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सत्ता संग्राम: गोपालगंज से जुड़ी लालू से काली तक की पहचान, बॉलीवुड तक बजा डंका

गोपालगंज से लालू यादव से लेकर काली पांडेय तक की पहचान जुड़ी है। गोपालगंज में ही राजनीति में बाहुबल का बीज पड़ा। आगामी लोकसभा चुनाव को लेकर यहां के हालात पर नलर डालें इस खबर में।

By Amit AlokEdited By: Published: Wed, 11 Jul 2018 08:40 AM (IST)Updated: Wed, 11 Jul 2018 05:21 PM (IST)
सत्ता संग्राम: गोपालगंज से जुड़ी लालू से काली तक की पहचान, बॉलीवुड तक बजा डंका
सत्ता संग्राम: गोपालगंज से जुड़ी लालू से काली तक की पहचान, बॉलीवुड तक बजा डंका

पटना [अरविंद शर्मा]। भाजपा के सांसद जनक राम से पहले सत्ता और सियासत में गोपालगंज की पहचान काली प्रसाद पांडेय से जुड़ी थी। अब्दुल गफूर, लालू यादव और राबड़ी देवी जैसी शख्सियत भी इसी मिट्टी की उपज हैं। तीनों बिहार की सत्ता संभाल चुके हैं। लालू की हनक दिल्ली तक है, राबड़ी की पटना और काली पांडेय की बॉलीवुड तक है। काली ने 1984 में निर्दलीय चुनाव लड़कर लोकदल के नगीना राय को भारी मतों से हरा दिया था। नगीना की तुलना में काली को दुगुना से भी ज्यादा वोट मिले थे। काली की करामात ने सियासत में खलबली मचा दी थी। तब यह अनारक्षित सीट थी।

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बिहार में बाहुबल से संसदीय चुनाव जीतने की शुरुआत काली पांडेय ने ही की थी। काली के दबदबे का डंका बॉलीवुड तक बजने लगा था। यही कारण है कि सत्ता और सियासत से अपराधियों की गठजोड़ पर आधारित फिल्म प्रतिघात के खलनायक काली प्रसाद की भूमिका भी इन्हीं को आधार मानकर तैयार की गई थी।

हालांकि, काली का दबदबा ज्यादा दिनों तक बरकरार नहीं रहा। 1984 की जीत पहली और आखिरी साबित हुई। इसके बाद 1989, 1991, 1996 और 1999 में दल बदलकर चुनाव लड़ते-हारते रहे। काली पांडेय अभी लोजपा के साथ हैं।

गोपालगंज लालू का गृह जिला होने के साथ-साथ ससुराल भी है। लालू इसी जिले के फुलवरिया गांव के रहने वाले हैं, जबकि चंद किमी दूर सेलार कलां में उनकी ससुराल है। लालू और राबड़ी खुद यहां से तो कभी चुनाव नहीं लड़े, लेकिन उनके साले अनिरुद्ध प्रसाद उर्फ साधु यादव के जमाने में गोपालगंज की खूब चर्चा हुई। साधु 2004 में राजद के टिकट पर सांसद चुने गए थे।

आरक्षित होने के बाद राजद की कहानी यहां से खत्म हो गई। 2009 में जदयू के पूर्णमासी राम और 2014 में जनक राम सांसद चुने गए। 2009 में जदयू से हारने के बाद 2012 में राजद ने यह सीट कांग्रेस के लिए छोड़ दी। कांग्रेस ने डॉ. ज्योति भारती को प्रत्याशी बनाया, लेकिन बुरी तरह हार का सामना करना पड़ा।

भोरे के पूर्व विधायक चंद्रिका राम के पुत्र एवं राज्य के वरिष्ठ आइपीएस अधिकारी सुनिल कुमार के भाई अनिल कुमार पर भी जदयू और राजद ने दांव लगाया, लेकिन वह भी कामयाब नहीं हुए। 2009 में अनिल को राजद ने टिकट दिया था तो 2014 में जदयू ने भरोसा किया।

दावेदार हुए सक्रिय

अनिल अभी कांग्रेस से भोरे के विधायक हैं। चर्चा में इसलिए हैं कि फिर टिकट के दावेदार हैं। यह सीट कांग्रेस के हिस्से में आए या राजद के, अनिल की दावेदारी दोनों तरफ से है। भाजपा में जनक राम की चार साल की जमीन पर डॉ. आलोक कुमार सुमन अपनी फसल बोना चाह रहे हैं। सिविल सर्जन से सेवानिवृत्त आलोक को सुशील मोदी और मंगल पांडेय का करीबी माना जाता है। जनक की बसपा वाली पृष्ठभूमि को उछालकर आलोक फायदा उठाने की जुगत में हैं।

भाजपा से चुनाव हारने के बाद कांग्रेस की ज्योति भारती का अभी अता-पता नहीं है। 1977 में कांग्रेस विरोधी लहर का असर यहां भी देखी गई थी। जनता पार्टी के द्वारिका नाथ तिवारी ने कांग्रेस के अब्दुल गफूर को हरा दिया था। 1980 में यहां कांग्रेस की आखिरी पारी थी। यहां से सैयद महमूद, द्वारिका नाथ तिवारी, नगीना राय, काली पांडे, राजमंगल मिश्र, अब्दुल गफूर, लाल बाबू यादव, रघुनाथ झा और साधु यादव चुने जाते रहे हैं।

 2014 के महारथी और वोट

जनक राम : भाजपा : 478773

ज्योति भारती : कांग्रेस : 191837

अनिल कुमार : जदयू : 100419

चंद्रदीप राम : बसपा : 16751

विधानसभा क्षेत्र

बैकुंठपुर (भाजपा), गोपालगंज (भाजपा), कुचाइकोट (जदयू), हथुआ (जदयू), बरौली (राजद), भोरे (कांग्रेस)


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