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चारा घोटाले के लिए बदनाम बिहार अब चार राज्यों के पशुओं को खिलाएगा बैगबंद हरा चारा

राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से नव गंगा फूड प्रोडक्टस ने फसल अवशेष प्रबंधन समेत कई प्रकार के नवाचार किए हैं। इससे सालों भर पशुओं को हरा चारा मिलेगा। इस पहल से चार तरह के फायदे होंगे। पंजाब से सस्‍ता मिलेगा चारा।

By Sumita JaiswalEdited By: Published: Sun, 28 Mar 2021 06:00 AM (IST)Updated: Sun, 28 Mar 2021 06:00 AM (IST)
चारा घोटाले के लिए बदनाम बिहार अब चार राज्यों के पशुओं को खिलाएगा बैगबंद हरा चारा
पशुओं को खिलाने का हरा चारा,सांकेतिक तस्‍वीर ।

पटना, रमण शुक्ला । बिहार कभी चारा घोटाले के लिए बदनाम था। अब चार राज्यों के पशुओं के लिए हरा चारे का इंतजाम करेगा। राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के सहयोग से नव गंगा फूड प्रोडक्टस ने फसल अवशेष प्रबंधन समेत कई प्रकार के नवाचार किए हैं। इससे सालों भर पशुओं को हरा चारा मिलेगा। पहल से चार तरह के फायदे होंगे। किसानों को फसल की अच्छी कीमत मिल जाएगी। पशुओं के दूध में 15 फीसद तक इजाफा होगा। औसतन महीने भर पहले मक्के की कटाई भी हो जाएगी। इससे किसान एक वर्ष में तीन के बदले चार फसल ले सकते हैं। रोजगार सृजन के अवसर बढ़ेंगे।

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हरा चारा की पहली यूनिट

बिहार में हरा चारा की यह पहली यूनिट है। तकनीकी सहयोग के लिए कृषि विश्वविद्यालय और नव गंगा फूड के बीच करार हुआ है। बेगूसराय जिले के शाम्हो में स्टार्टअप लगाने वाले एग्रीप्रेन्योर सौम्य श्री के अनुसार अब बाढ़ और सूखे के दौरान भी हरे चारे की किल्लत नहीं होगी। पशुओं की सेहत के साथ खेती और पशुपालन करने वाले दोनों तरह के किसानों का मुनाफा बढ़ेगा।

पंजाब से सस्ता होगा बिहार का हरा चारा

बिहार में हरा चारा अभी पंजाब से आ रहा है, जो दस रुपये प्रति किलो की दर से पशुपालकों को उपलब्ध होता है। बिहार का हरा चारा छह रुपये की दर से मिलेगा। गुणवत्ता में कोई फर्क नहीं रहेगा। बेगूसराय जिले में दो सौ हेक्टेयर में हरा चारा के लिए मक्के की खेती कराई जा रही है। उत्पाद तैयार करने के लिए नार्वे से करीब दो करोड़ रुपये की कांपैक्टर (एनसी-850) मशीन मंगाई गई है। इस तरह की मशीन पहले से देश में सिर्फ आंध्र प्रदेश, पंजाब और महाराष्ट्र में है।

पांच सौ टन रोज होगी चारे की प्रोसेसिंग

डेढ़ सौ और चार सौ किलो के पैक में मशीन से एक दिन में पांच सौ टन चारे की प्रोसेसिंग-पैकेजिंग की जा रही। छह करोड़ की लागत से बनी चारा फैक्ट्री में तीन दिनों से उत्पादन हो रहा है। सालाना दस हजार मीट्रिक टन की क्षमता है। अभी 25 लोग काम कर रहे हैं। दो महीने में सौ लोगों की जरूरत पड़ेगी। सप्लाई के लिए बिहार के साथ बंगाल, झारखंड एवं उड़ीसा में सेल्स चैन बनाया जा रहा है। इससे रोजगार सृजन की क्षमता में और वृद्धि होगी।

पानी कम, ज्यादा आमदनी

पूसा कृषि विश्वविद्यालय ने क्रॉप कैलेंडर बनाया है। किसानों को जीरो टीलेज और ड्रिप एरिगेशन से खेती के लिए प्रशिक्षित करेगा, ताकि पानी और लागत कम लगे। हरे चारे के लिए मुख्यत: मक्के की खेती को प्रोत्साहित करना है, जो औसतन चार महीने की फसल है। किंतु बाली के पकने से एक महीने पहले ही प्रोसेसिंग कर दी जाएगी। इससे खेत जल्दी खाली हो जाएंगे। तीन के बदले चार फसलें ली जा सकती है। यह फसल अवशेष प्रबंधन का भी तरीका होगा, क्योंकि बाल के साथ डंठल का भी इस्तेमाल होगा।


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