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Bihar Assembly Elections 2020: इस बार डेढ़ से दो गुना तक महंगा हो सकता है विधानसभा चुनाव

बिहार में सत्ता का पायदान इस बार महंगा हो जाएगा। कोरोना के कारण कुछ अतिरिक्त व्यवस्था चुनाव के लिए निर्वाचन आयोग को करनी पड़ सकती है।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sun, 19 Jul 2020 07:34 PM (IST)Updated: Mon, 20 Jul 2020 03:33 PM (IST)
Bihar Assembly Elections 2020: इस बार डेढ़ से दो गुना तक महंगा हो सकता है विधानसभा चुनाव

अरविंद शर्मा, पटना। कोरोना संक्रमण के चलते इस बार का चुनाव और महंगा हो जाएगा। निर्वाचन आयोग, पाॢटयों और प्रत्याशियों की सिर्फ परेशानियां ही नहीं बढ़ेंगी, बल्कि पैसे भी ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे। बूथ बढ़ेंगे तो कर्मचारियों और विभिन्न दलों के एजेंटों की संख्या भी बढ़ेगी। उसी हिसाब से ईवीएम के लाने-ले जाने पर व्यय भी बढ़ाना होगा। माना जा रहा है कि पिछली बार की तुलना में इस बार का चुनाव डेढ़ से दो गुना तक महंगा हो सकता है। 

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बिहार में हैं सात करोड़ 18 लाख मतदाता

निर्वाचन आयोग अभी खर्च का हिसाब लगाने में जुटा है और पार्टियां अर्थ प्रबंधन में। बिहार में सात करोड़ 18 लाख मतदाता हैं। बूथों की संख्या 72 हजार आठ सौ है, जिसे बढ़ाकर एक लाख छह हजार किया जा रहा है। जाहिर है, 33 हजार अतिरिक्त बूथ बनाए जा रहे हैं। उसी अनुपात से चुनाव कर्मचारी, ईवीएम एवं सुरक्षा की व्यवस्था भी बढ़ानी पड़ेगी। डेढ़ लाख कर्मचारियों की अतिरिक्त ड्यूटी लगेगी, जिनके भत्ते आदि पर खर्च बढ़ेंगे। वोटरों एवं चुनाव कर्मियों को संक्रमण से बचाने के लिए शारीरिक दूरी (फिजिकल डिस्टेंसिंग) की भी व्यवस्था करनी होगी। राजनीतिक दलों एवं प्रत्याशियों को भी उसी हिसाब से तैयारी करनी पड़ेगी।

हेलीकॉप्टर मद में ही खर्च हो जाते हैं करोड़ों

बिहार विधानसभा के पिछले चुनाव के आंकड़े बताते हैं कि भाजपा ने केवल हेलीकॉप्टर मद में 38 करोड़ रुपये खर्च किए थे। कांग्रेस ने भी छह करोड़ रुपये हेलीकॉप्टर पर खर्च किए थे। पिछली बार की तरह बड़ी-बड़ी रैलियों की तैयारी नहीं है, किंतु वर्चुअल सभाओं पर आने वाला खर्च कम नहीं होगा। राजनीतिक दलों की कोशिश होगी कि उनके सारे कार्यकर्ताओं के पास स्मार्ट फोन जरूर हो, ताकि मतदाताओं तक नेतृत्व का संदेश पहुंच सके। बिहार में अभी 34 फीसद के पास ही स्मार्ट फोन है। खर्च यहां भी बढऩा तय है।

दोगुना बढ़ सकता है खर्च

निर्वाचन आयोग की तैयारियों में भी कम खर्च नहीं है। आजादी के बाद जब देश में पहली बार चुनाव कराया गया था तो प्रति मतदाता महज 60 पैसे ही खर्च का ब्योरा मिलता है, जो 2015 तक आते-आते 25 से 30 रुपये तक हो गया। कोरोना की दुश्वारियों के चलते इस बार यह बढ़कर 50 से 60 रुपये तक जा सकता है। चुनावी खर्च में इस गति से इजाफा इसके पहले 1970-80 के बीच ही हुआ था। आयोग के पास उपलब्ध आंकड़ों के मुताबिक 1971 के लोकसभा चुनाव में प्रति मतदाता 40 पैसे खर्च हुए थे, जो 1977 में करीब चार गुना बढ़कर डेढ़ रुपया हो गया था। खर्च का ग्राफ लगातार बढ़ता ही गया। 

28 लाख है खर्च की सीमा

विधानसभा के लिए प्रत्येक प्रत्याशी के अधिकतम खर्च की सीमा 28 लाख रुपये है, किंतु हकीकत में इससे बहुत ज्यादा राशि खर्च होती है। लोकसभा चुनाव में राजद समेत 18 क्षेत्रीय दलों ने खर्च का ब्योरा नहीं दिया है। हालांकि जदयू, लोजपा और रालोसपा ने ब्योरा दे दिया है। जदयू ने 10.71 करोड़, लोजपा ने 1.17 करोड़, रालोसपा ने 50 लाख रुपये खर्च बताया है। खर्च का ज्यादातर हिस्सा प्रचार में दिखाया गया है। 2015 के विधानसभा चुनाव में जदयू ने 8.22 करोड़ रुपये खर्च किए थे, जिनमें सबसे ज्यादा खर्च (4.71 करोड़ रुपये) हेलीकॉप्टर पर हुआ था। लोजपा ने हेलीकाप्टर पर 1.06 करोड़ रुपये खर्च दिखाया था। राजद ने 1.90 करोड़ रुपये खर्च किया, जिसमें से 1.58 करोड़ रुपये विज्ञापन पर खर्च हुआ। 

लोकतंत्र की हिफाजत के लिए ठीक नहीं बढ़ता खर्च

एडीआर के बिहार प्रमुख राजीव कुमार ने कहा कि  चुनाव पर बढ़ते खर्च को लोकतंत्र की हिफाजत के लिए अच्छा नहीं माना जा सकता है। राजनीतिक दल अगर अपनी विचारधारा के प्रचार, कार्यकर्ताओं के प्रशिक्षण और कार्यक्रमों में खर्च बढ़ाते तो तर्कसंगत भी माना जा सकता था, किंतु सच्चाई है कि अधिकांश राशि मतदाताओं को प्रभावित करने में खर्च होती है। उनका मकसद होता है पानी की तरह पैसे बहाकर किसी तरह चुनाव जीतना। अर्थ प्रबंधन भी उनका अज्ञात होता है। 


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