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बिहार विधान परिषद चुनाव पर महंगाई की मार, पिछली बार जीते; इस बार छोड़ दिया मैदान

Bihar Legislative Council election आर्थिक रूप से कमजोर राजनेता पहले ही इस चुनाव से भाग चुके हैं। 2015 के चुनाव में औरंगाबाद स्थानीय प्राधिकार से विधान परिषद के लिए चुने गए राजन कुमार सिंह इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Mon, 17 Jan 2022 05:46 PM (IST)Updated: Mon, 17 Jan 2022 05:46 PM (IST)
बिहार विधान परिषद चुनाव पर महंगाई की मार, पिछली बार जीते; इस बार छोड़ दिया मैदान
बिहार विधान परिषद चुनाव से पहले कई ने मैदान छोड़ दिया है। सांकेतिक तस्वीर।

राज्य ब्यूरो, पटना: स्थानीय निकाय के वोटरों से होने वाले विधान परिषद की 24 सीटों के चुनाव पर भी महंगाई की मार पड़ रही है। अच्छी छवि मगर आर्थिक रूप से कमजोर राजनेता पहले ही इस चुनाव से भाग चुके हैं। यह एकदम नई बात है कि एक निवर्तमान विधान परिषद ने भी चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया है। 2015 के चुनाव में औरंगाबाद स्थानीय प्राधिकार से विधान परिषद के लिए चुने गए राजन कुमार सिंह इस बार चुनाव नहीं लड़ेंगे। पिछली बार वे भाजपा टिकट पर जीते थे। उन्हें 1761 और निकटतम प्रतिद्वंद्वी विनय प्रसाद को 1431 वोट मिले थे। 

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पूर्व विधान पार्षद ने सोमवार को दैनिक जागरण से बातचीत में स्वीकार किया कि चुनाव न लडऩे के फैसले के पीछे कई वजह हैं। बेशक, एक वजह आर्थिक भी है। चुनाव में कई उम्मीदवार बेशुमार खर्च करते हैं। यह इतना महंगा हो गया है कि चुनाव जीतने के बाद भी हम आम जनता के साथ इंसाफ नहीं कर पाते हैं। उन्होंने कहा कि चुनाव लडऩे के बदले वे अपने कारोबार को पटरी पर लाएंगे। एक मेडिकल कालेज खोलने की भी योजना है। चुनाव न लडऩे के बारे में उन्होंने भाजपा नेतृत्व को बता दिया है। पार्टी के साथ उनका जुड़ाव बना रहेगा। 

बदनाम हो रहा है यह चुनाव

वैसे तो हरेक चुनाव में धन बल का इस्तेमाल बढ़ा है। लेकिन, त्रि स्तरीय पंचायतों-स्थानीय निकायों निर्वाचित प्रतिनिधियों के वोट से होने वाले लगभग सभी चुनाव लेन देन के मामले में अधिक बदनाम हो रहे हैं। इसी को रोकने के लिए राज्य सरकार ने जनता की सीधी भागीदारी से मेयर-डिप्टी मेयर का चुनाव कराने का फैसला किया है। लेकिन, जिला परिषद के अध्यक्ष और प्रखंड प्रमुख के चुनाव में यह बीमारी अब भी लगी हुई है। त्रि स्तरीय पंचायत प्रतिनिधियों के वोट से होने वाले विधान परिषद के चुनाव की हालत और बुरी है। राजनीतिक दल भी उम्मीदवार की छवि के बदले खर्च करने की उसकी क्षमता को प्राथमिकता देते हैं। कहीं-कहीं तो ये जन प्रतिनिधि अपनी जीत का प्रमाण पत्र भी पैसे वाले उम्मीदवार के पास गिरवी रख देते हैं। 


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