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Bihar Chunav Result 2020: विधानसभा चुनाव के बीच सियासत का बदलता रहा रंग, बदलते चले गये मुद्दे

Bihar Chunav Result 2020 लालू के जंगलराज बनाम रोजगार और आमजन की परेशानी पर खूब चले तीर अंतिम दौर में हिंदू कार्ड से लेकर उद्योग धंधों पर भी खूब हुई चर्चा कल आने वाले परिणाम बताएंगे किसके दावों पर जनता ने किया भरोसा।

By Shubh NpathakEdited By: Published: Mon, 09 Nov 2020 10:25 AM (IST)Updated: Mon, 09 Nov 2020 10:28 AM (IST)
हर तरह से मतदाताओं को अपने पक्ष में गोलबंद करने की रही कोशिश (प्रतीकात्‍मक तस्‍वीर)। जागरण

पटना [सुनील राज]।  बिहार में करीब डेढ़ महीने तक चली चुनावी प्रक्रिया थम चुकी है। मतदाताओं ने अपना फैसला सुना दिया है। 243 उम्मीदवारों की किस्मत अब ईवीएम में बंद है। विधानसभा चुनाव की सितंबर महीने में घोषणा के बाद तीन चरणों में हुए चुनाव के बाद मतगणना तक आते-आते डेढ़ महीने से अधिक बीत गए। लेकिन, यहां तक पहुंचने के पहले लोगों ने चुनावी राजनीति के कई रंग देखे। पुराना इतिहास कहता है कि बिहार के चुनाव जातियों की जकडऩ से शुरू होकर उसी पर खत्म होते हैं। पर इस बार फिजां कुछ बदली-बदली नजर आई। जिन विश्लेषकों और मतदाता से लेकर आम लोगों की अब तक यह धारणा रही कि बिहार में जाति ही वोट का आधार है उन्होंने बिहार में रोजगार, शिक्षा, स्वास्थ्य, महिला सुरक्षा, धारा 370, पाकिस्तान जैसे मुद्दों को उछलते देखा।

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एनडीए ने हर चरण में बदले मुद्दे, महागठबंधन डटा रहा एक लाइन पर

इस चुनाव ने लोगों को सियासत के कई रंग से रु-ब-रु कराया। प्रत्येक चरण के बीच में ही जहां मुद्दे बदलते रहे वहीं नेताओं, राजनीतिक दलों ने विरोधियों पर हमले के हथियार भी बदले। महत्वपूर्ण यह है कि बेरोजगारी और स्थायी नौकरियों का मामला शुरू से आखिर तक छाया रहा। चुनाव का पहले दौर से बिहार की सत्ता में बैठी एनडीए ने विकास के मुद्दे पर अपनी लड़ाई शुरू की। इसी बीच सासाराम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी पहली सभा में ही एनडीए के विकास के बीच ही कानून व्यवस्था के मुद्दे को भी हवा दी और इस बहाने 15 साल बनाम 15 साल का मुद्दा भी देखने को मिला। दूसरी ओर महागठबंधन ने रोजगार के मुद्दे पर अपने विरोधियों को घेरने की जो रणनीति बनाई उसी पर वे चलते रहे। रोजगार के साथ ही महागठबंधन राज्य के विकास को भी अपना प्राथमिक एजेंडा बना विरोधियों पर हमलावर रहा।

दूसरे चरण में लालू के राज पर छिड़ी बात

दूसरा दौर आते-आते एनडीए ने 15 वर्षों के लालू के राज को अपना मुद्दा बनाया। एनडीए के नेताओं ने तमाम चुनावी सभाओं में 2005 के पहले की कानून व्यवस्था के मसले पर विरोधियों पर नकेल डालने की कोशिश की। तो महागठबंधन रोजगार के साथ ही नए कृषि कानून, कोरोना, बिहार में ठप पड़े उद्योग धंधों, बिहार में प्रत्येक वर्ष आने वाली बाढ़ जैसे मुद्दे पर टिका रहा। चुनाव का तीसरा दौर सबसे महत्वपूर्ण था। इस दौर में एनडीए की प्रमुख घटक भाजपा ने मुस्लिम बहुत सीमांचल में अपना हिंदुत्व कार्ड खेला और हिंदूवाद का प्रतीक चेहरा योगी आदित्यनाथ के जरिए विरोधियों पर जमकर हमले कराए। इस दौर में सीमांचल में एनआरसी और सीएए का मसला ऐस उठा कि एनडीए के विकास का मुद्दा इसमें कहीं दब गया।

एनआरसी और सीएए के मसले पर भी हुई रार

एनआरसी और सीएए का मसला आते ही नीतीश कुमार भी आक्रामक हुए और उन्हें जनता को विश्वास दिलाना पड़ा कि उनके रहते कोई किसी को बाहर नहीं निकाल सकता। दूसरी ओर महागठबंधन ने स्थायी रोजगार, उद्योग धंधों के विकास, के साथ ही कोरोना काल में श्रमिकों को हुई परेशानी जैसे मुद्दों पर लड़ाई जारी रखी। बहरहाल तीन दौर के चुनाव की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है। एक्जिट पोल के रुझान भी आ चुके हैं। बस महज 48 घंटों के इंतजार के बाद यह तय हो जाएगा कि जनता ने जाति के बीच किन मुद्दों पर अपना समर्थन दिया और किसे खारिज किया।


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