Bihar Chunav 2020: तीसरे चरण के मतदान पर टिकी सबकी नजरें, इसी से निकलेगी सत्ता की चाबी
Bihar Chunav 2020 दो चरणों में 165 सीटों पर मतदान हो गए हैं। सभी दल जीत का दावा कर रहे हैं। दलों ने अंतिम लड़ाई के लिए अपनी ताकत झोंक दी है। नीतीश कुमार ने तो आखिरी सभा आखिरी चुनाव तो कहा डाला। जानिए क्यों है तीसरा चरण इतना महत्वपूर्ण
पटना, अरुण अशेष। Bihar Chunav 2020: सत्ता की दौड़ में शामिल बड़े नेताओं के बोल बताते हैं कि दो चरणों के चुनाव के बाद तीसरे चरण में उन्हें बस बोनस का इंतजार है। मगर उनकी बॉडी लैंग्वेज पर गौर करें तो यही समझ में आएगा कि तीसरा चरण अगर हाथ से फिसल गया तो सत्ता फिसल गई। 78 सीटों पर सात नवंबर, शनिवार को हो रहे मतदान से ही सत्ता की चाबी निकलने जा रही है। यही वजह है कि इस चरण के लिए सभी दलों ने अपनी ताकत झोंक दी। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने अंतिम सभा, अंतिम चुनाव तक कह दिया।
क्यों है यह चरण महत्वपूर्ण
दो चरणों में अबतक 165 सीटों पर मतदान हो गए हैं। कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए राजनीतिक दल दावा कर रहे हैं कि वे सत्ता के करीब पहुंच गए हैं। तीसरे चरण की कुछ सीटें मिल जाए तो सरकार बन गई। ऐसा दावा एनडीए और महागठबंधन की ओर से हो रहा है। जबकि पहले चरण के मतदान की प्रवृति ने दोनों गठबंधन को सतर्क कर दिया। दूसरे चरण में दोनों गठबंधनों ने जोर लगाया। तीसरे चरण में सबकुछ न्यौछावर कर दिया। चरणवार चुनाव की यही रणनीति भी होती है। एक चरण की कमी की भरपाई अगले चरण में की जाती है।
एक तिहाई भागीदारी
उत्तर और पूर्वोत्तर बिहार की इन 78 सीटों के परिणाम पर 2015 में महागठबंधन की सरकार बनी थी। महागठबंधन में तीन दल थे। जदयू, राजद और कांग्रेस। इन तीनों को 54 सीटें (जदयू:23, राजद: 20 और कांग्रेस 11) मिली थीं। डेढ़ साल बाद जब सत्ता का समीकरण बदला तो उस सरकार में इन क्षेत्रों के 44 विधायकों(जदयू: 23, भाजपा: 20 और रालोसपा: 01) की भागीदारी हुई। 243 सदस्यीय विधानसभा में सरकार बनाने के लिए 122 विधायकों का समर्थन चाहिए। इस लिहाज से निवर्तमान सरकार तीसरे चरण वाले क्षेत्रों की एक तिहाई भागीदारी थी।
पिछले परिणाम को दोहराने की चुनौती
दोनों गठबंधनों के सामने तीसरे चरण में 2015 के परिणाम को न सिर्फ दोहराने की चुनौती है, बल्कि उनके सामने उससे अधिक हासिल करने का लक्ष्य भी है। पिछले परिणाम के आधार पर एनडीए को कम से कम 44 तो महागठबंधन के सामने 32 से अधिक सीटें सीटें हासिल करने का लक्ष्य है। दो सीटें निर्दलीय उम्मीदवारों के खाते में गई थीं। ये इस चुनाव में भी सक्रिय हैं।
दावेदार बढ़ गए
2015 के चुनाव की तुलना में इसबार तीसरे चरण में दावेदार दलों की संख्या बढ़ी है। रालोसपा एनडीए के सहयोगी के तौर पर पिछले चुनाव में शामिल हुई थी। अब वह एआइएमआइएम, बसपा और कुछ अन्य दलों के साथ गठबंधन में शामिल है। पप्पू यादव की जन अधिकार पार्टी पिछली बार तरह इस बार भी चुनाव मैदान में है। लोजपा अकेले चुनाव लड़ रही है। पिछली बार वह एनडीए के साथ थी। बढ़े दावेदारों को लेकर सत्ता की की दौड़ में शामिल दोनों बड़े गठबंधनों में बेचैनी है। क्योंकि इनकी सक्रिय भूमिका किसी को सत्ता से करीब ला सकती है या दूर कर सकती है।