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दरभंगा घराने की गायिकी संग शायरा बेगम की कजरी ने अदब-ए-मौसिकी को बनाया खास

दरभंगा घराने से जुड़ी गायिकी का कुछ ऐसा रंग श्रोताओं पर चढ़ा कि दर्शकों ने जमकर तालियां बजाई।

By JagranEdited By: Published: Mon, 23 Sep 2019 01:25 AM (IST)Updated: Mon, 23 Sep 2019 06:29 AM (IST)
दरभंगा घराने की गायिकी संग शायरा बेगम की कजरी ने अदब-ए-मौसिकी को बनाया खास
दरभंगा घराने की गायिकी संग शायरा बेगम की कजरी ने अदब-ए-मौसिकी को बनाया खास

पटना। दरभंगा घराने से जुड़ी गायिकी का कुछ ऐसा रंग श्रोताओं पर चढ़ा कि दर्शकों ने कलाकारों की प्रशंसा में तालियां बजाते चले गए। राग परमेश्वरी में कबीर के पद की प्रस्तुति देख-सुनकर लोग काफी उत्साहित दिखे। नवरस स्कूल ऑफ परफॉर्मिग आटर््स की ओर से से दो दिवसीय कार्यक्रम 'अदब-ए-मौसिकी' के समापन पर रविवार को पहले सत्र में 'धु्रपद की धरोहर' कार्यक्रम के दौरान दरभंगा घराने के युवा कलाकार निशांत और कौशिक मल्लिक ने घराने की गायिकी पेशकर समारोह का आगाज किया। घराने के कलाकार कौशिक और निशांत मल्लिक ने राग परमेश्वरी और कबीर के पद 'राम नाम में जो मूल है कहे कबीर समझाए' को पेश कर सभी का दिल जीता। गीत की प्रस्तुति के साथ पखावज पर कौशिक मल्लिक की प्रस्तुति ने कार्यक्रम को यादगार बना दिया। समारोह के अगले सत्र में नजाकत, रिवायत और अदा पर ठुमरी, गजल और तवायफ परंपरा पर काम करने वाले लेखकों ने विषय पर विस्तार से प्रकाश डाला। कार्यक्रम के दौरान लेखक अरुण सिंह, अखिलेश झा और विद्या शाह ने जहां शिरकत की, वही शंकर कुमार झा ने सत्र का संचालन किया।

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तवायफों के जरिए विकसित हुई संगीत परंपरा -

विद्या शाह ने कहा कि भारतीय संगीत परंपरा में तवायफों का बड़ा योगदान रहा। भारतीय संगीत की कई विधाएं तवायफों के जरिए विकसित और संरक्षित हुई हैं। लेखक अरुण सिंह ने कहा कि तवायफों के मानवीय मूल्य बहुत ऊंचे दर्जे का रहे हैं। तवायफों को सुधि जनों से तारीफ बहुत मिली लेकिन सामाजिक स्वीकृति नहीं मिल पाई। जिस प्रकार से घराना परंपरा ने भारतीय संगीत को समृद्ध किया उसी प्रकार तवायफ परंपरा भी भारतीय संगीत के विकास में अमूल्य योगदान दी। समारोह के अगले सत्र में 'देवप्रिया और देवदासी' फ्रॉम इटर्नल टू क्लासिक में देवदासी परंपरा के संगीत की चर्चा हुई। इसमें लेखक व राजनीतिज्ञ पवन कुमार वर्मा और सवर्णमाल्य गणेश ने विस्तार से चर्चा की। पवन कुमार वर्मा ने देवदासी परंपरा पर कहा कि इस परंपरा में संगीत पक्ष काफी मजबूत रहा। स्वर्णमाल्य गणेश ने परंपरा के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक पक्ष को स्पष्ट किया। सत्र का समापन स्वर्णमाल्य गणेश के नृत्य से हुई।

अयोग्य लोगों ने संगीत से जुड़कर पहुंचाया नुकसान : चौथे सत्र में 'घराना' पर इरफान जुबैरी, मीता पंडित, पद्मा तलवलकर, अनीस प्रधान और डॉ. अजीत प्रधान ने भारतीय संगीत की घरानों पर विस्तार से चर्चा की। डॉ. अजीत प्रधान ने कहा कि घराना परंपरा ने संगीत की धरोहर को आगे जरूर बढ़ाया पर परिवारवाद होने के कारण कई बार अयोग्य लोग भी घराने में शामिल रहे, जिसका नुकसान संगीत को उठाना पड़ा। अनीश प्रधान ने कहा कि पलायन और प्रवर्जन के कारण घरानों का विस्तार अलग-अलग क्षेत्रों में हुआ। भारतीय संगीत में घराने आत्मा के समान हैं। मीना पंडित ने कहा कि घराने घर का पर्याय न बन जाए, इससे बचने के लिए 'परंपरा' शब्द का इस्तेमाल बेहतर है। डॉ. अजीत ने कहा कि कोई घराना सुर प्रधान तो कोई लय प्रधान रहा। तलवलकर ने कहा कि हर कलाकार आज भी किसी एक घराने का गीत नहीं गाता। समारोह के दौरान मीता पंडित ने 'जय-जय जयदेव हरे' गीत को ख्याल के रूप में गाया, जबकि पद्मा तलवलकर ने ग्वालियर घराने का गीत प्रस्तुत किया।

संगीत के सभी पक्षों पर काम करने की जरूरत :

पाचवें सत्र में शास्त्रीय संगीत पर लेखन विषय पर अनीश प्रधान, नमिता देवीदयाल, अखिलेश झा ने शास्त्रीय संगीत लेखन पर चर्चा की। नमिता देवीदयाल ने कहा कि संगीत पर लिखने वाले व्यक्ति को संगीतकार की आत्मा को पढ़ने की जरूरत है। अनीश प्रधान ने कहा कि संगीत पर लिखने वाले व्यक्ति को समाज और राज्य के कानून और धर्म को समझना जरूरी होता है। अखिलेश झा ने मेहंदी हसन पर लिखी किताब 'मेरे मेहंदी हसन' के बारे में विस्तार से चर्चा की। देवीदयाल ने कहा कि संगीत पर लिखने वालों को संगीत के सभी पक्षों पर ध्यान देने की जरूरत है।

ठुमरी में भक्ति और श्रृंगार रस दोनों

अगले सत्र में रिवायती पूरब अंग गायिकी पर इरफान जुबेरी, विद्या राव और सारिया बेगम ने चर्चा की। शायरा बेगम ने महादेव मिश्र के गाए गीत कजरी 'मोरा सावरिया नहीं आए, सजनी छाए घटा घनघोर..' पेश की सभी का ध्यान आकर्षित किया। शायरा बेगम ने कहा कि बहुत छोटी उम्र में वे अपने परिवार के साथ बिहार से बनारस आ गई। बनारस में उस्ताद सिकंदर खां से तालीम ली। बेगम ने ठुमरी पर कहा कि इसमें भक्ति और श्रृंगार रस दोनों होता है।

सुरेश तलवलकर की प्रस्तुति ने कार्यक्रम को बनाया यादगार

कार्यक्रम का समापन पंडित सुरेश तलवलकर ने तबला की प्रस्तुति देकर कार्यक्रम का समापन किया। ताल योगी तलवलकर ने तबला वादन के अलग-अलग शैली को पेश कर कार्यक्रम को यादगार बना दिया। इनके साथ संगत कलाकारों में सावनी तलवरकर तबले पर, ढोकर पर उमेश वरभुवन और काइजोन पर तन्मय देवचके ने हारमोनियम पर संगत किया। समारोह के समापन पर नवरस के सचिव डॉ. अजीत प्रधान ने सभी कलाकारों का स्वागत कर उनका मान बढ़ाया। मौके पर बिहार विधान परिषद के सदस्य डॉ. रामवचन राय, आइएएस त्रिपुरारी शरण अन्य लोगों ने कार्यक्रम का आनंद उठाया।


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