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बिहार चुनाव 2020ः खामोशी से तीन नवंबर का इंतजार कर रहे पटना के मतदाता, आसान नहीं मन-मिजाज टटोलना

पटना के मतदाता तीन नवंबर का इंतजार कर रहे हैं। दूसरे चरण में होने वाले चुनाव में सभी नौ विधानसभा क्षेत्रों में दोनों ही मुख्य गठबंधनों के बीच आर-पार की लड़ाई है। एनडीए व महागठबंधन के 18 प्रत्याशियों के अलावा 158 प्रत्याशी भी मैदान में ताल ठोक रहे हैं।

By Akshay PandeyEdited By: Published: Sun, 01 Nov 2020 07:45 PM (IST)Updated: Sun, 01 Nov 2020 07:45 PM (IST)
बिहार चुनाव 2020ः खामोशी से तीन नवंबर का इंतजार कर रहे पटना के मतदाता, आसान नहीं मन-मिजाज टटोलना
पटना में वोट देने जाते मतदाता। जागरण आर्काइव।

श्रवण कुमार, पटना। विधानसभा के चुनावी समर में योद्धाओं की हुंकार और वार-पलटवार के बीच पटना के मतदाता खामोशी से तीन नवंबर का इंतजार कर रहे हैं। दूसरे चरण में होने वाले चुनाव में सभी नौ विधानसभा क्षेत्रों में दोनों ही मुख्य गठबंधनों के बीच आर-पार की लड़ाई है। एनडीए और महागठबंधन के 18 प्रत्याशियों के अलावा 158 अन्य प्रत्याशी भी मैदान में ताल ठोक रहे हैं। इन 158 प्रत्याशियों में कई वैसे भी हैं, जो गठबंधनों से बगावत कर समीकरण बदलने की आस में मैदान में हैं। ऐसे प्रत्याशियों के साथ ही एनडीए और महागठबंधन के लिए भी इन नौ विधानसभा क्षेत्रों का समीकरण बदलना कठिन चुनौती साबित हो रहा है। 

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सात विधानसभा क्षेत्रों का रिकॉर्ड तो ऐसा है, जहां के मतदाताओं का मिजाज दशकों से 'स्थिर' रहा है। बांकीपुर, कुम्हरार, पटना साहिब, दीघा, दानापुर के मतदाता लगातार एनडीए पर भरोसा कर रहे हैं, तो मनेर और फतुहा के वोटर महागठबंधन पर मेहरबान हैं। गठबंधनों में दलों की आवाजाही हुई हो या प्रत्याशियों का बदलाव, मतदाताओं ने अपने मिजाज नहीं बदले हैं। इस बार एनडीए और महागठबंधन एक-दूसरे के गढ़ में सेंध लगाने की पूरी जोर-आजमाइश कर रहे हैं, पर मतदाताओं के मन-मिजाज की गठरी को खोलना आसान नहीं लग रहा। बख्तियारपुर और फुलवारीशरीफ में मतदाताओं की खामोशी का अर्थ निकालने में गठबंधन के पसीने छूट रहे हैं। बख्तियारपुर का मिजाज बदलता रहा है। फुलवारीशरीफ में वोटरों ने 25 वर्षों से पार्टी के बजाय प्रत्याशी पर भरोसा किया है, पर इस बार वो प्रत्याशी ही बेटिकट हो गए हैं। 

तेजी से घूम रहा जन आंकाक्षाओं का पहिया 

नौ विधानसभा क्षेत्र की समस्याएं और आकांक्षाएं कमोवेश एक सी हैं। शहरी क्षेत्र जाम, जलजमाव और अतिक्रमण से परेशान हैं तो गांवों में खेतों के पटवन और नल-जल और शौचालय को लेकर शिकायत है। मतदाताओं के बीच 'घोर' निराशा जैसा माहौल नहीं है। प्रधानमंत्री आवास योजना वाले घरों के मतदाताओं से लेकर व्यापारिक घरानों के वोटर तक यह तो मानते हैं कि बिहार में विकास ने रफ्तार पकड़ी है। यह भी सच है कि जन आकांक्षाओं का पहिया विकास की रफ्तार से तेज घूम रहा है। जिन घरों में नल पहुंचा वहां दिन-रात पानी नहीं पहुंचने की समस्या है, तो जिस घर में शौचालय बने वहां दूसरे भाई-बेटों के लिए शौचालय नहीं बनने की शिकायत। गांव तक सड़कें बनीं तो गुणवत्ता को लेकर नाराजगी है। स्कूल भवन बने तो शिक्षकों की कमी और गैरहाजिरी अब भी बरकरार है। बिजली सुधरी पर सिंचाई के लिए पर्याप्त संख्या में नलकूप नहीं होने से किसान नाराज हैं। समस्याएं, शिकायतें और नाराजगी के बावजूद मतदाताओं की न तो 'उम्मीदें' अभी अस्त हुई हैं, न ही 'मिजाज' को बदलने की कोई ठोस वजह बता रहे। 

पांच विधानसभा क्षेत्र बना हुआ है एनडीए का गढ़  

पटना के नौ विधानसभा में से पांच तो एनडीए का गढ़ बन चुका है। लगातार जीत की नींव भाजपा के सुशील कुमार मोदी ने कांग्रेसी प्रत्याशी अकील हैदर को हराकर 1990 में ही रख दी थी। अगले चुनावी वर्ष 1995 में तो पटना पूर्वी से नंद किशोर यादव और पटना पश्चिमी से नवीन किशोर सिन्हा ने जीत हासिल कर पूरे शहरी क्षेत्र पर परचम फहरा दिया। नंद किशोर तब से लगातार अपने क्षेत्र (अब पटना साहिब) का प्रतिनिधित्व कर रहे हैं। नवीन किशोर सिन्हा के निधन के बाद 2006 से पटना पश्चिम (बांकीपुर) का प्रतिनिधित्व उनके पुत्र नितिन नवीन कर रहे हैं। 2005 से तो पटना मध्य (कुम्हरार) से अरुण कुमार सिन्हा और दानापुर से आशा देवी भी लगातार अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व कर रही हैं। 2010 से अस्तित्व में आए दीघा पर भी एनडीए का ही कब्जा बरकरार है। 2010 में जदयू की टिकट पर पूनम देवी ने यहां कब्जा जमाया। 2015 में भाजपा के संजीव चौरसिया पर मतदाताओं ने भरोसा किया। तब एनडीए से अलग हुए जदयू के राजीव रंजन प्रसाद खारिज कर दिए गए। 

फतुहा और मनेर पर रहा महागठबंधन का दबदबा

फतुहा एक दशक से राजद के खाते में जाता रहा है। पहले भी 2000 में यहां राजद का कब्जा था। 2010 और 2015 में राजद प्रत्याशी रामानंद यादव ने यहां से जीत हासिल की है। मनेर से भी 2005 से ही राजद जीतती आई है। 2005 में यहां से राजद की टिकट पर श्रीकांत निराला ने जीत हासिल की थी। 2010 से भाई वीरेंद्र राजद से जीतते आए हैं। श्रीकांत निराला ने राजद छोड़कर दो बार भाजपा से किस्मत आजमाई। मतदाताओं ने राजद पर ही भरोसा किया और निराला खारिज होते गए। इस बार वे निर्दलीय ताल ठोक रहे हैं। 


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