हंगामे और शोरशराबे में ही बीत गया बिहार विधानसभा का मानसून सत्र
15वीं बिहार विधानसभा का सतरहवां सत्र शुक्रवार को समाप्त हो गया। इस बार विधानमंडल के मानसून सत्र के 'समानांतर विधानसभा' सदन से बाहर मैदान में भी चल रही थी। नारेबाजी, हंगामा, शोरशराबा और धरना से जनता रूबरू हुई। इसमें हिस्सेदार विपक्ष था।
पटना [दीनानाथ साहनी]। 15वीं बिहार विधानसभा का सतरहवां सत्र शुक्रवार को समाप्त हो गया। इस बार विधानमंडल के मानसून सत्र के 'समानांतर विधानसभा' सदन से बाहर मैदान में भी चल रही थी। नारेबाजी, हंगामा, शोरशराबा और धरना से जनता रूबरू हुई। इसमें हिस्सेदार विपक्ष था।
बागी विधायक नीरज कुमार बबलू का निलंबन और फिर फौरी वापसी भी ड्रामे से कम नहीं था। हालांकि केन्द्र के खिलाफ जदयू विधायकों का नुक्कड़ नाटक भी अनूठा रहा। ढेर सारे कटाक्ष और उस पर जोरदार ठहाके।
ये दृश्य वर्ष 2008 में स्थापित 'राज्य विधायी अध्ययन एवं प्रशिक्षण ब्यूरो' के औचित्य पर भी सवाल खड़ा करता है। सरकार ने विधायकों को प्रशिक्षित करने, जनप्रतिनिधिओं को वास्तविक भूमिका में लाने, उन्हें संसदीय परंपरा-मर्यादा के अनुकूल ढालने जैसे उद्देश्य से इसका गठन किया है।
फिर क्यों माननीयों का आचरण... विधानमंडल के कार्यकलाप को सार्थक मुकाम देने के रास्ते पर बाधक बना हैं? ऐसे कई सवाल हैं...। सदन के हंगामे से इसके अस्तित्व, औचित्य को जोड़ा जाना चाहिए। इन्हीं संसदीय विसंगतियों को दूर करने के लिए ब्यूरो बना है। व्यवस्था एवं परिणाम, अलग-अलग स्थिति है।
मजे की बात है कि ब्यूरो के गठन के समय दावा किया गया था कि इसका काम 'यूनिवर्सिटी' जैसा होगा। ब्यूरो के दस्तावेज में दर्ज है-'विधायकों एवं पदाधिकारियों को संसदीय मुद्दों के विभिन्न विषयों पर बेहतर समझ, संसदीय संस्थाओं के प्रति दायित्व तथा प्रक्रिया एवं कार्य संचालन के क्रम में होने वाली समस्याओं के निराकरण के लिए सार्थक अध्ययन व तदनुसार चरणबद्ध प्रशिक्षण हेतु संस्थागत अवसर उपलब्ध कराये जाने की आवश्यकता एक लंबे समय से महसूस की जा रही थी।
ब्यूरो नए विधायकों के लिए ओरिएंटेशन प्रोग्राम, सेमिनार, कार्यशाला, कंप्यूटर जागरूकता कार्यक्रम, विधायी प्रारुपण के लिए प्रशिक्षण, विधानमंडल पदाधिकारियों तथा कर्मचारियों के लिए पाठ्यक्रम तथा अध्ययन यात्राएं आयोजित करेगा।
विधायक विधायिका की कार्यविधि से परिचित तो होंगे ही, संसदीय परंपराओं, संचालन विधियों एवं सम्यक शिष्टïचार के प्रति भी जागरूकता बढ़ेगी। फलस्वरूप वे सार्थक एवं सूचनापरक बहस कर सकेंगे। व्याख्यान हेतु सांसदों, अनुभव प्राप्त वर्तमान एवं पूर्व माननीय सदस्यों, संसद अधिकारियों तथा अन्य विशेषज्ञों को आमंत्रित किया जायेगा, जिससे अभूतपूर्व ज्ञानवर्धन की आशा की जा सकती है। लेकिन इस हिसाब से 'क्लास' लापता है।
विधायक भाई दिनेश कहते हैं-'मुझे तो याद नहीं कि कभी ब्यूरो का क्लास किया हूं।' हालांकि नये विधायकों के लिए प्रशिक्षण के कई कार्यक्रम हुए हैं।
ब्यूरो का सबसे बड़ा संकट है कि दलीय लाइन पर विरोध के चक्कर में उसकी सारी नसीहतें भुला दी जाती हैं। विरोध की राजनीति के माहौल में एक बेहतरीन व्यवस्था बेअसर हो रही है।