Bihar Election: आयोग की तैयारियाें से पीछे चल रहीं पार्टियां, सीट शेयरिंग व टिकट को ले असमंजस बरकरार
Bihar Assembly Election 2020 बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर राजनीतिक दलों को अभी सीट शेयरिंग व उम्मीवाराें के बड़े मसले सुलझाने हैं। एनडीए व महागठबंधन दोनों में यह समस्या गंभीर बनी हुई है। हर तरफ असमंजस बरकरार है।
पटना, अरुण अशेष। Bihar Assembly Election 2020: सबकुछ ठीक रहा तो नवंबर के आखिरी सप्ताह में राज्य में नई सरकार गठित हो जाएगी। कोरोना (CoronaVirus) के चलते अबतक अधिसूचना (Election Notification) जारी नहीं हुई है। फिर भी चुनाव आयोग (Election Commission) सक्रिय रहकर यह संदेश दे रहा है कि मतदान (Voting) समय पर ही होंगे। इधर मैदान में जाने की राजनीतिक दलों (Political Parties) की तैयारी बंद कमरों से बाहर झांकती नहीं दिख रही है। दोनों बड़े गठबंधन (Alliance) के दलों के बीच सीटों का बंटवारा (Seat Sharing) नहीं हुआ है। उम्मीदवार असमंजस में हैं। यहां तक कि मौजूदा विधायकों में से अधिसंख्य को नहीं पता है कि उन्हें टिकट (Ticket) मिलेगा भी या नहीं।
एनडीए में अभी तक नहीं सुलझा सीटों का मसला
सत्ता में आने को आतुर दलों की बात छोड़ दें, सत्तारूढ़ एनडीए (NDA) के बीच अभी यह तय होना बाकी है कि कौन दल कितनी सीटों पर चुनाव लड़ेंगे। जनता के बीच वर्चुअल माध्यम से प्रचार पहुंच रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi), उनके कैबिनेट के कई सहयोगी और मुख्यमंत्री नीतीश कुमार (CM Nitish Kumar) की पूरी कैबिनेट चुनाव प्रचार में उतरी हुई है। पूरी हो चुकी योजनाओं का उद्घाटन और कई नई योजनाओं का शिलान्यास हो रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार जब मंगलवार को सरकारी कार्यक्रमों का उद्घाटन-शिलान्यास कर रहे थे, ऐलान कर दिया कि यह उनके मौजूदा कार्यकाल का आखिरी सरकारी कार्यक्रम हो सकता है। कार्यक्रम खत्म होने के बाद वे जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष की हैसियत से पार्टी कार्यालय में आ गए। कार्यकर्ताओं से मुलाकात की।
समय पर होगा सीटों का बंटवारा, उम्मीदवार तय
मुलाकात का यह सिलसिला चलता रहेगा। लेकिन, लाख टके के इस सवाल का फिलहाल जवाब नहीं मिल रहा है कि गठबंधन के दलों के बीच सीटों के बंटवारा का क्या हुआ? एनडीए के बड़े नेताओं से पूछिए तो बताएंगे कि सबकुछ ठीक है। समय पर सीटों का बंटवारा होगा। उम्मीदवारों के नाम तय हैं। लेकिन, अंदरूनी बात यह है कि यहां अभी बड़े और छोटे भाइयों के बीच यह मसला नहीं सलट पाया है कि आखिर बड़ा कौन है?
सम्माजनक विवाद सलटना भी बाकी
2015 के विधानसभा चुनाव में अलग समीकरण से जीती गई सीटों का सम्माजनक विवाद सलटना भी बाकी है। इनकी तादाद 49 हैं। ये ऐसी सीटें हैं, जिन पर 2010 तक भाजपा या जदयू की जीत होती थी। लेकिन, 2015 के चुनाव में विधानसभा में इन सीटों का प्रतिनिधित्व बदल गया। यह मामूली बात नहीं है। इस पर अगर कोई निर्मम फैसला होता है तो इसके दुष्परिणाम भी सामने आएंगे। एनडीए के लिए लोजपा एक अलग विषय बन गया है।
बड़ा सवाल: क्या करने जा रही लोजपा
पहले कहा जा रहा था कि एनडीए लोजपा अध्यक्ष चिराग पासवान के साथ वही प्रयोग कर रहा है, जो लोकसभा चुनाव के समय रालोसपा अध्यक्ष उपेंद्र कुशवाहा के साथ किया गया था। उपेंद्र कुशवाहा बहादुरी के साथ नीतीश कुमार के खिलाफ मोर्चा खोल कर बैठे थे। भाजपा चुप थी। अंत में उपेंद्र कुशवाहा अलग होने के लिए मजबूर कर दिए गए। अब कहा जा रहा है कि चिराग और उपेंद्र में बहुत फर्क है। बहरहाल, यह सवाल अपनी जगह है कि चिराग अकेले लड़ेंगे, एनडीए के साथ लड़ेंगे, वे जैसे भी लड़ें, पूरा प्रकरण एनडीए के लिए घाटे का सौदा ही साबित होने जा रहा है।
विपक्षी महागठबंधन की भी है वही गति
महागठबंधन का हाल भी कुछ अच्छा नहीं है। भाकपा के राज्य सचिव रामनरेश पांडेय ऐसे इकलौते नेता हैं, जो कहते हैं कि हमारा लक्ष्य सभी 243 सीटों पर जीत का है। हम हर हाल में गठबंधन चाहते हैं। महागठबंधन के अन्य दलों की स्थिति बहुत साफ नहीं है। कांग्रेस 90-95 सीटों पर तैयारी कर रही है। रालोसपा, विकासशील इंसान पार्टी और भाकपा माले को भी अधिक सीटें चाहिए। इन दलों के बड़े नेताओं ने कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा दिया है। इनके कार्यकर्ता अपने-अपने क्षेत्र में चुनाव की तैयारी कर रहे हैं। कम सीटों पर समझौते की हालत में चुनाव की तैयारी करने वाले कई कार्यकर्ता बागी रूख भी अख्तियार कर सकते हैं। यह अंतत: महागठबंधन की चुनाव की संभावनाओं को ही प्रभावित करेगा।