Bihar Assembly Election: बिहार की राजनीति से जुड़ा दिलचस्प मामला, यहां हर दूसरा मतदाता किसी दल का सदस्य
Bihar Assembly Election बिहार में जितने वोटर हैं उसे देखें तो राजनीतिक दलों के सदस्यों की संख्या आश्चर्यजनक दिखती है। यहां का हर दूसरा मतदाता किसी न किसी दल से जुड़ा है।
पटना, रमण शुक्ला। सियासत बेशक सिद्धांतों पर हो, लेकिन चुनावों में जीत वोटों की बदौलत ही मिलती है। इसी उम्मीद में पार्टियां अपना सदस्यता अभियान चलाती हैं। फिलहाल बिहार में विधानसभा चुनाव की तैयारी चल रही है। इस बीच निर्वाचन आयोग को 10 राजनीतिक दलों ने जो ब्योरा दिया है, उसके मुताबिक उनके सदस्यों की संख्या चार करोड़ है। राज्य में कुल मतदाताओं की संख्या सात करोड़ से कुछ अधिक है। ऐसे में स्पष्ट है कि हर दूसरा मतदाता किसी न किसी दल के साथ प्रतिबद्ध है।
प्रमुख राजनीतिक दलों के सदस्य चार करोड़
बिहार में सात करोड़ मतदाता हैं, जबकि 10 प्रमुख दलों के दावे के आधार पर उनके कुल सदस्यों की संख्या चार करोड़ से कुछ अधिक है। राष्ट्रीय जनता दल (RJD) का दावा एक करोड़ पांच लाख सदस्यों का है। दूसरे नंबर पर भारतीय जनता पार्टी (BJP) है, जो 90 लाख सदस्यों की पार्टी होने का दावा करती है। इसी तरह जनता दल यूनाइटेड (JDU) 50 लाख, लोक जनशक्ति पार्टी (LJP) 35 लाख और कांग्रेस (Congress) 16 लाख सदस्यों का दावा कर रही है।
सभी राजनीतिक दलों के हैं अपने-अपने दावे
इस कड़ी में राष्ट्रीय लोक समता पार्टी (RLSP) और हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा (HAM) के साथ वामपंथी दलों (Left Parties) के दावे भी हैं। फिलहाल आरएलएसपी प्रदेश में अपने 40 लाख सदस्यों का दावा करती है। पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी (Jitan Ram Manjhi) की पार्टी 'हम' अपने सदस्यों की संख्या 10 लाख बता रही है। वाम दलों में सदस्यता की प्रक्रिया अपेक्षाकृत कठिन है। उनके बीच अभी सर्वाधिक सदस्य भाकपा (माले) के हैं। इस पैमाने पर भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (CPI) दूसरे और मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (CPM) तीसरे नंबर पर हैं।
बीजेपी का दावा: वह दुनिया की सबसे बड़ी पार्टी
बीजेपी के प्रदेश मुख्यालय प्रभारी सुरेश रूंगटा का तर्क है उनकी पार्टी यूं ही दुनिया का सबसे बड़ा राजनीतिक दल नहीं है, बल्कि उसके पीछे जमीनी स्तर का काम है। प्रदेश कार्यालय से लेकर राष्ट्रीय कार्यालय में एक-एक सदस्य की बाबत विस्तृत जानकारी दर्ज है। उनके नाम-पता के साथ सेलफोन नंबर तक के रिकार्ड रखे जाते हैं। कमोवेश सभी दलों के ऐसे ही दावे हैं।
कोरोना ने सदस्यता अभियान में लगाया अड़ंगा
गजब यह कि इतने सदस्यों के बावजूद अभी पार्टियों को संगठन विस्तार से संतोष नहीं। विधानसभा चुनाव के मद्देनजर जनाधार विस्तार की उनकी कोशिशों को कोरोना से झटका लगा है। उनके नेताओं का कहना है कि लॉकडाउन के कारण बीच में सदस्यता अभियान को रोक दिया गया है। अगर ऐसा नहीं होता तो सदस्यों की संख्या कुछ और ज्यादा होती।
उलझा हुआ है मतों से सदस्यों की संख्या का गणित
सदस्यों की संख्या पर इतरा रही कुछ पार्टियों को तो विधानसभा के पिछले चुनाव में जितने वोट मिले उससे कहीं अधिक उनके सदस्य हैं। तो क्या इसे मान लिया जाए कि सदस्यता के आंकड़े फर्जी हैं, या फिर जरूरी नहीं कि सदस्य अपनी पार्टी के लिए वोट ही करें। इस समीकरण पर गौर करें तो जेडीयू और बीजेपी की स्थिति ही संतोषप्रद और सम्मानजनक प्रतीत हो रही है। मुख्य विपक्षी दल आरजेडी को भी मिले वोटों से उसके कुल सदस्यों की संख्या कहीं ज्यादा है। मांझी की तो बात ही निराली है।
पार्टी के सदस्य और वोट का गणित
(2020 में सदस्यों की संख्या : 2015 में प्राप्त वोट)
बीजेपी: 90 लाख : 93 लाख
जेडीयू: 50 लाख : 64 लाख
आरजेडी: 1.5 करोड़ : 70 लाख
कांग्रेस: 16 लाख : 25 लाख
एलजेपी: 35 लाख : 18 लाख
सीपीआइ: 80 हजार : 05 लाख
सीपीएम: 22 हजार : 02 लाख
सीपीआइ (माले) : 90 हजार : 02 लाख
हिंदुस्तानी अवाम मोर्चा : 10 लाख : 08 लाख
(नोट : संख्या राउंड फिगर में)