Bihar Politics: जातीय जनगणना जैसे राजनीतिक मुद्दे गलियारे में गर्मी पैदा किए हुए
नीतीश की मुलाकात भले ही चौटाला की सेहत का हाल लेने को लेकर बताई जा रही हो लेकिन जातीय जनगणना जैसे मुद्दे पर मुखर इस मुलाकात को लेकर भाजपा के कान खड़े हो गए हैं। अगर नीतीश अध्यक्ष बनते हैं तो इस मुलाकात के अर्थ पर सभी की निगाहें रहेंगी।
पटना, आलोक मिश्र। यह बिहार की राजनीति की खासियत है कि जब कुछ न हो रहा हो तो भी राजनीति पकती रहती है। यहां हर पल राजनीति के लिए कोई न कोई मुद्दा मिल ही जाता है। कभी कभी तो एक साथ इतने मुद्दे मिल जाते हैं कि राजनीतिक दलों के सामने चयन का संकट उत्पन्न हो जाता है। इस समय जातीय जनगणना, सरकार के सहयोगी मुकेश सहनी की यूपी की राजनीति, नीतीश की चौटाला से संभावित मुलाकात जैसे मुद्दे राजनीतिक गलियारे में गर्मी पैदा किए हुए हैं।
अभी कुछ दिन पहले तक जातीय जनगणना की दूर दूर तक कोई चर्चा नहीं थी। अचानक लोकसभा में केंद्र सरकार के एक मंत्री ने एक सवाल के जवाब में कहा कि जातीय जनगणना की कोई योजना नहीं है। देशभर में कोई हलचल नहीं हुई, लेकिन बिहार की राजनीति ने अगले ही दिन इसे लपक लिया। अब पूरी राजनीति इसी के इर्द गिर्द घूम रही है। सबसे पहले राजद ने इसे उठाया। फिर समर्थन में धुर विरोधी जदयू ने भी देरी नहीं की। उपेंद्र कुशवाहा, केसी त्यागी बोल ही रहे थे, तभी मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने मांग कर दी कि केंद्र जातीय जनगणना के लिए दोबारा सोचे। नीतीश की मांग पर अब तक केंद्र सरकार की कोई टिप्पणी नहीं आई है। लेकिन राजनीति चल पड़ी है। विपक्ष के नेता तेजस्वी यादव ने प्रस्ताव दिया है कि नीतीश की अगुवाई में एक प्रतिनिधिमंडल प्रधानमंत्री से मिले। उनसे जातीय जनगणना का आग्रह करे। तेजस्वी के इस प्रस्ताव के बाद शुक्रवार को विपक्ष ने मुख्यमंत्री से मुलाकात की। इस मुद्दे पर मुख्यमंत्री विपक्ष के साथ हैं और सहयोगी भाजपा चुप्पी साधे इसे देख रही है। चूंकि बिहार विधानमंडल के दोनों सदनों से इस तरह की मांग दो बार सर्वसम्मति से की गई है, जिसे दोनों बार केंद्र सरकार को भेजा भी गया। इसलिए नीतीश पीछे भी नहीं हट सकते। वे सोमवार को इसके लिए प्रधानमंत्री को पत्र लिखने जा रहे हैं।
असल में मंडल की धारा से निकली राजनीतिक पार्टियां जातीय जनगणना में संभावना देख रही हैं। उन्हें लग रहा है कि राम मंदिर निर्माण आंदोलन के चलते मंडल की राजनीति में आए बिखराव को फिर एक बार पुराने माडल पर लाने में इससे मदद मिलेगी। यह हो पाएगा या नहीं इसके बारे में फिलहाल कोई राय नहीं बनाई जा सकती है, फिर भी इन दलों के लिए यह मुद्दा अर्थहीन नहीं है। इसमें उन्हें लंबी लड़ाई की गुंजाइश दिख रही है। राजनीतिक दल नए सिरे से गोलबंदी की संभावना देख रहे हैं। ऐसी ही संभावना तलाशने बिहार विधानसभा चुनाव में चार सीटें लाकर राज्य सरकार में भागीदार वीआइपी (विकासशील इंसान पार्टी) के अध्यक्ष मुकेश सहनी उत्तर प्रदेश चुनाव पर निगाहें लगा बैठे हैं। उन्होंने निषाद वोटों की गोलबंदी के लिए फूलनदेवी की प्रतिमा लगावाने की घोषणा कर दी। हालांकि लगने से पहले ही उनकी सारी मूर्तियां प्रशासन ने जब्त कर लीं और मंत्री मुकेश सहनी को वाराणसी हवाई अड्डे पर ही रोक कर कोलकाता रवाना कर दिया। इससे वे बहुत खिसियाए हुए हैं। इतने खिसियाए कि एनडीए विधायक दल की बैठक में भी अपनी टीम सहित शामिल नहीं हुए। वे एनडीए में उपेक्षा का आरोप लगा रहे हैं और मंत्री पद भी नहीं छोड़ना चाहते। दरअसल उनका प्रयास है कि उत्तर प्रदेश में अपनी ताकत दिखा भाजपा से गठबंधन कर कुछ सीटें हासिल कर पाएं। फिलहाल भाजपा भाव देती नहीं दिख रही।
नीतीश कुमार शुक्रवार को मानसून सत्र समाप्त होते ही दिल्ली रवाना हो गए। उनकी दो दिन की संक्षिप्त यात्र में मुद्दा टटोलने की कोशिश शुरू हो गई है। असल में शनिवार को दिल्ली में जदयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक बुलाई गई है, जिसमें यह माना जा रहा है कि केंद्र में मंत्री बनने के कारण वर्तमान राष्ट्रीय अध्यक्ष रामचंद्र प्रसाद सिंह अपना इस्तीफा सौपेंगे और नए अध्यक्ष की घोषणा होगी। सुगबुगाहट थी कि हाल ही में पार्टी में आए उपेंद्र कुशवाहा इस पद पर बैठ सकते हैं, लेकिन राजनीतिक गलियारे में अब इस बात की भी चर्चा होने लगी है कि चौंकाने वाले निर्णयों के लिए जाने जाने वाले नीतीश कहीं स्वयं न राष्ट्रीय अध्यक्ष बन जाएं। चूंकि नीतीश ने एक व्यक्ति एक पद के आधार पर विधानसभा चुनाव से पहले स्वयं यह पद छोड़ा था और आरसीपी को उत्तराधिकारी बनाया था, लिहाजा दोबारा उनकी ताजपोशी पर सवाल खड़े हो सकते हैं, इसलिए आगामी व्यवस्था होने तक का हवाला देकर ऐसा किया जा सकता है। यही नहीं, उसके बाद रविवार को उनकी मुलाकात ओमप्रकाश चौटाला के साथ भी है। मुलाकात भले ही चौटाला की सेहत का हाल लेने को लेकर बताई जा रही हो, लेकिन जातीय जनगणना जैसे मुद्दे पर मुखर नीतीश की इस मुलाकात को लेकर भाजपा के कान खड़े हो गए हैं। अगर नीतीश अध्यक्ष बनते हैं तो इस मुलाकात के अर्थ पर सभी की निगाहें रहेंगी।
[स्थानीय संपादक, बिहार]