोजन होना है। यह आयोजन भले ही पटना में हो रहा हो, मगर इसपर निगाहें पूरे बिहार के साहित्यकारों की हैं। वे आयोजन को लेकर उत्सुक हैं। मुजफ्फरपुर, भागलपुर, गया, आरा, बक्सर, सासाराम, अररिया, खगडिय़ा, मधुबनी, बेतिया समेत कई जिलों के साहित्यकारों ने जागरण संवादी के आयोजन को सार्थक मंच बताया है और अपनी शुभकामनाएं दी हैं। डालते हैं एक नजर...
दैनिक जागरण का यह प्रयास न सिर्फ सराहनीय है, बल्कि हमारे समय की सबसे प्रखर मांग भी है। जब तक हमारा समाज पहले की भांति पुन: साहित्य को नहीं अपनाएगा तब तक सही अर्थों में समाज का विकास नहीं हो पाएगा। जागरण के इस अभियान से इस सोच को गति मिलेगी।
- डॉ. मिथिलेश्वर (वरिष्ठ कथाकार, आरा)
आज हिंदी को बिगाडऩे में कोई कसर नहीं छोड़ी जा रही है। बच्चों के स्कूल से ङ्क्षहदी गायब हो रही है। इलेक्ट्रॉनिक चैनल पर हिंगलिश का प्रयोग धड़ल्ले से हो रहा है। कहा तो यह भी जा रहा है कि लिखित साहित्य का महत्व कम हो गया है। ऐसे समय में दैनिक जागरण का यह प्रयास सराहनीय है।
- अनंत कुमार सिंह (वरिष्ठ कथाकार, आरा)
साहित्य और पत्रकारिता समाज का दर्पण ही नहीं, दिशानिर्देशक भी होता है। दैनिक जागरण का 'बिहार संवादी' कार्यक्रम एक बेहतर पहल है, इससे साहित्य, कला और संस्कृति पर गंभीर चर्चा होगी। इस मुहिम के लिए जागरण को ढेर सारी शुभकामनाएं।
- प्रो.(डॉ.) गुरुचरण सिंह (कहानीकार, सासाराम)
हिंदी पत्रकारिता और साहित्य का प्रगाढ़ संबंध है। कारण कि हिंदी मानसिकता को तैयार करने में पत्रकारों और अखबारों की भूमिका महत्वपूर्ण रही है। रिपोर्ताज, फीचर और इंटरव्यू जैसे नए गद्य-रूप पत्रकारिता की कोख से पैदा हुए हैं। ऐसे में जागरण द्वारा बेहतर संवाद की स्थिति बनाने का यह प्रयास स्वागतयोग्य है। बधाई बिहार संवादी!!!
- डॉ. राजेंद्र प्रसाद सिंह (समालोचक, रोहतास)
आज हिंदी वैश्वीकरण और बाजारवाद की पीठिका में बोलचाल से लेकर सूचना प्रौद्योगिकी के विभिन्न संजालों, यथा प्रिंट मीडिया, दृश्य मीडिया, ट्विटर, फेसबुक आदि पर साहित्य सृजन, संवाद विज्ञापन, अध्ययन-मनन, ज्ञान-विज्ञान और अनुसंधान की भाषा के रूप में महत्वपूर्ण काम कर रही है। कई पीढिय़ों को यहां विमर्श में शामिल देखा जा सकता है। दैनिक जागरण का बिहार संवादी हिंदी साहित्य के परिदृश्य को सार्थक हस्तक्षेप प्रदान करेगा।
- डॉ संजय सिंह (साहित्यकार, अररिया)
चिंतन-मनन, विचार-विमर्श और संवाद की हिंदी पट्टी में परंपरा रही है। संवाद की इस महती परंपरा के कारण ही गांव-देहात के हमारे बूढ़े-बुजुर्गों के पास ज्ञान का अथाह भंडार है। यहां संवाद की गौरवमयी परंपरा रही है। ऐसे में दैनिक जागरण की ओर से बिहार संवादी एक ऐतिहासिक पहल है। यह आयोजन लेखकों, कलाकारों, संस्कृतिकर्मियों को नई ऊर्जा से भरेगा। जय हिंदी, जय साहित्य।
- कैलाश झा किंकर (लेखक, खगडिय़ा)
संवाद से संवाद बनेगा तो बेहतर रास्ता निकलेगा। बात निकलेगी तो दूर तलक जाएगी ही इसलिए जागरण का 'बिहार संवादी' इस दिशा में एक सार्थक पहल है। साहित्य से ही समाज को नई दिशा मिलेगी। नई-पुरानी पीढ़ी के बीच रचनात्मक संवाद साहित्य की नई जमीन तैयार करेगी। सार्थक संवाद हो यह मेरी अपेक्षा है। ऐसे आयोजन के लिए जागरण को बधाई।
- रेवती रमण (समालोचक, मुजफ्फरपुर)
पढऩे लिखने की संस्कृति बहाल रखेंगे, संवाद में यकीन रखेंगे तभी हम दुनिया को सृजनात्मक बना पाएंगे और तमाम न्यूनताओं, क्षुद्रताओं से निपट पाएंगे। मुझे यकीन है कि दैनिक जागरण का 'बिहार संवादी' विभिन्न पीढिय़ों, पाठकों-लेखकों एवं आम साहित्य प्रेमियों के बीच संवाद की सृजनात्मक प्रक्रिया को नवीनता प्रदान करेगा।
- डॉ. दीपक कुमार राय (युवा साहित्यकार, बक्सर)
उम्मीद है कि 'बिहार संवादी' साहित्य की दुनिया में संवाद का एक सार्थक मंच बनेगा और साहित्यिक मंच से निकला यह संवाद समाज के भी व्यापक दायरे में उतरेगा। अपनी परम्परा, अपनी विरासत से संवाद करते हुए समकालीन मुद्दों की वस्तुनिष्ठ समझ को रेखांकित करने में 'बिहार संवादी' सफल होगा ऐसा यकीन है।
- कुमार नयन (गजलकार, बक्सर)
हिंदी विश्वभाषा से लेकर बाजार तक की भाषा हो गई है। स्वतंत्रता प्राप्ति से लेकर राष्ट्रीय अस्मिता की रक्षा में यह अग्रणी रही है। दैनिक जागरण का बिहार संवादी कार्यक्रम लेखकों, संस्कृतिकर्मियों के लिए अपना मंच साबित होगा, जहां वे साहित्यक, सामाजिक सांस्कृतिक मसलों पर संवाद कर सकेंगे।
- डॉ. संजय पंकज (साहित्यकार, मुजफ्फरपुर)
आजादी के बाद हिंदी का जिस प्रकार विकास होना चाहिए, वह नहीं हो सका। जिस प्रकार सरकारी स्तर पर हिंदी के विकास की बात कही जाती है, उस स्तर पर प्रयास नहीं हो रहा है। ऐसे में दैनिक जागरण की ओर से संवादी मंच हिंदी लेखकों की रचनात्मकता बेहतर तरीके से दुनिया के सामने लाने का उपक्रम साबित हो सकता है।
- डॉ. जेपी सिंह (साहित्यकार, मधुबनी)
हिंदी की समृद्धि राष्ट्र की समृद्धि है। वर्तमान अर्थप्रधान समाज में सांस्कृतिक मूल्य, नैतिकता और मानवता आदि का क्षरण हो रहा है। अब हिंदी में मौलिक लेखन व अनुवाद के व्यापक पैमाने की जरूरत है। बिहार संवादी से युवा साहित्यकारों और लेखकों को आगे बढऩे का मौका मिलेगा। हिंदी साहित्य को नई दिशा मिलेगी।
- दिवाकर राय (साहित्यकार, बेतिया)
हिंदी की अनिवार्यता से ही हम भारतवर्ष को अपने मूल सांस्कृतिक रूप में देख और समझ सकते हैं, लेकिन हिंदी के विकास के लिए जनजागरण की जरूरत है। हिंदी साहित्य के विकास में संवादी का बेहतर परिणाम भविष्य में सामने आएगा। इस साहित्य विमर्श को आगे बढ़ाने की जरूरत है।
-डॉ. अमरकांत कुंवर (साहित्यकार, दरभंगा)
दैनिक जागरण द्वारा आयोजित 'बिहार संवादी' के दो दिवसीय आयोजन में आज के समकालीन प्रश्नों एवं मुद्दों के लिए एक नई राह निकलेगी, जो बिहार सहित पूरे देश और समाज के संकट के समाधान की दिशा दिखाएगी। आज के समय, समाज की समस्याओं के मुकम्मल समाधान के लिए उन सारे प्रश्नों पर विचार का मंच उपलब्ध होगा।
- रमेश ऋतम्भर (कवि, मुजफ्फरपुर)
दैनिक जागरण के द्वारा 'हिंदी हैं हम' के तहत चलाई जा मुहिम बिहार संवादी अवश्य ही रंग लाएगी। मेरा स्पष्ट मानना है कि अपनी मातृभाषा के साथ-साथ राष्ट्रभाषा का भी सम्मान देशवासी करें और सरकार हिंदी का संरक्षण-संवर्धन करे तो, हिंदी विश्व की सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा बन जाएगी और देश के विकास में प्रबल सहयोगिनी भी बनेगी।
- डॉ. सजल प्रसाद (एसोसिएट प्रोफेसर, मारवाड़ी कॉलेज, किशनगंज)
दैनिक जागरण द्वारा आयोजित 'बिहार संवादी' के दो दिवसीय आयोजन में आज के समकालीन प्रश्नों एवं मुद्दों यथा सत्ता विमर्श, अस्मितामुलक विमर्श, साहित्य एवं संस्कृति में धर्म एवं जाति के प्रश्नों से एक नयी राह निकलेगी जो हमारे बिहार सहित पूरे देश और समाज के संकट के समाधान की दिशा दिखाएगी। दैनिक जागरण को इस कदम के लिए साधुवाद।
- रमेश ऋतंभर (साहित्यकार, मुजफ्फरपुर)