घरेलू से लेकर हवाई जहाज तक के बल्ब बनाने वाली बिहार की लैंप सिटी की बत्ती गुल, दीपावली पर अंधेरा
पटना की लैंप सिटी में 90 के दशक में 200 कारखाने थे। देश भर में यहां के बल्ब जाते थे। जीएलएस यानी जेनरल लाइटिंग सर्विस बल्ब अनुपयोगी हो गए। पीला लट्टूनुमा फिलामेंट वाले बल्ब को लोगों ने नकार दिया।
दिलीप ओझा, पटना : पटना सिटी को कभी लैंप सिटी कहा जाता था। यहां घरेलू से लेकर हवाई जहाज तक के बल्ब बनते थे। 90 के दशक में यहां 200 कारखाने थे। देश भर में यहां के बल्ब जाते थे। वर्ष 2014 के बाद एलईडी बल्ब का चलन बढ़ने के बाद यह गौरव लुटता चला गया। यहां के जीएलएस यानी जेनरल लाइटिंग सर्विस बल्ब अनुपयोगी हो गए। पीला लट्टूनुमा फिलामेंट वाले बल्ब को लोगों ने नकार दिया। एलईडी बल्ब बनाने का संसाधन नहीं मिला। इस तरह से कारखाने बंद होते गए। दो साल पूर्व तक यहां 65 कारखाने थे। अब 15 कारखाने चल रहे थे। इसमें 23 सितंबर को पटना सिटी के ननमुहिया स्थित इंडिया लैंप कारखाना भी बंद हो गया।
सरकार का मिला साथ, उम्मीद अभी बाकी
वर्ष 2015-16 में मुख्यमंत्री कलस्टर विकास योजना के तहत पटना सिटी के बल्ब उद्योग के पुनरुद्धार की योजना बनी। लाइटिंग मैन्युफैक्चरिंग डेवलपमेंट सोसाइटी के नाम से बल्ब उद्योग का निबंधन हुआ। डेफ्थ स्टडी रिपोर्ट, डेफ्थ प्रोजेक्ट रिपोर्ट बनी, स्वीकृत भी हुई। बाद में सोसाइटी की जगह कंपनी के रूप में काउंसिल आफ फर्स्ट इलेक्ट्रोलाइटिंग नाम से निबंधन हुआ। उद्योग के लिए जमीन लीज पर ली गई। उद्योग विभाग ने लगभग 10 करोड़ रुपये का अनुदान स्वीकृत किया। हालांकि अनुदान अभी मिला नहीं है।
फिर लौटेगा पुराना गौरव
काउंसिल आफ फर्स्ट इलेक्ट्रोलाइटिंग के अध्यक्ष रणजीत कुमार जायसवाल ने कहा कि उद्योग विभाग के अधिकारियों का सहयोग मिल रहा है। अनुदान की राशि से यहां जापानी मशीन से इलेक्ट्रानिक उपकरणों का किट तैयार होगें। इससे एलईडी बल्ब, पेन ड्राइव से लेकर टीवी तक के किट बन सकेंगे। देश भर में यहां से किट जाएंगे। यह मशीन ऐसी होगी जिससे एक घंटे में 1.65 लाख कंपोनेंट सर्किट में तब्दील हो सकेंगे। 12 घंटे में 85 हजार नौ वाट के बल्ब यहां बन सकेंगे। उम्मीद है कि पटना सिटी फिर लैंप सिटी का गौरव हासिल कर सकेगा। बल्ब उद्यमी शैलेंद्र कुमार गुप्ता व सुधीर कुमार यादव ने कहा कि शीघ्र अनुदान नहीं मिला तो बचे कारखाने भी बंद हो जाएंगे।