Bihar Assembly Election: बिहार में सियासत का चुनावी रंग हुआ गहरा, वफादारी पर भारी जीत की तैयारी
बिहार की सियासत का चुनावी रंग और गहरा हो गया है। दशकों पुरानी वफादारी को भी हाशिये पर धकेलकर जीत के लिए हर जुगाड़ आजमाया जा रहा है।
अरविंद शर्मा, पटना। सितंबर की शुरुआत होने को कुछ ही घंटे बचे हैं। इस बीच बिहार की सियासत का चुनावी रंग और गहरा हो गया है। विभिन्न दलों में आदर्श आचार की वर्जनाएं टूटने लगी हैं। दशकों पुरानी वफादारी को भी हाशिये पर धकेलकर जीत के लिए हर जुगाड़ आजमाया जा रहा है। दूसरे दलों से आने वालों के लिए जदयू ने पहले ही अपना दरवाजा खोल रखा है। अब लालू प्रसाद की पार्टी राजद ने भी अपनी चाल बदल ली है। बांका के पूर्व सांसद एवं लालू प्रसाद के करीबियों में शामिल रहे जयप्रकाश नारायण यादव की परवाह किए बिना पूर्व सांसद पुतुल सिंह को लाने की तैयारी कर ली गई है।
अपनों के बीच ही आंतरिक महाभारत तय!
पुतुल पूर्व केंद्रीय मंत्री दिग्विजय सिंह की पत्नी हैं। दोनों पति-पत्नी मिलकर इस क्षेत्र का चार बार प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। भाजपा से नाता तोड़ने के बाद अभी वह किसी भी दल में सक्रिय नहीं हैं। माना जा रहा है कि चार सितंबर को पुतुल अपने समर्थकों से अनुमति मांगकर कभी भी राजद की ओर प्रस्थान कर सकती हैं। ऐसा हुआ तो पूर्व केंद्रीय मंत्री रघुवंश प्रसाद सिंह और रामा सिंह प्रकरण के बाद राजद के एक और अनुकूल इलाके में अपनों के बीच ही आंतरिक महाभारत तय है।
तेजस्वी के कैनवास में फिलहाल जयप्रकाश सटीक नहीं
पुतुल सिंह के आने की खबर ने पूर्व सांसद जयप्रकाश को बेचैन कर रखा है। 2019 के लोकसभा चुनाव में जदयू के गिरिधारी यादव से करारी शिकस्त के बाद जयप्रकाश नारायण की लालू परिवार से दूरी बढ़ गई है। साथ ही क्षेत्र में नए सामाजिक समीकरण का भी उदय हुआ, जिसे तोड़ने के लिए राजद को किसी गैर यादव नेता की दरकार है। तेजस्वी के कैनवास में फिलहाल जयप्रकाश सटीक नहीं बैठ रहे हैं।
तेजस्वी की छवि का नया संस्करण
लोकसभा चुनाव में राजद की रणनीति के फ्लॉप हो जाने के बाद तेजस्वी मुस्लिम-यादव (माय) समीकरण से इतर एक नया फार्मूला गढऩे की कोशिश में जुटे हैं। नई रणनीति को नेता प्रतिपक्ष की छवि सुधारने की कोशिशों का अगला संस्करण माना जा रहा है। राजद के रणनीतिकारों का मानना है कि परंपरागत मतों के लिए पार्टी नेतृत्व को अतिरिक्त मेहनत की जरूरत नहीं होगी इसलिए दूसरे समुदाय के लोगों को तरजीह देना जरूरी है। पुतुल के राजद में आने से बांका, मुंगेर और जमुई के आसपास के एक बड़े इलाके में राजद के पक्ष में नए समीकरण को संबल मिल सकता है। पुतुल की पुत्री श्रेयसी सिंह की खेल में अंतरराष्ट्रीय पहचान है। इससे भी राजद को बढ़त मिलेगी। साथ ही इसका साइड इफेक्ट भी ज्यादा नहीं होगा। पुतुल से सिर्फ जयप्रकाश को परेशानी हो सकती है, किंतु राजद के वोट बैंक पर कोई खास असर नहीं पड़ेगा इसलिए नई कवायद से राजद की छवि में चमक आ सकती है।
पुतुल बनाम नरेंद्र
राजद में नरेंद्र सिंह को भी लाने की तैयारी है, जो अपने दोनों पुत्रों के साथ बेकरार बैठे हैं। लेकिन पुतुल सिंह की तरह नरेंद्र के इंतजार में राजद बेताब नहीं है। उस इलाके में कभी नरेंद्र का भी जलवा था, जिसे पार्टी और पाला बदल-बदलकर नरेंद्र ने निस्तेज कर दिया है। राजद में अभी समीक्षा का दौर चल रहा कि तेजस्वी के साथ वाचाल नरेंद्र का तालमेल किस हद तक संतुलित हो पाएगा। वे नए नेतृत्व पर हावी होने की कोशिश तो नहीं करेंगे? राजद में नरेंद्र के प्रवेश की सबसे बड़ी बाधा उस क्षेत्र में उनकी राजनीतिक छवि को ही माना जा रहा है। नरेंद्र की पूरी राजनीति लालू के वोट बैंक के विरुद्ध ही आगे बढ़ी है। चकाई के पूर्व विधायक फाल्गुनी यादव से नरेंद्र की लंबी प्रतिद्वंद्विता चली थी। फाल्गुनी के निधन के बाद अब उनकी पत्नी सावित्री देवी और नरेंद्र सिंह के पुत्र सुमित सिंह ने सिलसिला जारी रखा है। लगभग दो दशक से जयप्रकाश के साथ भी नरेंद्र की राजनीतिक अदावत रही है।